कोरोना के खतरे से बच्चों को रखना है दूर
- दैनिक जागरण आई नेक्स्ट अपडेट्स ऑन रेडियो सिटी में चाइल्ड स्पेशलिस्ट डॉ। अश्वनी गुप्ता देंगे सुझाव
दैनिक जागरण आई नेक्स्ट अपडेट्स ऑन रेडियो सिटी में चाइल्ड स्पेशलिस्ट डॉ। अश्वनी गुप्ता देंगे सुझावGORAKHPUR: GORAKHPUR: पूरी दुनिया कोरोना वायरस का दंश झेल रही है। कोरोना की चपेट में बच्चों से लेकर बूढ़े तक आ रहे हैं। वहीं, कोविड-क्9 से पीडि़त बच्चों में से ज्यादातर में हल्के लक्षण ही दिखाई देते हैं और जरूरत पड़ने पर उपचार की स्थिति में एक से दो हफ्ते के भीतर ही पूर्ण रूप से उनका ठीक हो जाना भी संभव है। यह बातें दैनिक जागरण आई नेक्स्ट अपडेट्स ऑन रेडियो सिटी में बेतियाहाता स्थित स्माइल मैटर्निटी एंड चाइल्ड केयर सेंटर के डॉयरेक्टर चाइल्ड स्पेशलिस्ट डॉ। अश्वनी गुप्ता बता रहे हैं। प्रोग्राम का टेलिकास्ट रेडियो सिटी 9क्.9 एफएम पर सुबह क्0 बजे होगा। जिसे सुनना आप न भूलें। डॉ। अश्वनी गुप्ता बताते हैं कि कोरोना आम तौर पर एक इंसान से दूसरे इंसान में फैलता है। चूंकि वयस्क लोगों का ही बाहर आना-जाना, घूमना-फिरना और लोगों से मिलना ज्यादा होता है लिहाजा इस वायरस का शिकार भी वही ज्यादा होते हैं। अब लगभग सभी लोग अपने घरों में हैं और बच्चों के साथ समय बिता रहे हैं। बच्चों में कोरोना संक्रमण अभी तक देखने को नहीं मिल रहा, बहुत से देशों में अभी तक उन्हीं लोगों का टेस्ट किया जा रहा है, जिनमें कोरोना के लक्षण नजर आ रहे हैं और इनमें बच्चों की संख्या बहुत ही कम या यूं कहें कि न के बराबर है। हो सकता है बच्चों में भी ये संक्रमण हो लेकिन अभी उसके लक्षण नजर नहीं आ रहे हैं। अगर कोई बच्चा कोरोना वायरस से पीडि़त है तो उसमें बुखार, सूखी खांसी और थकान जैसे लक्षण दिखेंगे या काफी बार यह भी देखा गया है कि बच्चों में वयस्कों के मुकाबले कोई लक्षण नहीं दिखते हैं जिसे एसिंप्टोमेटिक कोरोना भी कहते हैं। अभी तक जितनी रिसर्च हुई हैं, वो सभी ये इशारा करती हैं कि वयस्कों की तुलना में बच्चों पर इस वायरस का असर कम होता है। उनमें वायरस के लक्षण भी कम ही उजागर होते हैं। खासतौर से अगर हम बात करें स्कूल जाने वाले या नर्सरी के बच्चों की, तो वो हर समय सांस के जुड़े तरह-तरह के वायरस का सामना करते रहते हैं। उनका शरीर खुद ही उन वायरस से लड़ने की क्षमता पैदा करता रहता है। इसीलिए कई मायनों में बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता, वयस्कों की तुलना में बेहतर होती है। हमारा शरीर किसी भी बीमारी से लड़ने के लिए ख़ुद भी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है। इसे साइटोकाइन स्टॉर्म कहते हैं। ये कई बार मल्टी ऑर्गन फेलियर की वजह भी बनता है। जबकि बच्चों की अपरिपक्व प्रतिरोधक क्षमता इस स्तर तक नहीं पहुंच पाती। इसलिए भी कोरोना से संक्रमित होने के बावजूद बच्चों में वो स्थिति पैदा नहीं हो पाती, जो कि हम वयस्कों में देखते हैं।