24 मार्च 2015 को क्रिकेट वर्ल्ड कप के पहले सेमी फाइनल में साउथ अफ्रीका और न्यूजीलैंड के बीच हुए मैच में जीत न्यूजीलैंड के हिस्से में आयी. लेकिन इस जीत के बाद साउथ अफ्रीका टीम के आंसुओं ने जैंटलमैन्स गेम्स कहे जाने इस खेल से जुड़े नियमों को फिर से विवाद में खड़ा कर दिया है. ये नियम है डकवर्थ लुईस मैथड जो बदलती वैदर कंडीशंस या किसी विशेष परिस्थिति के आने पर खेल के बारे में नए लक्ष्य तय करता है.

24 मार्च के सेमीफाइनल मैच ने दो ब्रिटिश गणितज्ञों फ्रैंक डकवर्थ और टोनी लुईस के बनाए डकवर्थ लुईस मैथड जिसे अक्सर डेलाइट मैथड भी कहा जाता है को फिर से सवालों में खड़ा कर दिया. क्रिकेट से जुड़े एक्सपर्टस का कहना है कि जब समय और रिजर्व डे दोनों ही विकल्प मौजूद थे तो ये नियम इस मैच पर क्यों लागू किया गया. आइए जानतें हैं कि क्या हुआ था इस मैच के बीच और साथ ही बताते हैं आपको कुछ और ऐसे डकवर्थ लुईस नियम से जुड़े फैसलों के बारे में जिन्होंने क्रिकेट जगत को
हैरान कर दिया. 

साउथ अफ्रीका को रुला दिया न्यूजीलैंड के साथ सेमीफाइनल ने
24 मार्च 2015 वर्ल्डं कप सेमी फाइनल मैच को हारने के बाद ना सिर्फ साउथ अफ्रीकन फैन्स बल्कि लगभग पूरी टीम फूट फूट कर मैदान पर ही रो पड़ी. नवजोत सिंह सिद्धू जैसे क्रिकेट एक्सपर्ट का कहना है कि ये आंसू मैच की हार के तो थे ही पर इस बात के लिए भी थे कि वे ठगा हुआ महसूस कर रहे थे. दरसल इस मैच में साउथ अफ्रीका जिस समय 38 ओवर में तीन विकेट के नुकसान पर 216 रन बना कर खेल रहा था, बारिश के चलते खेल रोक दिया गया. करीब 90 मिनट बाद जब मैच दुबारा शुरू हुआ तो डकवर्थ लुईस नियम लागू कर दिया गया और मैच 43 ओवर का हो गया. जिसमें धूआंदार बल्लेलबाजी करते हुए आरएसए ने 281 रन 5 विकेट खेकर बना लिए. एक्सपर्ट का कहना है कि वर्ल्ड कप में साउथ अफ्रीका हमेशा आखिरी के 10-12 ओवर्स में अपने को एक्सलरेट करती है यानि तेज गति से रन बनाती है. इसका मतलब था कि अगर वे अपने पूरे पचास ओवर खेलते तो स्कोर साढ़े तीन सौ के पार होता और शायद वे ये मैच जीत सकते थे.
सवाल यही है कि जब समय था और अगले दिन मैच के लिए एक रिजर्व डे भी था तो ओवर कम करने की जरूरत ही क्या थी. हो सकता है मैच का नतीजा ना बदलता लेकिन साउथ अफ्रीका के पास तब एक फेयर चांस जरूर था खेल में अपने को साबित करने का. बहरहाल अगर नियम की बात की जाए तो डकवर्थ लुईस का डंक वैसे तो कई क्रिकेट खेलने वाली टीमों को लगा है लेकिन साउथ अफ्रीका तो शायद इस नियम का फेवरेट शिकार है.

एक बाल और 22 रन का टारगेट
बात है 1992 के वर्ल्ड  कप की. साउथ अफ्रीका अपना पहला वर्ल्ड कप खेल रहा था और अपने शानदार खेल के चलते वो वर्ल्ड कप के सेमी फाइनल में पहुंच चुका था. इंग्लैंदड के खिलाफ खेलते हुए उसे 45 ओवर में 252 रन का टारगेट हासिल करना था. स्लो ओवर का जुर्माना भरते हुए उसे कम ओवर खेलने के लिए मिले थे. पर उसे फर्क नहीं पड़ा उसने बेहतरीन खेल दिखाया और तेजी से रन बटोरे. बारिश आने से पहले उसे पांच ओवर में महज 45 रन बनाने थे. खेल चलता रहा जब बारिश तेज हुई तो अंपायर्स ने दोनों टीम की राय जाननी चाही कि क्या वो खेलते रहेंगे या खेल रोक दिया जाए. जहां साउथ अफ्रीका खेल जारी रखना चाहता था वहीं इंग्लैंड के कप्तान ग्राहम गूच खेल रोकने पर अड़े थे क्योंकि उनके खिलाड़ियों को गीले कपड़ो और गीली गेंद से परेशानी हो रही थी.  
खेल रुक गया और करीब 12 मिनट बाद बारिश भी रुक गयी. जब खेल दोबारा शुरू हुआ जो खेल के नियम लागू होने के बाद रिवाइज टारगेट लेकर आया. अब कहा गया कि RSA को 7 गेंदों में 22 रन बनाने हैं. पर इसे फौरन बदल कर 1 गेंद में 22 रन कर दिया गया हालाकि ये भी गलत था दरसल उन्हें एक गेंद में 21 रन बनाने थे जो असंभव था. लिहाजा उस आखिरी गेंद को अपने बल्ले से बस पुश करके नाराज प्लेयर्स पवेलियन वापस लौट आए.
एक और गलत गणित ने साउथ अफ्रीका को ग्रुप स्टेज से किया बाहर
कहानी यहीं खत्म नहीं होती और इस एक और सदमे से साउथ अफ्रीका के दर्द को अंदाज लगाया जा सकता है. इस बार तो श्रीलंका ने उन्हें ग्रुप स्टे्ज से ही चलता कर दिया. सिर्फ एक रन की कमी ने उनके अरमानों पर पानी फेर दिया. साथ ही साउथ अफ्रीका पर लगा चोकर्स का टैग भी जैसे परमानेंट हो गया. 2003 के वर्ल्ड् कप में ग्रुप स्टेज के मैच में श्रीलंका ने पहले खेलते हुए पोर्टीज के सामने 268 का टारगेट रखा और 73 रन की जबरदस्त पारी खेलते हुए हर्शल गिब्स् ने इसका जवाब देना स्टार्ट किया. जब खेल व्यवधान के बाद दोबारा शुरू हुआ तो लक्ष्य बदल चुका था. RSA के स्टार प्लेयर मार्क बाउचर उस समय मैदान पर थे 44वें ओवर के एंड पर ड्रेसिंग रूम से उनके पास मैसेज आया की बिना कोई विकेट खोए अगर टीम 229 रन बना लेगी तो वे टूर्नामेंट आगे बढ़ जायेंगे.
बाउचर ने इसे सूत्र की तरह गांठ बांध लिया और 45 वें ओवर की पांच गेंदों में 13 रन बना कर 229 रन का लक्ष्य हासिल कर लिया. लिहाजा ओवर की आखिरी गेंद को पुश तो किया पर रन नहीं लिया. पर शॉकिंग वो मैसेज अधूरा था. सच तो ये था कि 229 पर मैच टाई होना था और जीत के लिए एक रन और चाहिए था. जो नहीं बना मैच टाई हो गया और पिछले मैंचों के रन औसत के आधार पर श्रीलंका आगे बढ़ गयी और अफ्रीका ग्रुप स्टेज से ही बाहर हो गया.
 
191 रन बना कर वेस्ट इंडीज के 60 रन के आगे हारा इंग्लैंड
केवल साउथ अफ्रीका नहीं और भी हैं डकवर्थ लुईस के शिकार. ये किस्सा है 2010 के टीट्वेंटी मैंच का जो इंग्लैंड और वेस्ट इंडीज के बीच खेला जा रहा था. इस मैच में इंग्लैंड ने पांच विकेट खोकर 191 रन बनाये और वेस्ट इंडीज को खेलने का मौका दिया. मगर वेस्ट इंडीज को सर्पोट मिला D/L का और छह ओवर में 2 विकेट पर 60 रन बना कर वे मैच जीत गए.
जब जिंबाब्वे के हाथों इसी नियम के चलते हारने से बाल बाल बचा श्रीलंका
2010 में टी ट्वेंटी वर्ल्ड कप से बाहर होने से श्रीलंका बाल बाल बचा. ये जिंबाब्वे ही परफार्म नहीं कर सका वरना श्रीलंकन टीम तो ग्रुप मैच में ही वापसी की फ्लाइट पकड़ चुकी होती. श्रीलंका की टीम ने पहले खेलते हुए ग्रुप बी के सेवेंथ मैच में सात विकेट गंवा कर 173 रन बनाए. जिसके बाद जिंबाब्वे  को बारिश के चलते जबरदस्त फायदा मिला और उसे पांच ओवर में महज 44 रन बनाने का आसान टारगेट दिया गया. लेकिन इस टीम में पोटेंशियल नहीं था और वो र्निधारित ओवर्स में एक विकेट गंवा कर 29 रन ही बना पाए और श्रीलंका ने राहत की सांस ली.

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Posted By: Molly Seth