आज 'व‌र्ल्ड अस्थमा डे' है और अस्थमा पेशेंट्स के धूल जहर के समान है। अपने शहर में चारों ओर उड़ती धूल अब खतरनाक लेवल तक पहुंच गया है। इसके क्या-क्या हैं साइड इफेक्ट्स? पढ़ें अंदर के पेज पर।

- हर तरफ उड़ रहा धूल का गुबार

- वरुणापार इलाके की हालत बदतर

सारनाथ की ओर जाने से कतरा रहे टूरिस्ट्स

VARANASI :

केस-क्

बुद्ध पूर्णिमा पर ढेरों विदेशी सैलानियों का एक ग्रुप भगवान बुद्ध की प्रथम उपदेश स्थली सारनाथ की ओर जा रहा है। शहर को निहारने के लिए उन्होंने ओपेन व्हीकल की सवारी करना पंसद किया। कैंटोन्मेंट स्थित होटल से पुलिस लाइन तक तो उन्हें खूब आनंद आया लेकिन जैसे ही फ्लाईओवर पार किया और उनका सामना धूल के गुबार से हुआ तो सांस फूलने लगी। नाक-मुंह बंद करके थोड़ी देर तक तो उसका सामने करने की कोशिश की। हिम्मत छूटी तो आगे जाने का प्रोग्राम कैंसिल करके होटल वापस लौट आए।

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कचहरी स्थित ऑफिस में काम करने वाले लंका निवासी हरिकिशन हर रोज कई किलोमीटर का सफर तय करते हुए काम पर जाते थे। इस दौरान पूरे रास्ते धूल फांकने को मजबूर होता थे। दो महीने पहले उन्हें सांस लेने में तकलीफ महसूस होने लगी। डॉक्टर के पास पहुंचकर जांच करायी तो पता चला कि धूल की वजह से फेफड़े में इन्फेक्शन हो गया है। उन्हें बिल्कुल साफ-सुधरे माहौल में रहने को कहा गया। वह ऑफिस से छुट्टी लेकर घर पर रहने को मजबूर है।

दोनों केस बताने के लिए काफी हैं कि इस शहर की क्या हालत है। हर वक्त यह धूल की चादर से ढका रहता है। इससे बचने के लिए लोग रोड पर गुजरते वक्त लोग सिर से पैर तक खुद को ढकने को मजबूर हैं। शॉपकीपर दुकान को पर्दे के पीछे छुपाया रहता है। रोड किनारे मौजूद घरों की खिड़की-दरवाजों पर मोटे-मोटे पर्दे दिखते हैं। इसके बावजूद धूल से बचना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। धूल की वजह से लोगों की सेहत बिगड़ रही है। सामानों का नुकसान हो रहा है। टूरिज्म इंडस्ट्री को भी खामियाजा भुगतना पड़ रहा है।

धूल का गुबार दिख रहा वरुणा पार

सबसे बुरी हालत इन दिनों वरुणा पार की है। टूरिस्ट मूवमेंट के लिहाज से सबसे इम्पॉर्टेट एरिया लम्बे समय से दुर्दशाग्रस्त है। एरिया को सीवर की प्रॉब्लम से निजात दिलाने के लिए ट्रांस वरुणा प्रोजेक्ट के तहत हैवी सीवर लाइन बिछायी जा रही है। पाण्डेयपुर से शुरू हुआ काम सारनाथ, भोजूबीर, शिवपुर, पहडि़या तक पहुंच चुका है। लालपुर, पंचक्रोशी, मीरापुर बसहीं, अर्दली बाजार समेत कई इलाकों में खोदाई करके पाइप लाइन डाली गयी है। इस वक्त पाण्डेयपुर से लेकर सारनाथ के बीच काम चल रहा है। जहां काम हो रहा है वहां खोदे गये गढ्डे की मिट्टी रोड पर जमा है। जहां रोड को खोदकर काम किया जा चुका है वहां गढ्डा तो पाट दिया गया लेकिन गिट्टी आदि नहीं डाली गयी है। दिन-रात गाडि़यों की आवाजाही की वजह से पूरे इलाके में धूल उड़ती रहती है जैसे कोई रणभूमि है।

तो कैसे आएंगे टूरिस्ट

-सारनाथ में मौजूद भगवान बुद्ध की प्रथम उपदेशस्थली पर नमन करने दुनिया भर के टूरिस्ट्स आते हैं

-श्रीलंका, चीन, जापान, थाईलैण्ड समेत कई देशों के बौद्ध धर्मावलम्बी हर वक्त आते हैं

-बौद्ध धर्म से जुड़े पर्व पर यहां विशेष कार्यक्रम होता है। इसमें भी बड़ी संख्या में सैलानी शामिल होते हैं

-पिछले पांच साल से वरुणा पार में किसी ने किसी कारण से सड़कों की खोदाई हो रही है

-खोदी सड़कों को न बनाए जाने से हर वक्त धूल का गुबार उड़ता रहता है

-शहर के आसपास के कई जिलों से जोड़ने वाले रोड से डेली हजारों लोगों को गुजरना होता है

-वरुणापार की लाखों की आबादी के साथ ही एरिया में आने-जाने वाले धूल से प्रभावित होते हैं

-धूल की वजह से टूरिस्ट्स अब सारनाथ जाने से कतरा रहे हैं

-सारनाथ आने वाले टूरिस्ट्स बनारस के अन्य इलाकों में जाते हैं

-बनारस की इकॉनमी में टूरिज्म बड़ा रोल प्ले करता है

-लगभग दस हजार परिवार की रोटी का इंतजाम इस इंडस्ट्री से होता है

-टूरिस्ट्स के नहीं आने से इकॉनमी प्रभावित होती है

नहीं बचा है कोई इलाका

सिर्फ वरुणा पार ही नहीं सिटी का कोई ऐसा एरिया नहीं बचा है जहां धूल से राहत मिल सके। सिटी के विभिन्न इलाकों में सीवर समेत ढेरों काम हो रहे हैं। इसके लिए बेतरतीब तरीके से रोड की खोदाई की जा रही है। गढ्डे से निकली मिट्टी को किनारे ही कहीं डाल दिया जा रहा है। महमूरगंज, रविन्द्रपुरी, सामनेघाट, नई सड़क, सिगरा, नदेसर, कमच्छा, विद्यापीठ, समेत कई इलाके में रोड की खोदाई करके काम किया जा रहा है। जहां काम हो चुका है वहां भी रोड नहीं बनायी जा रही है। इन इलाकों में जरबदस्त धूल उड़ती है। हवा से साथ यह धूल पूरे शहर में उड़ती रहती है। धूल को रोकने वाला पेड़-पौधे कम होने से इस पर कोई लगाम नहीं लगता है।

नहीं उठती है धूल

धूल से पटे रहने वाले बनारस में इसके उठाने का इंतजाम नहीं है। पहले की तरह झाड़ू ही नहीं लगता है। इसका नुकसान यह होता कि शहर के हर कोने में धूल की ढेर जमा रहती है। रोड किनारे, डिवाइडर्स के किनारे धूल जमी रहती है। फ्लाईओवर पर भी धूल फैली रहती है। गाडि़यों की आमद-रफ्त के वक्त धूल उड़ती रहती है। रोड्स से धूल उठाने के लिए नगर निगम ने विदेश से एक महंगी गाड़ी मंगायी है। इसका उपयोग कभी नहीं किया गया है। कभी-कभार गाड़ी को नगर निगम कैम्पस से बाहर निकाला जाता है। थोड़ा इधर-उधर घुमाकर वापस लौट जाती है।

हो रहा है नुकसान

-सिटी के लोगों को धूल से बचने के लिए सिर्फ खुद को ढंकने का रास्ता ही बचा है

-कपड़ों के साथ अब मुंह ढंकने के लिए स्कार्फ का खर्च बढ़ गया

-दुकानदार दुकान में पड़े लाखों के माल बचाने के लिए पर्दो से ढककर रखते हैं

-अगर ऐसा नहीं किया तो सामानों पर धूल चढ़ जाएगी और उसे कोई नहीं खरीदेगा

-सबसे बड़ी मुसीबत रोड किनारे के घरों की है। पूरा मकान धूल से सना होता है

-कुछ दिनों पहले रंग पेंट किये गए मकान की रंगत उड़ जाती है

-कमरों में धूल जाने से बचाने के लिए पर्दे ही एक सहारा हैं

-मौज-मस्ती वाले इस शहर में लोगों ने घर से निकलना कम कर दिया है

-धूल से सने कपड़ों की ड्राई क्लीन कराये जाने का खर्च बढ़ गया है

-गंदे कपड़े और बदन की सफाई के लिए शैम्पू-साबुन का खर्च बढ़ गया है

-दुकान व घर को धूल के गुबार से बचाने के लिए पर्दे की डिमांड बढ गयी है

रोड पर उड़ती धूल से तो लगता ही नहीं कि सिटी में है। इससे अच्छी हालत तो गांवों की है। न चाहते हुए नकाबपोश बनकर घूमना पड़ता है।

मुफीद, पाण्डेयपुर

सिटी में घंटे दो घंटे के लिए निकलो तो सिर से लेकर पैर तक धूल से सन जाता है। हर वक्त तो नहाना पॉसिबल नहीं। ये धूल घंटों बदन पर रहता है।

अवधेश पाण्डेय, सारनाथ

धूल ने तो ठीक से सांस लेना भी मुश्किल कर दिया है। घर के बाहर निकलने की इच्छा नहीं होती। बाहर जाने के लिए मुंह-सिर ढकना पड़ता है।

शशांक केशरी, भेलूपुर

जहां जाओ हर ओर धूल ही धूल मिलती है। सुबह से लेकर शाम तक हम धूल फांक रहे हैं। बचने के लिए हेलमेट से चेहरा छुपाना पड़ता है।

पंकज गुप्ता, सिगरा

Posted By: Inextlive