सड़क की धूल पहुंचा रही अस्पताल
- 38 परसेंट लोग सड़क की धूल से हो रहे हैं सीओपीडी का शिकार
- दुनिया की तीसरी सबसे खतरनाक बीमारी है सीओपीडी, स्मोकिंग है मेन रीजन - हर साल 6.5 करोड़ लोगों की चली जाती है जानGORAKHPUR: सड़क पर गर्द के गुबार और आसमान में नमी, लोगों को बीमार बना रही है। जमीन से खतरनाक पार्टिकिल्स ऊपर नहीं जा पा रहे हैं और फर्राटा भर रही गाडि़यां लगातार आबो-हवा में धूल को उड़ा रही हैं। नतीजा, सड़क की यह धूल लोगों को अस्पताल पहुंचा रही है। पीएम-10 और पीएम 2.5 सांसों के रास्ते फेफड़ों पर अटैक कर रहे हैं और लोगों को सांस में दिक्कत के साथ ही दमा और अस्थमा के साथ ही सीओपीडी जैसी खतरनाक बीमारियां घेर रही हैं। हालत यह है कि इसकी वजह से दिन ब दिन मरीजों की तादाद बढ़ रही है। आंकड़ों पर नजर डालें तो फैक्ट्री के धुएं और पेट्रोल-डीजल गाडि़यों से ज्यादा सड़क पर उड़ने वाली धूल से लोग इन बीमारियों का शिकार हो रहे हैं।
पीएम 2.5 के 38 फीसद शिकारपॉल्युटेंट की बात करें तो यूं तो हवा में हजारों केमिकल और गैसेज मिलकर लोगों को नुकसान पहुंचा रही हैं। लेकिन सबसे ज्यादा खतरनाक वह पार्टिकिल्स हैं, जो दिखाई नहीं देते, लेकिन सांस लेने पर नाक के रास्ते बॉडी में एंटर कर जाते हैं और बॉडी को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा रहे हैं। हम बात कर रहे हैं पीएम 2.5 पार्टिकिल्स की, जिनकी वजह से शहर की आबो-हवा में 38 परसेंट पॉल्युशन है, जो लोगों को बीमारी की गोद में पहुंचा रहा है। वहीं पीएम-10 भी हवा में घुला हुआ है और 58 फीसद इसके पार्टिकिल्स सिर्फ सड़क पर उड़ने वाली धूल की वजह से लोगों के जिस्म में पहुंच रहे हैं।
स्मोकिंग से भी जा रही है जान सीओपीडी (क्रॉनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज) दुनिया में तीसरी ऐसी खतरनाक बीमारी है, जिससे लोगों की जान जा रही है। सिर्फ सीओपीडी की वजह से दुनिया में हर साल करीब 30 लाख लोग मौत की आगोश में चले जा रहे हैं। जबकि सिर्फ इंडिया में पांच लाख लोग इस बीमारी का शिकार बनकर काल के गाल में समा रहे हैं। इसकी अहम वजह स्मोकिंग का शौक है, जो जानलेवा साबित हो रहा है। इसकी सबसे अहम वजह अवेयरनेस की कमी है। जिस वजह से दुनिया के करीब 80 फीसदी लोग इसकी चपेट में हैं। सिगरेट, बीड़ी, हुक्का के साथ ही चूल्हे का धुआं भी इस बीमारी से जूझ रहे मरीजों के लिए काफी खतरनाक है। क्या है सीओपीडी?सीओपीडी यानी क्रॉनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज एक ऐसी बीमारी है, जिसके बढ़ने पर लोगों को सांस लेने में मुश्किल होने लगती है। इसमें सांस की नलियां सिकुड़ती चली जाती हैं और सूजन बढ़ती रहती है। समय के साथ ही बीमारी बढ़ती चली जाती है, जिससे लोग लगातार मौत के करीब पहुंच रहे हैं। एक रिसर्च के मुताबिक रोजाना करीब 500 एमएल या इससे ज्यादा कोल्ड ड्रिंक्स का इस्तेमाल करने वालों में भी इसके बढ़ने की संभावना रहती है।
डराते हैं आंकड़े - दुनिया भर में 6.5 करोड़ लोग गंभीर सीओपीडी से पीडि़त हैं। - हर साल 30 लाख से ज्यादा लोगों की सीओपीडी से जाती है जान - विकासशील देशों में 90 प्रतिशत होती हैं मौतें। - 2030 तक सीओपीडी दुनिया में मौत देने वाली दूसरी सबसे बड़ी वजह होगी। क्या हैं लक्षण? - सांस फूलना - बलगम के साथ खांसी - गले में घरघराहट - खून की कमी - सांस लेने में तकलीफ जो काम करने के साथ और भी बढ़ती जाती है। - छाती में जकड़न या खिंचाव महसूस होना। क्या है कारण? - स्मोकिंग - पैसिव स्मोकिंग - पॉल्युटेड एटमॉस्फियर में काम करना - जेनेटिक ऐसे बचें - स्मोकिंग छोड़ दें।- फल, सब्जियों के साथ डाइट में ज्यादा से ज्यादा प्रोटीन का इस्तेमाल करें।
- लिक्विड डाइट का इस्तेमाल करें, वेट को कंट्रोल करें। - डॉक्टर्स के अकॉर्डिग ही इनहेलर, स्टेरॉयड और एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल करें। - डॉक्टर्स के कहने पर ऑक्सीजन थेरेपी जरूर लें। - हर साल फ्लू और निमोनिया का टीका लगवाएं। - वेदर चेंज के दौरान खास ध्यान दें और ठंड से बचें। - फेफड़ों को नुकसान पहुंचाने वाली चीजों का इस्तेमाल बंद कर दें। - अपने घर में वेंटिलेशन की प्रॉपर व्यवस्था करना। - रेग्युलर एक्सरसाइज करें। एक अच्छी दौड़ फायदेमंद साबित होगी। - डॉक्टर्स से कंसल्ट करते रहें। बॉक्स मेडिकल कॉलेज में खास सुविधाएं मौजूदबीआरडी मेडिकल कॉलेज के डॉ। अश्वनी कुमार मिश्रा ने बताया कि अब हर तरह की सांस से जुड़ी बीमारियों का इलाज बीआरडी में हो रहा है। इसके लिए एडवांस बाई-पैप मशीन, कंप्यूटराइच्ड स्पाइरोमेट्री, प्लेथीस्मोग्राफी आदि उपलब्ध है। विभाग में लोगों को सांस से जुड़ी बीमारियों के प्रति अवेयर करने के लिए लगातार कोशिशें भी की जा रही हैं। इसके लिए टर्शियरी लेवल रेस्पिरेटरी केयर सेंटर के तौर पर स्थापित है। जल्द ही ब्रोंकोस्कोपी और स्लीप लैब जैसी सुविधाएं भी मरीजों के लिए अवेलबल होंगी, जिनकी मदद से हम लंग कैंसर व ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एप्निया जैसी बीमारियों का भी इलाज कर सकेंगे।
पीएम-2.5 पॉल्युशन के कारण सड़क की धूल - 38 परसेंट फैक्ट्री 20 परसेंट पेट्रोल-डीजल - 12 परसेंट कंक्रीट - 6 परसेंट कचरा जलाना - 3 परसेंट निर्माण कार्य - 2 परसेंट पीएम-10 पॉल्युशन के कारण सड़क की धूल - 56 परसेंट फैक्ट्री 10 परसेंट पेट्रोल-डीजल - 10 परसेंट कंक्रीट - 5 परसेंट कचरा जलाना - 3 परसेंट निर्माण कार्य - 2 परसेंट वर्जन सीओपीडी पूरी दुनिया के सामने बहुत गंभीर समस्या है। इसमें सांसों की नलियां सिकुड़ जाती हैं, जो निरंतर ही बढ़ती चली जाती है। लोगों को इसे लेकर अवेयर करने की जरूरत है। पेशेंट्स को भी सावधानी बरतनी चाहिए। अगर प्रॉब्लम हो, तो फौरन ही एक्सपर्ट से संपर्क करें। - डॉ। अश्वनी कुमार मिश्रा, एचओडी, चेस्ट डिपार्टमेंट, बीआरडी स्मोकिंग फौरन ही बंद कर सीओपीडी के रिस्क फैक्टर से बचा जा सकता है। साथ ही पॉल्युशन से भी बचकर इस गंभीर बीमारी से निजात मिल सकती है। चूल्हे पर खाना बनाने से भी यह बीमारी हो सकती है, इसलिए जहां तक पॉसिबल हो गैस चूल्हे का इस्तेमाल करें। - डॉ। वीएन अग्रवाल, चेस्ट स्पेशलिस्ट