-हर साल निकलता है 220 टन इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट, 2014 में 150 टन के आसपास थी तादाद

-मोबाइल और कंप्यूटर क्रांति ने बढ़ा दिया शहर पर खतरा

-कैडमियम, लेड के साथ ही निकलते हैं हाजार्ड केमिकल, होते हैं खतरनाक

-लोगों को हो सकती है सांस के साथ ही दूसरी कई समस्या

GORAKHPUR: डिजिटल एरा में अब सबकुछ डिजिटल हो चला है। शहर हो या गांव इसके लिए सभी जगह अधिकारी से लेकर कर्मचारी तक जी जान से कोशिशों में जुटे हैं। मगर जहां डिजिटल दुनिया के फायदे हैं, तो वहीं इसके कुछ नुकसान भी हैं। खुद को डिजिटली साउंड करने के लिए लोगों ने इलेक्ट्रॉनिक्स सामान तो ले लिए, लेकिन उनकी क्वालिटी बेहतर न होने से इसके जल्दी खराब होने की वजह से ई-वेस्ट निकलने की तादाद भी काफी बढ़ गई। हालत यह है कि अब गोरखपुर ई-वेस्ट के बोझ तले दबा हुआ है, जो न सिर्फ एटमॉस्फियर, बल्कि शहरवासियों के साथ खुद उनकी सेहत के लिए खतरनाक साबित हो रहे हैं।

220 टन निकल रहा है ई-वेस्ट

गोरखपुर में कंप्यूटर, लैपटॉप, मोबाइल के साथ ही इलेक्ट्रॉनिक इक्विपमेंट का इस्तेमाल काफी बढ़ गया है। पहले जहां गिनती के इलेक्ट्रॉनिक इक्विपमेंट बिकते थे, अब उनकी तादाद में कई गुना इजाफा हो गया है। इस्तेमाल बढ़ने से इनके खराब होने और इसके बाद इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट निकलने की तादाद भी काफी बढ़ गई है। हालत यह है कि 2014 में जहां करीब 150 टन प्रति वर्ष ई-वेस्ट निकलता था, वहीं अब इसकी क्वांटिटी बढ़कर 220 टन तक पहुंच चुकी है।

घरों में भी नहीं है कमी

इलेक्ट्रॉनिक सामान हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में शामिल हो चुका है। इसके साथ ही हम इससे निकलने वाले वेस्ट को भी अपनी जिंदगी में शामिल कर चुके हैं। यह जानते हुए भी हम अपने घरों में इन्हें इकट्ठा कर अपने आप के साथ ही एनवायर्नमेंट को भी बर्बाद कर रहे हैं। डेली लाइफ में हमारे इस्तेमाल में आने वाले कई इलेक्ट्रानिक इक्विपमेंट्स ऐसे हैं, जो अब इस्तेमाल के लायक नहीं है, लेकिन बावजूद इसके हम उन्हें अपने घरों में ही रखकर बैठे हुए हैं। पुरानी टीवी, पुराने मोबाइल हैंडसेट्स, कैमरा और रेडियो के साथ ही कंप्यूटर इस लिस्ट में शामिल है। यह सभी ऐसे सामान हैं जो आउटडेटेड तो हो चुके हैं, लेकिन जब हम इन्हें सेल करने के लिए जाते हैं तो इसको लेने के लिए लोग औनी-पौनी कीमत ऑफर करते हैं। जिसकी वजह से न चाहते हुए उसे हम उसे नहीं बेचते और वह हमारे घरों में ही वेस्ट के तौर पर पड़े रहते हैं।

बरिलियम - इसका लांग टर्म एक्सपोजर कैंसर को दावत दे सकता है, स्पेशली लंग कैंसर को। इसके साथ ही इसका ज्यादा एक्सपोजर से कंडीशन घातक हो सकती है। इसे एक्यूट बरिलियम डिजीज कहते हैं।

आरसेनिक - आरसेनिक खुले तौर पर काफी तेज जहर है। यह बॉडी के डाइजेस्टिव ट्रैक्ट को काफी डैमेज कर देता है।

मरकरी - यह बॉडी के सेंट्रल नर्वस और एंडोक्राइन सिस्टम को अटैक करता है। यह मुंह, दांत और गम्स के लिए काफी खतरनाक है। इसके साथ ही यह अनबॉर्न फीटस के न्यूरोलॉजिकल डेवलपमेंट के लिए काफी खतरनाक है।

एंटीमनी - आर्सेनिक की तरह यह भी काफी खतरनाक है। इसकी ओवर डोज जानलेवा हो सकती है।

कैडमियम - यह भी पोटेंशियली कैंसरस है। इसका रिपीटेड एक्सपोजर लंग, किडनी और लीवर को डैमेज कर सकता है।

बॉक्स -

बाघागाड़ा में खुली थी फैक्ट्री

इलेक्ट्रानिक कचरे के मैनेजमेंट और हैंडलिंग के लिए गर्वनमेंट ने सख्त रूल बनाए हैं। इसके तहत यूजर को ऑथराइज वेंडर से डिस्चार्ज कराना जरूरी कर दिया गया है। एक मई 2011 को जारी इस आदेश के बाद कई सिटी में तो इसके डिस्पोजल के लिए पहल शुरू हो गई, लेकिन हमारी सिटी अब भी इससे अछूती है। शहर में इसके डिस्पोजल के लिए बाघागाड़ा में प्लांट लगाया गया था, लेकिन पब्लिक को प्रॉब्लम और हेजीटेशन की वजह इसका विरोध हुआ और इसे बंद कर दिया गया।

ऐसे हो सकता है डिस्पोजल

ई-वेस्ट को डिस्पोज करने के लिए सभी खराब इलेक्ट्रानिक्स आइटम्स को इकट्ठा करके पा‌र्ट्स को तोड़ लिया जाता है। इसके बाद उसमें से प्लास्टिक और मेटल्स को अलग कर लिया जाता है। इसकी रीसाइकिलिंग की जाती है। जबकि हार्मफुल कैमिकल जोकि सबसे खतरनाक होता है, उसे डिस्ट्राय कर लैंडफिल एरिया में फेंक दिया जाता है।

गोरखपुर में ई-वेस्ट की मात्रा दिन ब दिन बढ़ती जा रही है। इन दिनों पर कैपिटा पर डे के हिसाब से कैल्कुलेशन किया जाए, तो करीब 220 टन के आसपास ई-वेस्ट प्रति साल निकलता है। इसके प्रॉपर डिस्पोजल की व्यवस्था न होने से लोगों को काफी प्रॉब्लम हो सकती है।

- डॉ। गोविंद पांडेय, एनवायर्नमेंटलिस्ट

इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट को डिस्पोज करने के लिए बाघागाड़ा में प्लांट लगाया गया था। इसमें कुछ पब्लिक हेजीटेशन हो गई थी, जिसके बाद इसे बंद कर दिया गया। इस वक्त गोरखपुर और आसपास में कोई ई-वेस्ट डिस्पोजल की व्यवस्था नहीं है।

- एसबी सिंह, रीजनल ऑफिसर, पॉल्युशन कंट्रोल बोर्ड

इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट से कई तरह के हार्मफुल केमिकल और एलिमेंट निकलते हैं। इसकी वजह से स्किन डिजीज से लेकर कैंसर तक की बीमारी हो सकती है। इसके प्रॉपर डिस्पोजल की व्यवस्था न हो तो परेशानी का सामना करना पड़ता है।

- डॉ। संदीप श्रीवास्तव, फिजीशियन

एक सिम से बर्बाद हो जाएगा पानी

शहर में ई-वेस्ट निकलने में तो कोई कमी नहीं होती है, लेकिन इसके डिस्पोजल की अब तक कोई प्रॉपर व्यवस्था नहीं हो सकी है। ई-वेस्ट सिर्फ थोड़े-मोड़े कचरे नहीं, बल्कि हार्मफुल केमिकल के अंबार हैं। इसे पानी में भी डिस्पोज किया जाए तो पानी इतना पॉल्युटेड हो जाएगा कि यह बीमारियों को दावत ही देगा। सिर्फ एक सिम में लगी चिप की बात करें तो अगर इसको पानी में डाल दिया जाए, तो 3 से 8 लाख लीटर पानी पॉल्युट हो सकता है। अगर इन्हें जमीन पर फेंक दिया जाए तो फिर उस जमीन पर खेती नहीं की जा सकेगी और वह बंजर हो जाएगी।

जलाने से जा सकती है जान

ई-वेस्ट निकलने के बाद इसका अगर प्रॉपर वे में डिस्पोजल न किया जाए, तो यह जानलेवा भी हो सकती है। कुछ लोग ई-वेस्ट को डिस्पोज करने के लिए उसे जला देते हैं, लेकिन उन्हें यह मालूम नहीं कि इन्हें जलाने से जबरदस्त पॉल्युशन फैलता है, जिससे लोगों की जान भी जा सकती है। एमएमएमयूटी के एनवायर्नमेंटलिस्ट डॉ। गोविंद पांडेय की माने तो इसे जलाने से हानिकारक गैस डाईआक्सिन और फ्यूरान गैस पैदा होती है, जो एन्वायरमेंट के लिए खतरनाक हैं। अगर इससे बचना है तो इसे जलाने के बजाए इसे लैंडफिल्स में ले जाकर डिस्पोज कर दिया जाए, तो इससे काफी हद तक निजात पाई जा सकती है। मगर इससे जमीन की उर्वरा शक्ति कमजोर होनी तय है।

वेस्ट बेचा तो बढ़ाया खतरा

ज्यादातर लोग तो अपने घरों में ही ई-वेस्ट को जमा किए रहते हैं, लेकिन कुछ लोग ऐसे होते हैं जो किसी तरह का वेस्ट अपने घर में नहीं रखना चाहते। इसकी वजह से वह वेस्ट मैटेरियल के साथ ई-वेस्ट को भी कबाड़ी के हाथ बेच देते हैं। कबाड़ी बजाए इसके प्रॉपर डिस्पोजल के इसमें से प्लास्टिक और लोहे के सामान निकाल लेते हैं और बाकी चीजों को ऐसे ही फेंक देते हैं। इन कबाड़ से निकलने वाला लेड, कैडमियम, आर्सेनिक, फास्फोरस एनवायरमेंट के साथ हेल्थ को भी नुकसान पहुंचाते हैं।

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डेंजर एलीमेंट ऑफ ई-वेस्ट एंड देयर साइड इफेक्ट्स

लेड - यह बाडी के सेंट्रल और पेरीफेरल नर्वस सिस्टम को नुकसान करती है। इसकी वजह से हाईब्लड प्रेशर, रिटार्डेशन, किडनी और लीवर डैमेज हो सकता है।

Posted By: Inextlive