109

परिवार सुलह-समझौते के बाद हुए एक

350

केस नौ माह में पहुंचे परिवार परामर्श केंद्र

378

केस नए पुराने मिलाकर किए निस्तारित

308

केस को समझौता न होने भेजा गया कोर्ट

02

दर्जन से अधिक केस में दर्ज हुई एफआईआर

-परिवार परामर्श केंद्र ने 109 परिवारों को बिखरने से बचाया, कई केस में दर्ज कराई रिपोर्ट

PRAYAGRAJ: जरा सा ईगो फैमिली मेंबर्स के बीच दरार की वजह बनता जा रहा है। सम्मान और विश्वास की डोर कमजोर पड़ती जा रही है। किसी को बहू से तो कहीं बहू को पति, सास, ससुर और देवर से दिक्कत है। पति-पत्नी में भी तमाम तरह की बातों को लेकर विवाद बढ़ रहे हैं। पारिवारिक रिश्तों में आई खटास घर की देहरी से निकलकर थाने तक जा पहुंच रही है। बिखरने के कगार पर पहुंच चुके दर्जनों परिवारों को एसएसपी ने परिवार परामर्श केंद्र भेजा। यहां समझा-बुझा कर महिला पुलिसकर्मियों ने परिवार में पड़ी खाई को पाटने की कोशिश की।

नहीं मिट सका मन का मलाल

अच्छी बात यह रही कि करीब 109 परिवारों को काउंसिलिंग के बाद बिखरने से बचा लिया गया। महीनों से एक दूसरे के प्रति मन में भरी कड़ुवाहट मिठास में बदल गई। परिवार परामर्श केंद्र तक पहुंचे 308 परिवार में एक दूसरे के प्रति आई खटास खत्म नहीं हो सकी। ऐसे में इन परिवारों की जिद को देखते हुए जिम्मेदारों ने मामले को कोर्ट भेज दिया। अब इनके पारिवारिक रिश्तों का फैसला कोर्ट ही करेगा। केंद्र के सामने नौ महीने में 350 नए केस पहुंचे। परिवार परामर्श केंद्र भेजे गए इन मामलों में ज्यादा कुछ खास किस्म की समस्याएं सामने आई हैं। नए पुराने मिला दो दर्जन से अधिक केस में केंद्र के जिम्मेदारों को एफआईआर तक करानी पड़ी।

बाक्स

विवाद की कैसी-कैसी वजहें

- बहू को सास के ताने व मायके वालों पर कमेंट रास नहीं आ रहे, कुछ को लिहाज के नाम पर बंदिशें भी पसंद नहीं हैं।

-ससुर, जेवर, जेठ व जेठानी की बातें भी नए दौर की बहुएं बर्दाश्त नहीं कर रहीं।

-ससुराल में ननद व जेठानी एवं देवरानी से घरेलू काम को लेकर कॉम्पटीशन भी है मनमुटाव का कारण।

-पति द्वारा परिवार को साथ लेकर चलना भी आज की पत्नियों को नहीं भा रहा रहा है।

-वहीं बेटियों की तरह ससुराल में बहुओं का रहन-सहन ससुरालियों को अच्छा नहीं लग रहा।

-बीमार होने के बावजूद खाना बनाने व घर में साफ-सफाई का दबाव बनाया जाना।

-परिवार के कहने पर पति द्वारा पत्नी को खर्चे न देना और बात-बात पर झिड़की एवं ताने देना।

-ससुरालियों द्वारा बहुओं से पारिवारिक मसलों पर चर्चा न करना व उन्हें दूसरे घर की मानकर ट्रीट करना।

-बहुत कम ही ऐसे मामले हैं जिसमें महिलाओं ने पतियों पर कुछ कमाई न करने व दिन घूमने एवं मारपीट करने का आरोप लगाया है।

बाक्स

समझौते के बाद भी निगरानी

परिवार परामर्श केंद्र में केस पहुचने के बाद अधिकारी उन्हें डेट देकर बुलाते हैं। तय डेट पर पहुंचे दोनों पक्ष को बैठा कर वह समझाते हैं। यह डेट उन्हें तीन से चार पांच बार दी जाती है। फिर भी सुलह न होने पर मामले को कोर्ट भेजने व रिपोर्ट दर्ज कराने की कार्रवाई की जाती है। यह क्रम पांच छह महीने तक चलता है।

वर्जन

विवाद की कोई बड़ी वजह नहीं होती बस ईगो को लेकर दोनों पक्षों में मनमुटाव हो जाता है। ऐसे मामलों में समझा-बुझा कर परिवारों को एक करने की कोशिश की जाती है। कुछ लोगों को बात समझ आ जाती है और वह एक हो जाते हैं। जो काउंसिलिंग में भी अड़े रहते हैं उस मामले को कोर्ट भेजने, रिपोर्ट दर्ज कराने जैसी कार्रवाई की जाती है।

-रश्मि सिंह, निरीक्षक परिवार परामर्श केंद्र

Posted By: Inextlive