हमेशा ओलंपिक में मेडल जीतने वाले प्रतिभागियों को देखा जाता है कि वे अपने मेडल को दांतों से जरूर काटते हैं। इस बार ब्राजील के रियो डे जेनेरियो में भी यहीं देखने को मिल रहा है। ऐसे में आपने सोचा है कि कभी यह एथलीट्स का पोज देने का एक तरीका है या फिर यह किसी वैज्ञानिक कारण से जुड़ा है। अगर नहीं पता हो आइए आज हम आपको बताते हैं कि ओलंपिक में मेडल को दांतों से क्‍यों काटते हैं खिलाड़ी...


जीत को दर्शाते: इस संबंध में इंटरनेशनल सोसाइटी ऑफ ओलंपिक हिस्टोरियन के प्रेसीडेंट डेविड का कहना है कि शायद पोज देने का तरीका वर्षों पुराना हो चुका है। यह पिक्चर 1991 में ब्रिटेन की ट्रैक टीम की है। इस पिक्चर में भी खिलाड़ी दातों से ही मेडल को काट रहे हैं। जिससे साफ है कि यह उनका मेडल जीत का आइकॉन सा बन गया है। इसके माध्यम से वे अपनी जीत को दर्शाते हैं। इसके अलावा और कुछ नही है। मेडल सोने का नहीं:
हालांकि अब इसे निभाने से कोई फायदा नही है क्योंकि इस साल सोने के मेडल में मात्र 1.34 प्रतिशत सोना ही शामिल है। मेडल में बाकी सब चांदी ही है। आखिरी बार शुद्ध गोल्ड मेडल 1912 में दिया गया था। वहीं 2010 में इससे जुड़ा एक रोचक मामला भी सामने आया था। एथलीट जर्मन लुगर मोलर रजत पदक काट रहे थे तभी उनका दांत टूट गया था। जब से अब एथलीट थोड़ा एलर्ट रहते हैं।

Interesting News inextlive from Interesting News Desk

Posted By: Shweta Mishra