तुम क्या जानों ये दुनिया को सरमाया देते हैं

बच्चों को मुस्कान बांटते ममता-माया देते हैं,

तेज धूप में इनसे मिलना तुमको शीतल कर देंगे,

ये ऐसे बूढ़े बरगद हैं जो सबको छाया देते हैं.

अतिक्रमण के बीच छिप रहे शहर के पुराने दरख्त

जंग ए आजादी के आज भी गवाह हैं शहर के कई पुराने पेड़

Meerut. शहर के इतिहास को अपने आप मे संजोये शहर में कई ऐसे दरख्त हैं जो सैकड़ों सालों से आज भी खडे़ हैं, जो ना सिर्फ अंग्रेजों के शासन काल में मेरठ के गवाह है बल्कि उससे पहले मुगलकाल का भी इतिहास अपने आप में संजोए है. हालांकि, प्रशासन की अनदेखी के चलते आज ये पेड़ अतिक्रमण के बीच गुमनाम हो चुके हैं, लेकिन इनकी विशालता अपने आप में इनका इतिहास बयां करती है.

गोशाला का वट वृक्ष

शहर के बीचोबीच मेट्रो प्लाजा से महज 100 मीटर दूरी पर पुरानी गोपाल गोशाला के प्रधान कार्यालय परिसर में 400 साल से अधिक पुराना बरगद का पेड़ अपनी विशालता के साथ ऐतिहासिक महत्व को दर्शाता है. गोपाल गोशाला के प्रधान कार्यालय को बंद हुए सालों बीत चुके हैं, लेकिन यह पेड़ दूरदराज से ही दिखाई देता है. आसपास के लोगों की मानें तो मुगल काल के दौरान से ही इस पेड़ की मान्यता है. होली, दीपावली के समय इस पेड़ के आसपास लोग एकत्र होकर साथ में त्योहार मनाते थे. वहीं अंग्रेजी शासन काल में स्वतंत्रता आंदोलन से संबंधित यहां कई महत्वपूर्ण बैठक आयोजित होती थी.

मंदिर के साथ बरगद की मान्यता

दिल्ली रोड स्थित धानक समाज में बाबा मंजनू नाथ मंदिर परिसर में खड़े 250 साल पुराने बरगद के पेड़ की धानक समाज में काफी मान्यता है. मंदिर के पुजारी पं. भरत झा ने बताया कि मंदिर में आने वाले लोग मंदिर में पूजन के साथ इस वट वृक्ष की भी पूजा करते हैं. साथ ही मन्नत मांगते हैं. हालांकि, अतिक्रमण के बीच यह पेड़ दुकानों के पीछे छिपता जा रहा है.

पहले स्वतंत्रता दिवस की याद

कैंट क्षेत्र के सीएवी इंटर कॉलेज परिसर में स्वतंत्रता दिवस की याद में 15 अगस्त 1947 को बरगद का पेड़ छावनी परिषद द्वारा लगाया गया था. आज भी यह पेड़ लोगों के आकर्षण का केंद्र है.

बापू ने दी थी प्रेरणा

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का मेरठ से खास लगाव रहा है. ऐसे में मेरठ कॉलेज में स्थित 1943 के वट वृक्ष के नीचे उन्होनें आजाद भारत की कहानी के कई किस्से रचे, भारत छोड़ो आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन आदि के दौरान कई बार मेरठ में पहुंचे महात्मा गांधी ने कॉलेज के इस वट वृक्ष के नीचे ही युवाओं को समय-समय पर देशप्रेम के लिए प्रेरित किया. वहीं क्रांति का इतिहास रचने के लिए साल 1943 में उन्होनें युवाओं को जागरुक कर क्रांति फैला दी, इस दौरान उन्हें अपनी कई मांगे पूरी कराने के लिए लगभग 21 दिन भूख हड़ताल भी करनी पड़ी, ये वो पेड़ है, जिसके नीचे न केवल महात्मा गांधी बल्कि काफी अन्य स्वतंत्रता सेनानियों ने देश की आजादी की जंग छेड़ने की सफल कहानियों को गढ़ा था.

Posted By: Lekhchand Singh