- एकेटीयू में डॉ। कलाम की पहली पुण्यतिथि पर युवा कॉन्क्लेव

- परमवीर चक्र विजेता योगेंद्र सिंह यादव, श्रीनाथ और दीया मिर्जा रहे मौजूद

LUCKNOW: डॉ। अब्दुल कलाम टेक्निकल यूनिवर्सिटी और डॉ। कलाम सेंटर की ओर से आयोजित दो दिवसीय डॉ। कलाम स्मारक अंतरराष्ट्रीय युवा कॉनक्लेव का समापन बुधवार को हो गया। कार्यक्रम में परमवीर चक्र विजेता योगेंदर सिंह यादव ने कारगिल युद्ध पर चर्चा की। इस कार्यक्रम में योगेंद्र सिंह के अलावा श्रीनाथ, दीया मिर्जा और कैलाश सत्यार्थी मौजूद रहे। इन लोगों ने कलाम की प्रतिभा को सलाम किया। इस मौके पर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, सासंद डिंपल यादव, प्राविधिक शिक्षा मंत्री फरीद महफूज किदवई, मंत्री अभिषेक मिश्रा, समेत कई लोग उपस्थित थे।

16 हजार फीट की उंचाई पर जीत का मंजर

योगेंद्र सिंह यादव ने बताया कि वह 16 साल 5 माह की उम्र में सिपाही के रूप में भर्ती हुए थे। उन्होंने बताया कि संघर्ष से हर मुकाम हासिल होता है। चाहे जितनी विषम परिस्थितियां हों, लेकिन दृढ़ संकल्प हो तो जीत सुनिश्चित है। उन्होंने कारगिल युद्ध की यादें साझा करते हुए कहा कि वह 16 हजार फीट की ऊंचाई पर तीन दिन पर पहुंचे थे। उस पर दुश्मन का कब्जा था और सीधी चढ़ाई थी। लेकिन, सैनिकों ने हिम्मत नहीं हारी। युद्ध के दौरान दुश्मनों हमसे ऊंची पहाड़ी पर बैठे होने के कारण दुश्मन की गोली शीघ्रता से हमें निशाना बना रही थी। धीरे-धीरे करके 'मेरे सारे साथी' शहीद होते चले गए। उनकी लाशों को देखकर बहुत रोना आया, लेकिन मन में देश सेवा का दृढ़ संकल्प था इसलिए दुश्मनों की दर्जनों गोली खाने के बावजूद भी बच गया। अचेत अवस्था में जब अपने साथियों को मिला मेरे हाथ-पैर सभी जगह गोली लगी हुई थी। उन्होंने मुझे अस्पताल पहुंचाया। वहां पर मैंने अपने सीनियर अधिकरियों को सूचना दी। वह नई रणनीति के साथ वहां पहुंचे और अपने सैनिकों का बिना नुकसान किए हुए हमने टाइगर हिल्स पर विजय प्राप्त की।

'इंजीनियरिंग से कम पेट तो भरेगा'

भारत के पूर्व तेज गेंदबाज जवागल श्रीनाथ ने कहा कि जीवन को सुचारु ढंग से चलाने के लिच् बच्चों को मन लगाकर शिक्षा ग्रहण करना चाहिए। फिर खेल के क्षेत्र में आना चाहिए। शिक्षा हर व्यक्ति के लिए बहुत अनिवार्य है। इसके माध्यम से रोजगार के अवसर मिलते हैं। खेल की परिपवक्ता भी शिक्षा से ही पूरी होती है। उन्होंने कहा कि मेरा शौक क्रिकेट था। खेलना मुझे पसंद है, लेकिन इससे पेट भरने के लिए एक मुकाम हासिल करना जरूरी है। इसलिए शिक्षा बहुत अनिवार्य है। मेरी इंजीनियरिंग ने इसका एहसास करा दिया इसलिए अपनच् बच्चों को पहले पढ़ाई के लिए प्रेरित किया है। इसके बाद उनकी अगर रुचि खेल में है तो शौक से जा सकते हैं। खेल के साथ पढ़ाई थोड़ा मुश्किल होती है। पहले लोगों को मैच देखने के लिए वीडियो को बार-बार आगे पीछे करना पड़ता था। लेकिन इंजीनियरिंग की वजह से इसका सरल साफ्टवेयर बनाया गया। जिससे खिलाडि़यों को अब काफी सहूलियत मिली। वहां मेरी पढ़ाई ही काम आई।

'कुदरत को अनदेखा ना करें लोग'

इस अवसर पर फिल्म अभिनेत्री दिया मिर्जा ने कहा कि अगर लोगों कोच्स्वच्छ पानी और हवा पर टैक्स देना पड़ता तो कीमत भी समझते। प्रकृति को अनदेखा करने का खामियाजा हम भुगत रहे हैं, बावजूद इसके कीमत समझ में नहीं आ रही है। उन्होंने कहा धरती बहुत सुंदर है। प्रकृति ने इसे सजाया है.च्स्वच्छ बनाया है। हमें इसे बिगाड़ने का अधिकार नहीं है। हम लापरवाह तरीके से इसके साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। जरा सोचिए, अगरच्स्वच्छ पानी और हवा ने मिले तो क्या होगा? मिर्जा ने एसिड अटैक शिकार लक्ष्मी के सवाल का जवाब देते हुए कहा कि मनुष्य की डिमांड हर दिन बढ़ रही है। इससे वह धरती और प्रकृति का दोहन कर रहा है। लेकिन अब इसे नियंत्रित करने का समय आ गया है। धर्म को बचपन में जानने की उत्सुकता के सवाल पर उन्होंने कहा कि तुम मेरी शान हो, मां ने कहा था। यह भी बताया था कि हर मजहब की सोच् अच्छाई हैच् अच्छाई से कभी मुंह मत मोड़ना। आज मैं वही करती हूं।

'कई देशों में किताबों से ज्यादा बंदूकें'

इस अवसर पर नॉबेल पुरस्कार विजेता डॉ। कैलाश सत्यार्थी ने युवाओं को देश और समाज के लिए आगे आने की अपील की। उन्होंने कहा कि एकच् बच्चे की शिक्षा इतनी ही महत्वपूर्ण है, जैसे एक अंधेरे कमरे में एक बल्ब जलाना। अगर पूरे देश व समाज को शिक्षित व विकसित बनाना है तो हमे सभच् बच्चों को शिक्षित करना होगा। शिक्षा और हथियारों पर होने वाले खर्चे के चौंकाने वाले आंकड़े पेश किए। उन्होंने बताया कि विश्व के 20 करोडच् बच्चे आज भी स्कूली शिक्षा से दूर हैं। पिछले चार से पांच सालों में ये संख्या बढ़ी है। वहीं मौजूदा समय में करीब 18 करोडच् बच्चों को बाल मजदूरी में आज भी लिप्त हैं। उन्होंने बताया कि करीब 22 अरब डॉलर खर्च करके सभच् बच्चों को स्कूल पहुंचाया जा सकता है। लेकिन, सरकारें इनपर खर्च करने के बजाए हथियारों पर खर्च करच ज्यादा पसंद करती हैं। केवल भारत सरकार ही डिफेंस पर करीब 12 सौ अरब रुपए खर्च करती है। उन्होंने कहा कि विश्व में कई देश ऐसे है, जहां पर किताबों से ज्यादा बंदूके और गोलियां हैं।

'पत्नी की परेशानी देख आया था आइडिया'

सस्ते सैनेट्री पैड देकर विश्व के 100 सबसे प्रभावशाली लोगों में जगह बनाने वाले पद्म श्री अरुणाचलम मुरुगनाथम ने युवाओं को आसपास की चीजों से जुड़ने को कहा। जीवन का सफर बयां करते हुए उन्होंने बताया कि उनकी शादी हुई। पत्‍‌नी पुराने कपड़े इकठ्ठा किया करती थी। तब जाकर मासिक धर्म के बारे में पता चला, लगा कि इससे तो बीमारी हो सकती है। इसलिए पैड खरीदने गया। 1990 के दशक 6 रुपए का पैड मिला हैरान रह गया। उसमें इस्तेमाल किए गए जानेच्कच्चे माल की कीमत तो सिर्फ 50 पैसा था। यहीं से सस्ता पैड बनाने का विचार आया। मशीन तैयार कर दी। आज उस मशीन का इस्तेमाल देश के 23 चच्यों के अलावा दुनिया के कई अन्य देशों में भी हो रहा है।

Posted By: Inextlive