India vs Bangladesh Pink Ball Test भारत में होने जा रहे पहले डे-नाइट टेस्ट के साथ ही पिंक बाॅल की चर्चा फिर से शुरु हो गई। इस मैच में टीम इंडिया पहली बार पिंक बाॅल से क्रिकेट खेलेगी। आइए जानें इस बाॅल का क्या है इतिहास और इसके बनने की कैसी है कहानी...


कानपुर। India vs Bangladesh Pink Ball Test भारत बनाम बांग्लादेश के बीच ईडन गार्डन में जब पहला डे-नाइट टेस्ट खेला जाएगा, तो विराट कोहली की टीम के हाथों में पहली बार पिंक बाॅल होगी। दुनिया की आठ टीमें इस पिंक बाॅल से क्रिकेट खेल चुकी हैं मगर भारत और बांग्लादेश के लिए यह पहला अनुभव होगा। क्रिकेट में पहले सिर्फ दो रंग की गेंद हुआ करती थी, एक लाल तो दूसरी सफेद। रेड बाॅल का इस्तेमाल टेस्ट मैच में होता है वहीं व्हाॅइट बाॅल से सीमित ओवर का क्रिकेट खेला जाता है। मगर अब पिंक कलर की एक नई गेंद ने जन्म ले लिया है, आइए जानें क्या है इसके बनने की कहानी।10 साल पहले बन गई थी ये गेंद


पहली पिंक बाॅल का निर्माण ऑस्ट्रेलिया की बाॅल मैन्यूफैक्चरिंग कंपनी कूकाबूरा ने किया था। कूकाबूरा ने सालों तक इस नई पिंक बाॅल को लेकर परीक्षण किया तब जाकर एक आर्दश गेंद का निर्माण हो पाया। पहली पिंक बाॅल गेंद तो 10 साल पहले बन गई थी मगर इसकी टेस्टिंग करते-करते पांच-छह साल और लग गए, तब जाकर 2015 में एडीलेड में ऑस्ट्रेलिया बनाम न्यूजीलैंड के बीच खेले गए पहले डे-नाइट टेस्ट में पिंक बाॅल से क्रिकेट खेला गया।पिंक कलर ही क्यों

सफेद जर्सी में टेस्ट मैच खेला जाता है तो इसलिए उसमें रेड कलर की गेंद का इस्तेमाल होता है ताकि गेंद आसानी से समझ में आए। उसी तरह वनडे रंगीन कपड़ों में होता है ऐसे में उसमें सफेद गेंद होती है। मगर डे-नाइट टेस्ट में पिंक कलर की गेंद का ही क्यों इस्तेमाल होता है, यह सवाल तमाम क्रिकेट फैंस के मन में आता होगा। इसको लेकर कूकाबूरा कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर ब्रेट एलियट कहते हैं, 'शुरुआत में हमने कई तरह के रंगों का इस्तेमाल किया, जैसे कि येलो और ऑरेंज। मगर इन रंगों की गेंदों में सबसे बड़ी समस्या थी कि, यह कैमरा फ्रेंडली नहीं थी। दरअसल मैच कवर कर रहे कैमरामैन ने शिकायत की थी ऑरेंज कलर को पिक कर पाना काफी मुश्किल होता है, यह गेंद दिखाई नहीं देती। इसके बाद सबकी सहमति से पिंक कलर को चुना गया।'16 तरह के पिंक शेड्स में चुना गया एक

एक बार पिंक कलर पर मुहर लगने के बाद सबसे बड़ी चुनौती थी कि पिंक कलर कैसा होगा। इसके लिए करीब पिंक के 16 शेड्स ट्राई किए गए। एलियट बताते हैं, 'हमने 16 तरह के पिंक कलर का परीक्षण किया और हर बार उसमें बदलाव देखने को मिला। अंत में एक आयडल शेड को सलेक्ट किया गया जिसकी बनी गेंद अब डे-नाइट टेस्ट मैच में इस्तेमाल होती है।सिलाई के धागे का कलर कैसा होपिंक कलर की नई क्रिकेट बाॅल को बनाना इतना आसान नहीं था। कलर चुनने के बाद कंपनी के सामने एक और समस्या थी कि इसकी सिलाई किस रंग के धागे से की जाए। इसके लिए तमाम प्रयोग किए गए। एलियट की मानें तो, कूकाबूरा कंपनी ने पिंक बाॅल की सिलाई सबसे पहले काले रंग के धागे से की थी। इसके बाद हरा रंग इस्तेमाल हुआ, फिर सफेद कलर के धागे का प्रयोग हुआ। अंत में हरे रंग की सिलाई पर सबकी सहमति बनी।  अंत में की जाती है रंगाई और घिसाई
एक बार कलर और सिलाई के धागे का चुनाव होने के बाद गेंद निर्माण की प्रक्रिया शुरु हो जाती है। एलियट कहते हैं, 'रेड और पिंक बाॅल की निर्माण प्रक्रिया में कोई बड़ा अंतर नहीं होता। अंदर से यह दोनों गेंदें एक तरह की होती है बस अंतर है तो इनकी कलर कोटिंग का। बाकि बाउंस, हार्डनेस और परफाॅर्मेंस के लिहाज से यह दोनों गेंद एक जैसी है। रेड बाॅल में लेदर को लाल रंग से रंग कर उसकी घिसाई की जाती है जबकि पिंक बाॅल में भी यही होता है, मगर इसमें एक प्रोटेक्टिव फिल्म भी चढ़ाई जाती है ताकि पिंक कलर जल्दी धुंधला न हो।'2009 में पहली बार पिंक बाॅल से खेला गया क्रिकेटक्रिकेट जगत में पहली बार पिंक बाॅल का इस्तेमाल एक वनडे मैच में किया गया था। ये मुकाबला ऑस्ट्रेलिया बनाम इंग्लैंड की महिला टीमों के बीच 2009 में खेला गया था। हालांकि पुरुष क्रिकेट में इसे आने में छह साल और लग गए।2015 में पिंक बाॅल से हुआ पहला डे-नाइट टेस्टपहला डे-नाइट टेस्ट 27 नवंबर 2015 को एडीलेड में ऑस्ट्रेलिया बनाम न्यूजीलैंड के बीच खेला गया था। जिसमें ऑस्ट्रेलिया को तीन विकेट से जीत मिली थी। टेस्ट क्रिकेट इतिहास में अब तक कुल 11 डे-नाइट टेस्ट खेले गए। कितनी टीमों ने खेला है डे-नाइट टेस्टअभी तक कुल आठ टीमें डे-नाइट टेस्ट का हिस्सा रही हैं। इसमें ऑस्ट्रेलिया, श्रीलंका, इंग्लैंड, न्यूजीलैंड, पाकिस्तान, साउथ अफ्रीका, वेस्टइंडीज और जिंबाब्वे शामिल हैं।

Posted By: Abhishek Kumar Tiwari