आगरा। संगीत भी योग का एक साधन है। इसका हर सुर योग के साथ जुड़ा हुआ होता है। गंभीर बीमारियों के इलाज में भी संगीत मददगार होता है।

संगीत का मूल आधार नाद

संगीत का मूल आधार नाद है। नाद दो प्रकार के होते हैं, आहद और अनाहद नाद। आहद नाद भौतिक है और अनाहद नाद अध्यात्मिक है। नाद ध्वनि को कहते हैं। यानि कि ध्वनि की तरंग। नाद का उद्देश्य नाद से अनाहद की ओर ले जाना है। पं.जीएल गुणे संगीत अकादमी के निदेशक डॉ। सदानंद ब्रह्माभट्ट के अनुसार संगीत के माध्यम से भी बहुत सी बीमारियों से निजात पाई जा सकती है। बतौर एक्यूरेसी होनी चाहिए। नाद की उत्पत्ति अग्नि और वायु के घर्षण से हुई है। यानि गरमी से। गले में भी स्वर यंत्र है। वाद्य यंत्र है, हवा निकलती है घर्षण होता है। बातचीत में आवाज निकालते हैं। पराकाष्ठा पर पहुंचते हैं तो अनाहद नाद की उत्पत्ति होती है। शरीर के विभिन्न चक्रों के माध्यम से हम ध्यान केंद्रित कर सकते हैं।

ध्यान देने का सही तरीका

डॉ। सदानंद ब्रह्माभट्ट ने बताया कि आप पहले एक नाद उत्पन्न करो, फिर उस नाद के साथ अपने मन को जोड़ो। मन को एकचित करने के लिए ही ओम का अविष्कार हुआ है। इस की ध्वनि का अनुसंधान करना ही नाद योग कहलाता है। उदाहरण के तौर पर आपने ओम का उच्चारण किया, तो उस ध्वनि को आप अपने कानों से सुनते भी हैं। इस उच्चारण की चोट से शरीर के किन-किन हिस्सों में खास प्रभाव पड़ रहा है, उसको ध्यान से जानने की कोशिश करें।

जब उच्चारण की जरूरत नहीं होती

ओउम् के उच्चारण का अभ्यास करते-करते एक समय ऐसा आता है, जबकि उच्चारण करने की आवश्यकता नहीं होती, आप सिर्फ आंखें और कानों को बंद करके भीतर उसे सुनें और वह ध्वनि सुनाई देने लगेगी। भीतर प्रारंभ में वह बहुत ही सूक्ष्म सुनाई देगी, फि र बढ़ती जाएगी।

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Posted By: Inextlive