PATNA: जिस उम्र में नौनिहालों को स्कूल में होना चाहिए उस उम्र में राजधानी के अनेक बच्चे चौक-चौराहों पर भीख मांग रहे हैं जिससे राज्य की छवि धूमिल हो रही है. हैरत की बात तो यह है कि इस काम के लिए कई बच्चों के माता-पिता ही उन्हें मजबूर करते हैं. यह मामला जब पटना के डीएम संजय अग्रवाल के संज्ञान में आया तो बड़ा अभियान चल पड़ा. योजना ऐसे बाल भिखारियों को आम जनता के सहयोग से 'खुला आश्रयÓ पहुंचाने की बनी. प्रशासन ने आनन-फानन में दो मोबाइल नंबर जारी कर आम जनता से ऐसे बच्चों की सूचना देने की अपील की. दूसरी तरफ आई नेक्स्ट ने भी कैंपेन की शुरुआत की. इसी कड़ी में पहले दिन रविवार को अधिकारियों की इस गंभीरता की तह तक पहुंचने के लिए पड़ताल की गई तो चौंकाने वाला खुलासा हुआ. पता चला डीएम के इस बड़े मिशन पर जिम्मेदार हर कदम पर लापरवाही कर रहे हैं. क्योंकि जिन बच्चों को 'खुला आश्रय' लाया गया है वहां भी उनकी मजबूरी का फायदा उठाकर उनसे काम कराया जा रहा था. पेश है पड़ताल की ग्राउंड रिपोर्ट.

शुरू हुआ स्टिंग का सफर  

जिला प्रशासन द्वारा बताए गए 'खुला आश्रयÓ का पता और नंबर लेकर रिपोर्टर एसपी वर्मा रोड पर पहुंचा। कहीं कोई प्रचार-प्रसार नहीं। लिहाजा, खुला आश्रय को ढंूढ़ पाना संभव नहीं हो रहा था। आस पास के लोगों से पूछने पर भी सही जानकारी नहीं मिल रही थी। तब रिपोर्टर ने प्रशासन द्वारा जारी मोबाइल नंबर पर कॉल करना शुरू किया। मोबाइल नंबर 7654972215 पर 6 बार से अधिक फोन करने के बाद भी रिस्पांस नहीं मिला। इसके बाद रिपोर्टर ने जिला बाल संरक्षण पदाधिकारी के नंबर 8406801009 पर फोन किया। कॉल अटेंड किया गया। फिर उन्होंने उस बिल्डिंग की पहचान बताई जहां संकरी जगह में खुला आश्रय चल रहा है।

 

आखिरकार, काफी तलाश के बाद एक बिल्डिंग पर 'खुला आश्रयÓ का छोटा सा बोर्ड दिखा। पता चला कि दूसरी मंजिल पर आश्रय चलता है। रिपोर्टर पहुंंचा तो एक फ्लैट में बोर्ड दिखा। वहां पहुंचते ही नजारा देख तस्वीर साफ हो गई। कई बच्चे जमीन पर बैठे थे। तीन महिलाएं अपने बच्चों को ले जाने के लिए बैठी थी और चाइल्ड लाइन से आई एक महिला बच्चों की जानकारी दर्ज कर रही थीं। थोड़ी देर प्रतीक्षा करने के बाद प्रोजेक्ट को-ऑर्डिनेटर मिलीं. 

बच्चे बना रहे थे पुड़ी 

फ्लैट के दो कमरों को देखने के बाद रिपोर्टर किचन में पहुंचा। वहां एक सज्जन बच्चों से पुड़ी बनवा रहे थे। हमें देखते ही वह सज्जन अलर्ट हुए और बच्चे भी गैस से दूर हट गए। दोनों बच्चे बाहर आकर हाथ धुलकर तेल और आटे का दाग मिटाने लगे। अब तस्वीर साफ हो गई थी कि 'खुला आश्रयÓ में क्या हो रहा है. 

 

तो जाया होगा समय

 

प्रशासन की अपील पर यदि आप बाल भिखारी को पकड़कर खुला आश्रय को सूचना देंगे तो आपका समय जाया होगा। रविवार को आई नेक्स्ट की स्टिंग में यह साफ हो गया है। ऐसे में जिम्मेदारों को निचले स्तर से सुधार की जरूरत है। जब तक समाज कल्याण द्वारा संचालित खुला आश्रय के जिम्मेदारों की लापरवाही नहीं दूर होती है तब तक अभियान को सफलता मिलने में संदेह है।

 

रिपोर्टर व को-ऑर्डिनेटर से बातचीत 

रिपोर्टर - कई बार आपका नंबर मिलाया लेकिन अटेंड नहीं हुआ?

को-ऑर्डिनेटर -मैं एक इंटरव्यू में थी और मोबाइल मुझसे दूर था।

रिपोर्टर- अगर कोई बाल भिखारी देख फोन करता तो कैसे आप अटेंड करती?

को-ऑर्डिनेटर - सब कुछ ठीक है, लेकिन मेरी भी कुछ व्यस्तताएं रहती हैं।

रिपोर्टर - तो फिर जिला प्रशासन की तरफ से आपका नंबर क्यों दिया गया?

को-ऑर्डिनेटर - यही तो मुझे भी नहीं समझ में आ रहा कि मेरा नंबर क्यों दिया गया। बेसिक फोन का नंबर देना चाहिए था।

रिपोर्टर - फिर भी आप तो जिम्मेदार हैं न ?

को-ऑर्डिनेटर - जी हां, जिम्मेदारी तो मेरी पूरी है। लेकिन चलिए गलती हो गई तो क्या किया जाए।

रिपोर्टर -डीएम का अभियान काफी सराहनीय है और ऐसे में इस तरह की लापरवाही इसे फेल करेगी?

को-ऑर्डिनेटर - अब नंबर बदलवाना पड़ेगा। बेस फोन का नंबर देने के लिए अधिकारी से बात करती हूं।

रिपोर्टर - आपके यहां कितने बच्चों की व्यवस्था है?

को-ऑर्डिनेटर - यहां एक साथ 25 बच्चों की व्यवस्था है।

रिपोर्टर - राजधानी में ऐसे बच्चों की संख्या अधिक है और एक साथ सौ आ गए तो?

को-ऑर्डिनेटर - तो क्या होगा ऊपर बड़ा सा हॉल है उसमें बच्चों को रख दिया जाएगा।

रिपोर्टर -डीएम ने अभियान चला दिया लेकिन व्यवस्था नहीं दी, ऐसा क्यों?

को-ऑर्डिनेटर -इस पर क्या कहें जो व्यवस्था हमारे पास है उसमें कहीं से कोई दिक्कत नहीं।

Posted By: Inextlive