- चार साल से इंसेफेलाइटिस से दिव्यांग बच्चे के अनुदान के लिए भटक रहा पिता

- दिव्यागों को सरकार देती है 1 लाख का अनुदान

GORAKHPUR: इंसेफेलाइटिस को लेकर केन्द्र हो या फिर प्रदेश सरकारें बेहद गंभीर है। बावजूद इसके सिस्टम सुधरने का नाम नहीं ले रहा है। इनकी अनदेखी से गोरखनाथ इलाके का एक परिवार पूरी तरह से टूट गया है। बच्चों की जिंदगी तो किसी तरह बच गई, लेकिन अब बेबस पिता अपने इन मासूमों को पालने के लिए सरकार की मदद का राह तक रहा है, लेकिन जिम्मेदारों की अनदेखी से अब तक उसका इंतजार पूरा नहीं हो सका है। पिता का आरोप है कि इंसेफेलाइटिस से दिव्यांग हुए बच्चे के अनुदान के लिए वह चार वर्षो से भटक रहें हैं, लेकिन कहीं पर भी उसकी सुनवाई नहीं हो रही है।

तीनों बेटे, सभी को आतें हैं झटके

गोरखनाथ इलाके के रामपुर नयागांव निवासी राम सजीवन कुमार के बड़े बेटे 12 साल के रितीश कुमार को 2013 में झटका आया था। उन्होंने जिसके बाद बेटे को मेडिकल कॉलेज के इंसेफेलाइटिस वार्ड में भर्ती कराया। वहां पर जांच के बाद बच्चे की रिपोर्ट में एईएस की बात पता चली। इंसेफेलाइटिस की वजह से रितीश दिव्यांग हो गया। उसके बाद से ही रितीश अपने दिव्यांग बच्चे के कागजात लेकर सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगा रहें हैं। देखते - देखते चार वर्ष बीत गए लेकिन अनुदान तो नहीं मिला हां दो छोटे बेटों को भी झटके की शिकायत शुरू हो गई।

सरकारी दफ्तरों में मिली तारीख

राम सजीवन ने बताया कि बड़े बेटे के इंसेफेलाइटिस से दिव्यांग होने के बाद से अनुदान के लिए मेडिकल कॉलेज से लगाए सीएमओ ऑफिस तक दौड़ते रहे। लेकिन जहां भी जाता साहब यही कहते कि बाद में आना। उनके बताई तारीख पर पहुंचने के बाद भी काम नहीं हो पा रहा है। रामसजीवन राजगीर मिस्त्री का काम करके किसी तरह परिवार की जिविका चला रहे हैं। ऐसे में तीनों बेटों का इलाज उनके लिए बड़ी चुनौती है। रामसजीवन का आरोप है उन्हें मेडिकल कालेज में कुछ सस्ती दवा तो मिल जाती है, लेकिन झटके की दवा जोकि काफी महंगी है, उन्हें बाहर से लेनी पड़ती है।

तो नहीं होती बीमारी

इंसेफेलाइटिस के रोकथाम के लिए शहर से लगाए गांव तक जागरुकता फैलाई जा रही है। लेकिन राम सजीवन के घर कोई अधिकारी नहीं पहुंचा। जिससे 2017 में रामसजीवन के सबसे छोटा बेटा 3 वर्षीय प्रतीक कुमार भी इंसेफेलाइटिस की चपेट में आ गया। वहीं उसके दूसरे बेटे पीयूष कुमार को भी आए दिन झटके आते रहते हैं। जिसके लिए उसकी मेडिकल कालेज में जांच भी हुई, लेकिन जांच में इंसेफेलाइटिस की पुष्टि नहीं हुई।

बाहरी डायग्नोस्टिक में करा लो जांच

अभी कुछ दिन पहले रामसजीवन अपने तीनों बेटों को लेकर मेडिकल कॉलेज गए थे। वहां पर डाक्टर ने उन्हें तीनों बच्चों की सिटी स्कैन जांच एक प्राइवेट डायग्नोस्टिक में कराकर लाने को कहा। इस पर उन्होंने डॉक्टर से कहा कि वहां जांच में ज्यादा पैसे लगेंगे साहब जांच यहीं पर करा दीजिए। जिसके बाद से वह मेडिकल कॉलेज में कई बार अपने बच्चों को लेकर जांच कराने गए, लेकिन जांच नहीं हुई।

मामला संज्ञान में नहीं है। इंसेफेलाइटिस से दिव्यांग को एक लाख रूपए का अनुदान दिया जाता है। वो मेरे पास आएं जो भी कमी होगी उसको दूर किया जाएगा। उनको अगर चार वर्ष से अनुदान नहीं मिला तो इसका भी कारण पता लगाया जाएगा। जितनी भी जल्दी हो सकेगा उन्हें अनुदान दिलाया जाएगा।

डॉ। एसके तिवारी, सीएमओ

Posted By: Inextlive