- प्रख्यात आलोचक नामवर सिंह के जाने के बाद हिंदी साहित्य में आया खालीपन, बनारस साहित्य जगत में शोक

VARANASI : यूं ही कोई सिंह नामवर नहीं होता, उम्र लगती है एक नाम को नामवर हो जाने में। यह बिल्कुल सच है क्योंकि आधुनिक हिंदी साहित्य जगत में आलोचना का शिखर पुरुष बनना आसान नहीं है। यह रुतबा हासिल करने वाले नामवर सिंह अब हमारे बीच नहीं रहे। दिल्ली में उन्होंने 93 वर्ष की अवस्था में अंतिम सांस ली। हिंदी ने अपने ऐसे होनहार लाल को सदा के लिए खो दिया जिसने आलोचना के क्षेत्र में नये मानक गढ़े। साहित्य में उनकी अखिल भारतीय पहचान रही है। वे जितना हिंदी के रचनाकारों पर गौर करते उससे कहीं अधिक दूसरी भारतीय भाषाओं के रचनाकारों के बीच भी प्रसिद्ध थे। हिंदी आलोचना की संवादी परंपरा के अंतिम बड़े आलोचक का जाना साहित्य में ऐसा खालीपन लेकर आया है जो अब शायद ही कभी भर सके। बनारस में शिक्षा ग्रहण करने वाले नामवर सिंह ने वैसे तो दिल्ली को अपना कर्मक्षेत्र बनाया पर वो बनारस से कभी दूर नहीं हुए। उनके जाने से बनारस का साहित्य जगत भी स्तब्ध है।


बीएचयू से पढ़ाई की शुरुआत

हिंदी के होनहार दूत नामवर सिंह का जन्म 1926 को चंदौली के जीयनपुर गांव में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा लेने के बाद नामवर सिंह ने आगे की पढ़ाई बीएचयू से की। यहीं से हिंदी साहित्य में एमए करने के बाद पीएचडी किया। यहां शिक्षक के रूप में कार्य भी किया। कुछ समय तक जोधपुर और सागर यूनिवर्सिटी में पढ़ाने के बाद नामवर सिंह जेएनयू में हिंदी के प्रोफेसर हुए।

 

राजनीति में भी आजमाया हाथ

हिंदी आलोचना के अग्रणी दूत रहे नामवर सिंह ने राजनीति में भी हाथ आजमाया था। पर यहां उन्हें सफलता न मिल सकी। बात 1959 की है, नामवर सिंह ने भारतीय कम्यूनिष्ट पार्टी के टिकट पर चंदौली के चकिया सीट से चुनाव लड़ा। लेकिन हार गये। इसके बाद उन्होंने दोबारा चुनाव नहीं लड़ा।

 

ये हैं रचनाएं

साहित्य अकादमी से नवाजे गये नामवर सिंह ने 'समीक्षा', 'छायावाद', विचारधारा जैसी किताबें लिखी हैं जो चर्चित रहीं। इसके अलावा उन्होंने 'इतिहास और आलोचना', 'दूसरी परंपरा की खोज', 'कविता के नये प्रतिमान', 'कहानी नई कहानी' और 'वाद विवाद और संवाद' जैसी प्रसिद्ध किताबें लिखीं। उनका साक्षात्कार 'कहना न होगा' भी काफी चर्चित रहा।

 

 

साहित्य की प्रगतिशील विचारधारा का सूर्य नामवर सिंह के रूप में अस्त हो गया। उन्होंने आलोचना के क्षेत्र में समय और संवाद के साथ न्याय करते हुए विचार रखे।

नीरजा माधव, साहित्यकार

 

नामवर सिंह ने प्रचलित सिद्धांतों और मुहावरों के समानांतर साहित्य में नये मूल्य, नये प्रतिमान व सिद्धांतों की स्थापना के लिए निरंतर संघर्ष किया। उनका जाना सहित्य जगत के लिए बड़ी क्षति है।

डॉ। रामसुधार सिंह, साहित्यकार

 

नामवर सिंह हिंदी आलोचना के शालाका पुरूष के रुप में सदा याद किये जाएंगे। वे वाद, विवाद से संवाद तक पहुंचते थे। काशी के पांडित्य की परंपरा ने उनमे आधुनिक रूपाकार पा लिया था।

ज्ञानेंद्रपति, साहित्यकार

Posted By: Inextlive