पति के न रहने पर इन मांओं ने ही बच्चों के लिए निभाई पिता की जिम्मेदारी ममता की छांव दी तो पिता की तरह आंसुओं को छिपाकर हर मुश्किल का किया सामना. जानें फादर्स डे पर ऐसी ही कुछ मांओं के बारे में....

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KANPUR : मां ममता की छांव होती है तो पिता हर मुश्किल का हल. मां त्याग की देवी है तो पिता बच्चों का अभिमान. पिता ही वो शख्स है जो हर गम और मुसीबतों को झेलकर बच्चों के चेहरों पर मुस्कान लाता है. हर मुश्किल से मुश्किल घड़ी में बच्चों के आगे चट्टान की खड़ा रहता है. पिता के अपने प्यार और सहानुभूमि को व्यक्त करने के लिए आज पूरी दुनिया में फादर्स डे सेलिब्रेट किया जा रहा है. कानपुर में भी इस स्पेशल डे सेलिब्रेशन होगा. इनमें कुछ बच्चे ऐसे हैं जिनके पिता तो इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन वो भी इस दिन को अपने 'स्पेशल फादर्स' के साथ पूरे उत्साह के साथ सेलिब्रेट करेंगे. ये स्पेशल फादर्स कोई और नहीं बल्कि उनकी मां हैं. जिन्होंने मां के साथ एक मजबूत पिता की भी भूमिका निभाई. कभी मां की आंचल में दुलराया तो जरूरत पड़ने पर पिता की तरह हर मुश्किल का डटकर सामना किया. बच्चों के लिए मां ही इस फादर्स-डे के सेलीब्रेशन की असली 'हकदार' हैं. आइए मिलते हैं इन स्पेशल फादर्स से..

परवरिश के लिए बनना पड़ा 'पिता'
गोविंदनगर में रहने वाली सेलिब्रिटी शेफ कविता सिंह ने 2011 में अपने पति अजय सिंह को एक एक्सीडेंट में खो दिया. उस वक्त उनके दो बेटों 10 साल के सूर्याश व 9 साल के दिव्यांश की परवरिश की जिम्मेदारी भी उनके सिर पर आ गई. कविता बताती हैं कि पति के देहांत के बाद ससुरालीजनों ने भी अपने हाथ पीछे खींच लिए. सीबीएसई बोर्ड में पढ़ रहे बच्चों को ज्यादा खर्च के कारण हटाने की चर्चा सुनते ही उन्होंने अपने बच्चों के लिए 'पिता' बनने की ठानी. अपने खाना बनाने के शौक को अपना करियर बनाया और उससे होने वाली अर्निग से बच्चों को अच्छी शिक्षा दी और उनके सभी शौक एक पिता की तरह पूरे किए. आज अपनी कुकरी क्लासेस से अपने बच्चों की अच्छी परवरिश कर रहीं कविता की आंखें अपने स्ट्रगल के दिनों को याद कर नम हो गई. इस पर उनके बच्चों ने आंखों के आंसू पोछते हुए उन्हें 'फादर्स-डे' विश किया.

पति की कमी पर भारी पिता की जिम्मेदारी
शहर श्यामनगर में रहने वाली ऊषा त्रिपाठी ने अपनी इकलौती बेटी प्रीति त्रिपाठी के लिए मां और पिता बन कर हर जिम्मेदारी को निर्वाह किया. ऊषा बताती हैं कि उनके पति कपिलदेव त्रिपाठी आर्मी में थे और 1987 में ऑन ड्यूटी एक हादसे में देहांत हो गया. पति की मौत से कुछ दिनों पहले ही इसी साल उनके घर उनकी बेटी प्रीति ने भी जन्म लिया था. पति की याद में दीन दुनिया भूल चुकीं ऊषा के जख्मों पर समय ने मरहम रखा तो बेटी की अच्छी परवरिश को ही अपनी लाइफ का उद्देश्य बना लिया. सीबीएसई स्कूल में पढ़ाई, पेरेंट्स मीटिंग में पार्टिसिपेट करने से लेकर बेटी को समाज की बुराइयों से दूर रखने तक की जिम्मेदारी को बाखूबी निभाया. खुद पति की कमी को महसूस करती रहीं, लेकिन कभी बेटी को एक पिता की कमी महसूस नहीं होने दी.

Posted By: Manoj Khare