LUCKNOW(11 Sept): हर साल एक दिन ऐसा आता है जब राजधानी की सड़कों पर हजारों साइकिलें दैनिक जागरण आईनेक्स्ट के मोस्ट पापुलर इवेंट बाइकथॉन में दौड़ते नजर आती हैं। इस इवेंट में शामिल अधिकारी, आम जनता और दर्जनों स्कूलों के स्टूडेंट्स लोगों से अपील करते हैं कि वे अधिक से अधिक साइकिलिंग करें, ताकि उनकी सेहत फिट रहे और राजधानी की हवा को भी प्रदूषण से बचाने में भी अपना योगदान दें। इस बार यह इवेंट 22 सितंबर को होने जा रहा है। इसके रिजिस्ट्रेशन फॉर्म भी आ गए हैं और बड़ी संख्या में लोग इसके शामिल होने के लिए रजिस्ट्रेशन करा रहे हैं। अगर आप भी पर्यावरण संरक्षण की दिशा में अपना योगदान देना चाहते हैं तो इस इवेंट में आपका स्वागत है।

साइकिलिंग को लेकर मुझे बचपन से ही शौक था। कर्नाटक के गुलबर्गा में क्लास 3 की पढ़ाई के दौरान ही मैने साइकिलिंग शुरू कर दी थी। हमारे शहर में एक रुपये प्रति घंटा की दर से किराये पर साइकिल मिलती थी। जवाहर नवोदय विद्यालय में हॉस्टल में रहने के दौरान स्कूल से बाहर जाने के लिये मैं किराये पर साइकिल लेता था। यह सिलसिला करीब तीन साल तक चलता रहा। बीदर डिस्ट्रिक्ट में ग्रेजुएशन में दाखिला लिया। कॉलेज कैंपस से शहर की दूरी करीब 12 किलोमीटर थी। लिहाजा, शहर आने-जाने के लिये मैने पहले साइकिल और फिर बाइक खरीदी। जिसे समय-समय पर चलाता था। हालांकि, एक्सरसाइज के लिये साइकिलिंग हॉस्टल कैंपस में भी करता रहा। सिविल सर्विसेज में सेलेक्शन के बाद भी साइकिलिंग का शौक जारी रहा और जब मौका मिलता, मैं साइकिलिंग जरूर करता था। शुरुआत से ही मुझे तीन चीजों जॉगिंग, साइकिलिंग और स्विमिंग का शौक रहा है। जो कि आज भी समय मिलने पर जरूर करता हूं। मैने हाल ही में ई साइकिल ली है, जो मैन्युअल के साथ बैटरी से भी ऑपरेट होती है। मैं सुबह एक्सरसाइज के साथ ही साइकिलिंग जरूर करता हूं।

राजशेखर

एमडी, यूपीएसआरटीसी

एक तरफ दोस्त, एक तरफ से मै करता था साइकिलिंग

मेरी शुरुआती पढ़ाई भिवानी के जवाहर नवोदय विद्यालय में हुई। स्कूल के ही हॉस्टल में रहता था, जहां साइकिलिंग की परमीशन नहीं थीं। स्कूलिंग खत्म होने के बाद भिवानी स्थित इंजीनियरिंग कॉलेज में एडमिशन लिया। कॉलेज घर से थोड़ी दूर था, लिहाजा आने-जाने के लिये मैने रेंजर साइकिल ली और उसी से कॉलेज जाता था। फिर मेरा सेलेक्शन आईआईटी दिल्ली में हो गया। जहां हॉस्टल से एकेडमिक ब्लॉक तक जाने के लिये मैने 400 रुपये की सेकेंड हैंड साइकिल खरीदी। इस साइकिल से मैं अपने क्लासमेट विकास मिश्र के साथ जाता था। एक तरफ से विकास साइकिल चलाता और मैं बैठता जबकि, दूसरी तरफ से मैं साइकिल चलाता और विकास चलाता था। सिविल सर्विस में सेलेक्शन होने पर जब पहली पोस्टिंग पीलीभीत में एसडीएम के रूप में हुई तो वहां भी मैं साइकिल से ही ऑफिस आता-जाता था। इसके बाद प्रयागराज में भी खूब साइकिलिंग की। हालांकि, अब साइकिलिंग के लिये वक्त नहीं मिल पाता। मैने बेटे अथर्व को भी साइकिल व हेलमेट गिफ्ट की है, वह बंगले के लॉन में हर रोज साइकिल चलाता है।

कौशल राज शर्मा

डीएम, लखनऊ

अंकल ने गिफ्ट की थी पहली साइकिल

मैं बाइबर्थ पहाड़ी इलाके का हूं। वहां साइकिल को लेकर इतना क्रेज नहीं था। मैंने पहली बार साइकिल 11वीं क्लास में आकर चलाई थी। वह साइकिल मेरे अंकल ने मुझे गिफ्ट की थी। इसके बाद लंबे समय तक मैंने स्टूडेंट लाइफ साइकिलिंग की। पहाड़ी इलाके में साइकिल चलाने उतारने में तो मजा आता है लेकिन चढ़ाने में बहुत मेहनत लगती है। मैं देहरादून और अन्य शहरों में जमकर साइकिल चलाई है। साइकिल चलाने के दो सबसे ज्यादा फायदे है। पहला आप फिट रहते है और दूसरा इससे वातावरण को शुद्ध बनाए रखने में अपनी जिम्मेदारी भी पूरी करते है। हम तो लोग रोड पर भले ही साइकिल न कर पा रहे है, इस क्रेज को पूरा करने के लिए जिम में जाकर साइकिलिंग कर रहे है। बचपन और स्टूडेंट लाइफ में चलाई साइकिल से जो स्टेमिना हमारी बॉडी में बनाता है वह लॉग लाइफ तक हमें फिट रखता है।

- कलानिधि नैथानी, एसएसपी

Posted By: Inextlive