इच्छाशक्ति होते हुए भी जब मन में चिंता बनी रहती है तो आप उसी अनुभव को उत्पन्न करने में सहायता करते हैं जिससे आप भयभीत हैं। ऐसे लोगों के साथ भी आवश्यकता से अधिक मेल-जोल रखना उत्तम नहीं है जो सदा अपनी और दूसरों की बीमारियों एवं दुर्बलताओं के विषय में चर्चा करते रहते हैं।

परमहंस योगानंद। अक्सर हम किसी रोग या अन्य कारणों से भयभीत रहते हैं। भय मनुष्य को सतर्क रहने का एक साधनमात्र माना जा सकता है, ताकि व्यक्ति पीड़ा से बचा रह सके, लेकिन यदि यह आप पर हावी हो जाए, तो इससे मुक्त होना ही उचित है। भय से हमेशा ग्रस्त रहना कठिनाइयों को दूर करने के हमारे प्रयास को केवल कमजोर ही करता है। सतर्कतापूर्ण भय तो बुद्धिमानी है। इसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है।

नकारात्मक लोगों से दूर रहें

जब आप उचित आहार के सिद्धांत जानते हैं, आप यह तर्क प्रस्तुत करते हैं, 'मैं वह सामान नहीं खाऊंगा, क्योंकि यह मेरे शरीर के लिए ठीक नहीं है।' तर्कहीन आशंका रोग का कारण है। यह सभी बीमारियों का वास्तविक रोगाणु है। रोग का भय रोग को बढ़ाता है। इच्छाशक्ति होते हुए भी जब मन में चिंता बनी रहती है, तो आप उसी अनुभव को उत्पन्न करने में सहायता करते हैं, जिससे आप भयभीत हैं। ऐसे लोगों के साथ भी आवश्यकता से अधिक मेल-जोल रखना उत्तम नहीं है, जो सदा अपनी और दूसरों की बीमारियों एवं दुर्बलताओं के विषय में चर्चा करते रहते हैं। इस तरह की चर्चाएं आपके मन में भय के बीजों को रोपित कर सकती हैं।

विचार में छिपी है शक्ति

यदि आप अपने स्वास्थ्य के कारण भयभीत रहते हैं, तो जितना संभव हो सके, सुखद वातावरण में रहने की कोशिश करें। स्वयं को सकारात्मक विचारों और भावनाओं द्वारा प्रेरित करते रहें। ऐसे लोगों की संगति करें, जो दृढ़ और सकारात्मक प्रवृत्ति के हों। विचार में बहुत शक्ति होती है। आपने देखा होगा कि अस्पताल में कार्यरत लोग बीमार लोगों के बीच रहने के बावजूद कम ही बीमार पड़ते हैं। दरअसल, वे अपनी दृढ़ विश्वास की मनोवृत्ति के कारण ऐसा कर पाने में सक्षम हो पाते हैं। उन्हें अपनी ऊर्जा और दृढ़ विचारों के द्वारा जीवनी शक्ति प्राप्त होती है।

मन को भय से दूर ले जाएं

इसी तरह जब आपकी आयु बढ़ने लगे, तो आप दूसरों को अपनी आयु न बताएं। जैसे ही आप सामने वाले को अपनी आयु बताते हैं, वे आपमें उस आयु को देखने लगते हैं और इसे गिरते हुए स्वास्थ्य एवं जीवन शक्ति के साथ जोड़ देते हैं। बढ़ती हुई आयु का विचार चिंता उत्पन्न करता है और इस प्रकार आप स्वयं को शक्तिहीन महसूस करने लगते हैं। सावधान रहें, लेकिन भयभीत नहीं। बीमारी के कारण को दूर करने के लिए उत्तम प्रयास करें और फिर पूर्णतया निर्भीक रहें। यदि आप रोगों से भयभीत रहने लगेंगे, तो आप जीवन का आनंद बिल्कुल नहीं ले पाएंगे। आप जिस वस्तु से भयभीत रहते हैं, अपने मन को उससे दूर ले जाएं। उसे ईश्वर पर छोड़ दें। ईश्वर पर विश्वास रखें।

चिंता को त्याग दें

प्राय: कष्ट केवल चिंता के कारण होते हैं। इसलिए चिंता करना त्याग दें। एक बात याद रखें कि ज्यादातर बीमारियां भय के कारण होती हैं, इसलिए यदि आप भय छोड़ दें, तो आप तुरंत उनसे मुक्त हो जाएंगे। आप स्वस्थ महसूस करें। प्रत्येक रात्रि को सोने से पहले स्वयं से यह कहें कि ईश्वर मेरे साथ हैं, मैं सुरक्षित हूं। इससे आप अद्भुत सुरक्षा का अनुभव करेंगे।

विंड चाइम लगाते समय इन 5 बातों का रखें ध्यान, घर में आएगा सौभाग्य

सकारात्मक सोच से बदल सकता है आपका जीवन, जानें कैसे?

Posted By: Kartikeya Tiwari