ऐसे फुटबॉल मैच कम ही होते हैं जब वर्तमान पर अतीत का इतना दबाव हो. जर्मनी और अर्जेंटीना के बीच होने वाला विश्व कप का फाइनल एक ऐसा मुकाबला है जिस पर अतीत के भूत भी परछाईं है. खास कर 1986 और 1990 के विश्व कप के फाइनल की. ये दो फाइनल ऐसे मुकाबले थे जिनमें झांक कर 2014 के फाइनल की रणनीति बनाई जा सकती है क्योंकि इन मैचों में और इस फाइनल में अद्भुत समानताएं हैं. आखिर कौन पड़ेगा किस पर भारी और क्‍यों पढि़ए उमंग मिश्र का विस्‍तृत विश्‍लेषण...


(क) 1986 वर्ल्ड कप फाइनल :कप्तान माराडोना और कोच कार्लोस की रणनीतिसबसे पहले 1986 की बात करते हैं. अर्जेंटीना की टीम माराडोना के चमत्कार के बल पर फाइनल तक पहुंची थी वैसे ही जैसे इस बार मेसी टीम को इस मुकाम तक लाए हैं. अगर अर्जेंटीना को फाइनल जीतना है तो कप्तान मेसी और कोच सबेला को कप्तान माराडोना और कोच कार्लोस बिलार्डो की तरह सोचना होगा. फाइनल के लिए माराडोना और बिलार्डो ने रणनीति बदल थी. माराडोना को पता था कि जर्मनी माराडोना को गोल मारने से रोकने में ही पूरी ताकत खर्च कर देगा. वैसा ही हुआ. जर्मनी ने अपने सर्वश्रेष्ठ मिडफील्डर लोथर मैथायस को पूरी तरह माराडोना को मार्क करने में लगा दिया और इसके अलावा माराडोना की क्राउडेड मार्किंग के लिए कई डिफेंडरों को माराडोना के रोमिंग जोन के नजदीक रखा. फाइनल में मारोडोना ने गोल मारा नहीं मरवाया


नतीजा ये हुआ कि वल्डानो को फ्री स्पेस मिला और माराडोना ने खुद गोल करने के बजाए वल्डानो को अपना स्कोरर बनाया उस मैच में. माराडोना थोड़ा पीछे हटकर खेले और वल्डानो और बुरुचागा के लिए मौके बनाते रहे. अर्जेंटीना के लिए दागे तीन में से दो गोल वल्डानो और बुरुचागा के थे. विनिंग गोल भी वल्डानो का था. एक गोल ब्राउन ने मारा था. सेमीफाइनल में दो गोल दागने वाले माराडोना ने फाइनल में एक भी गोल नहीं दागा था. अर्जेंटीना की जीत की सबसे बड़ी वजह यही थी कि माराडोना ने गोल मारे नहीं मरवाए थे और ये वाकायदा प्लानिंग के तहत किया था.मेसी बनाएं हिगुएन और अगुएरो के लिए मौकेअगर अर्जेंटीना को 2014 का फाइनल जीतना है तो मेसी पर से गोल का प्रेशर हटाना होगा. मेसी प्ले मेकर की भूमिका में हिगुएन और अगुएरो के लिए मौके बना सकते हैं. मिडफील्ड से डी मारिया को बुरुचागा की तरह यूज कर सकते हैं. अगर मेसी को उसी तरह यूज किया जाए जैसे 1986 के फाइनल में माराडोना को किया गया था जो रिजल्ट भी सेम हो सकता है. इस मैच में भी मेसी की जबरदस्ट मार्किंग होगी और उनके लिए गोल मारना आसान नहीं होगा. हालांकि मेसी माराडोना की तरह चमत्कारिक प्लेयर हैं और वो हैवी मार्किंग के बाद भी गोल मार सकते हैं पर मैच की रणनीति चमत्कार के भरोसे नहीं बनाई जाती.(ख) 1990 वर्ल्ड कप फाइनल :जीत के लिए दोहरानी होगी 1986 की रणनीति

बस 1986 के फाइनल में झांकने की जरूरत है. अर्जेंटीना के पास आज भी मेसी के रूप में माराडोना है पर क्या हिग्वेन बन पाएंगे वल्डानो और डि मारिया बन पाएंगे बुरुचागा. मैच का फैसला इसी से होगा क्योंकि मेसी तो अपना काम करेंगे ही. गोल न मार पाए तो गोल के मौके बनाएंगे. उधर ब्राजील पर एकतरफा जीत से जर्मनी के हौसले बुलंद हैं. टीम बेहतर मजबूत है और एक टीम की तरह खेलती है. लाम का अनुभव, क्लोसा की स्ट्राइकिंग एबिलिटी और ओ जील की न थकने वाली दौड़ है जर्मनी के पास. वो गोल के लिए किसी एक खिलाड़ी पर निर्भर नहीं हैं.नया माराडोना मिलेगा या नया लोथर मैथायसक्लोसा, लाम, ओ जील, के अलावा केदीरा और श्वाइंसटाइगर भी हैं. पोडोस्की जैसा दिग्गज बेंच पर बैठा है. ऐसे में कागज पर तो जर्मनी मजबूत है पर ये भी ध्यान रखना होगा कि अर्जेंटीना के डिफेंस ने नीदरलैंड्स जैसी टीम को 120 मिनट तक एक भी गोल नहीं करने दिया था जबकि अर्जेन रॉबेन और वॉन पर्सी जैसे खतरनाक खिलाड़ी नीदरलैंड्स के पास थे. ऐसे में ये फाइनल न सिर्फ जोरदार होगा बल्कि ऐतिहासिक होगा. चाहे कोई भी टीम जीते दुनिया एक नया इतिहास बनते देखेगी. दुनिया को या तो एक नया माराडोना मिलेगा या फिर एक नया लोथर मैथायस.

Posted By: Satyendra Kumar Singh