बॉलीवुड के पुराने बेहतरीन कलाकारों में से एक शशि कपूर को रविवार 10 मई को दादा साहेब फाल्‍के पुरस्‍कार से नवाजा गया. अब यह भले सिर्फ एक नाटकीय संयोग है लेकिन उतना ही सच भी है कि वह शशि कपूर जिन्‍होंने 1975 में फ‍िल्‍म 'दीवार' में यादगार डायलॉग बोला 'मेरे पास मां है.' उनको मदर्स-डे पर हिंदी सिनेमा का यह सबसे बड़ा और सम्‍मानजनक पुरस्‍कार मिला.

ये महज संयोग है!
केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अरुण जेटली ने पृथ्वी थिएटर में आयोजित खास समारोह के दौरान कई बॉलीवुड हस्तियों की मौजूदगी में यह पुरस्कार शशि कपूर को दिया. वैसे ये पुरस्कार शशि कपूर को पिछले महीने दिल्ली में आयोजित नेशनल अवॉर्ड सेरेमनी में दिया जाना था, लेकिन व्हील चेयर पर होने और स्वास्थ्य ठीक न होने के कारण वह वहां न पहुंच सके. इसको देखते हुए खास उनके लिए मदर्स-डे के दिन रविवार को उन्हें मुंबई में ही ये पुरस्कार दिया गया.
आखिर क्यों चुना जाता है उम्र की इस पड़ाव पर
शशि कपूर को इन परिस्थितयों में अवॉर्ड दिए जाने पर एक सवाल तो जरूर खड़ा होता है. वह यह कि फिल्म जगत में अपने योगदान को लेकर इन हस्तियों को पुरस्कार देने का फैसला लेने में इतनी देर भला क्यों की जाती है. इतनी देर में उन्हें पुरस्कार के लिए क्यों चुना जाता है, जब उनका स्वास्थ उनका साथ देना छोड़ने लगता है. ऐसे में अक्सर देखने में यह आता है कि कई बार किसी एक्टर को या तो मरणोपरांत यह पुरस्कार दिया गया, या फिर तब जब वह इतना बूढ़ा हो चला कि वह खुद पुरस्कार को लेने नहीं आ सकता. यहां तक कि वह न तो उस पुरस्कार को पहचान सकता है और न ही उसके साथ्ा खुशियों को बांटने वाले उसके परिजनों को पहचान सकता है. शशि कपूर ही जिंदगी के एक पड़ाव पर इस पुरस्कार को पाने वाले पहले एक्टर नहीं है. इससे पहले भी कई बड़े कलाकारों के साथ कुछ ऐसा ही हुआ. आइए जाने इन एक्टर्स के बारे में...
पृथ्वीराज कपूर
1972 में पृथ्वीराज कपूर ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया था. 1971 में इनके लिए दादा साहेब फाल्के पुरस्कार की घोषणा की गई और 1972 में मरणोपरांत इन्हें पुरस्कार दिया गया. उस समय इनका स्वर्गवास हो जाने के कारण इनकी जगह एक्टर और फिल्म मेकर राज कपूर ने उनके नाम का यह दादा साहेब फाल्के पुरस्कार स्वीकार किया.
राज कपूर
1988 में बॉलीवुड के शो-मैन राज कपूर नई दिल्ली में एक इवेंट के दौरान पुरस्कार लेने पहुंचे. यहीं समारोह के दौरान अचानक उनकी तबियत बिगड़ गई और भाग कर यहीं से उन्हें ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस (AIMS) ले जाया गया. यहां एक महीने भर्ती रहने के बाद उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया. उस समय वह 63 साल के थे और काफी बीमार भी थे. उनकी स्थिति भी ऐसी नहीं थी कि उन्हें दिल्ली ले जाया जा सके, लेकिन सिर्फ उनकी ही जिद पर उनका परिवार उन्हें दिल्ली ले जाने के लिए तैयार हुआ.
सत्यजीत रे
इस देश के एक महान फिल्म मेकर सत्यजीत रे को 1985 में यह पुरस्कार देने का फैसला लिया गया. उस समय वे 64 साल के थे. सरकार ने 1992 में उनका नाम भारत रत्न (सर्वोच्च नागरिक सम्मान) के लिए चुना. ये वही साल था, जब उन्होंने दुनिया का अलविदा कह दिया था. यही नहीं उनकी मृत्यु से ठीक एक दिन पहले ही उन्हें अकेडमी ऑफ मोशन पिक्चर आर्ट एंड साइंसेस की ओर से ऑस्कर लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड दिया गया था.
सोहराब मोदी
एक्टर और फिल्म मेकर सोहराब मोदी को दादा साहेब फाल्के पुरस्कार 1980 में मिला. उस समय वह 82 साल के थे. उसी के चार साल बाद उनका निधन हो गया.
  
वी शांताराम
बॉलीवुड के फिल्म मेकर वी शांताराम को 1985 में पुरस्कार मिला. उस समय वह 83 साल के थे और पुरस्कार लेने के पांच साल बाद उनका देहांत हो गया था.
बी आर चोपड़ा
बी आर चोपड़ा (बीच में बैठे) को दादा साहेब फाल्के पुरस्कार प्राप्त करने पर उन्हें सम्मानित करने के लिए परिवार के सदस्यों समेत एक फंक्शन का आयोजन किया गया. यह कार्यक्रम उनके घर जूहू रेसिडेंस में आयोजित किया गया था.
प्राण
ऑनस्क्रीन निगेटिव किरदारों के लिए अपनी पहचान बनाने को लेकर 2013 मई में सरकार की ओर से प्राण को दिए गए पुरस्कार को सूचना एवं प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने उन्हें उनके आवास पर दिया. वह उस समय 93 साल के थे और खराब स्वास्थ्य के कारण दिल्ली में पुरस्कार को लेने के लिए आयोजित समारोह में नहीं पहुंच सकते थे.
सुचित्रा सेन गुप्ता   
बंगाली एक्ट्रेस सुचित्रा सेन (1931-2014) 2005 में दादा साहेब फाल्के पुरस्कार की दावेदार थीं. सुचित्रा, जिन्होंने कोलकाता में एकांतप्रिय जीवन जिया और 70 के दशक के बाद अपने घर के बाहर एक कदम भी नहीं रखा, उन्होंने इस पुरस्कार को लेने से सिर्फ इसलिए इंकार कर दिया क्योंकि वो उम्र के इस पडाव पर अब अपनी फोटो नहीं क्लिक करवाना चाहती थीं.

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Posted By: Ruchi D Sharma