Allahabad : कहने को पूरब का आक्सफोर्ड कही जाने वाली इलाहाबाद यूनिवर्सिटी को सेंट्रल यूनिवर्सिटी का स्टेटस मिला हुआ है. बड़ी उम्मीदों के साथ यहां स्टूडेंट एडमिशन भी लेते हैं. उनका सपना होता है कि यूनिवर्सिटी न सिर्फ उन्हें डिग्री देगी बल्कि यहां से पढ़कर निकलने के बाद उन्हें अनएम्प्लायड नहीं रहना पड़ेगा. शायद इसी सोच के साथ स्टेट गवर्नमेंट ने एम्प्लायमेंट इंफार्मेशन एंड गाइडेंस ब्यूरो को यूनिवर्सिटी से जोड़ा था. लेकिन करेंट में इसकी जो दशा है उससे तो नवप्रवेशियों को बहुत उम्मीद लगाना ही नहीं चाहिए.

जुलाई से शुरू हो जाती थी तैयारी

2011 से पहले भी इंप्लायमेंट ब्यूरो की करेंट जैसी ही स्थिति थी। लेकिन 2011 में वाइस चांसलर प्रो। एके सिंह के प्रयासों के चलते पहली बार इंप्लायमेंट ब्यूरो ने जोरदार तरीके से कैरियर मेला आर्गनाइज किया। उस समय कैरियर मेले में शामिल होने के लिए सैकड़ों युवाओं की होड़ मच थी। जगह-जगह स्टूडेंट्स के हुजूम को संभालने के लिए स्टॉल लगाए गए थे। इसके लिए जुलाई से ही तैयारी स्टार्ट हो गई थी. 

तब आई थी RBI और Airforce

2011 के कैरियर मेले में एयरफोर्स ने भी दस्तक दी थी। एयू में एयरफोर्स का आना बड़ी बात थी। कैरियर मेले में शामिल होने वाले स्टूडेंट्स का जोश उस समय दोगुना हो गया था। जब मोनिरबा (मोतीलाल नेहरु इंस्टीट्यूट आफ रिसर्च एंड बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन) में आरबीआई (रिजर्व बैंक आफ इंडिया) ने भी जोरदार एंट्री मार दी। तब रिजर्व बैंक ने दस लाख के पैकेज पर स्टूडेंट गरिमा श्रीवास्तव का सेलेक्शन किया था। इसके अलावा प्राइवेट सेक्टर की कई कम्पनियां भी कैम्पस सेलेक्शन के लिए आई थीं।  

Financial crisis है वजह

यूं तो सेंट्रल यूनिवर्सिटी के पास पैसे की कोई कमी नहीं है और हर साल एयू को यूजीसी (यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन) से मिलने वाली धनराशि में से करोड़ों रुपए एक्सपेंसेस के अभाव में रिटर्न भी कर दिया जाता है। लेकिन इंप्लायमेंट ब्यूरो की दयनीय हालात के लिए फाइनेंसियल क्राइसेस ही बड़ा रिजन है। यही कारण है कि 2012 में गिने-चुने ही सेलेक्शन हो सके। करेंट की हालत तो और भी खराब है। यहां जो उंगलियों पर गिनने लायक इंप्लाई नजर आते थे। वे भी ब्यूरो पर ताला लगाकर अक्सर गायब रहते हैं। हाल यह है कि अगस्त आ चुका है और नोटिस बोर्ड पर एक इंफार्मेशन तक चस्पा नहीं है।

कौन ले risk

एक्स डायरेक्टर प्रो। रंजना प्रकाश के समय ब्यूरो को एयू एडमिनिस्ट्रेशन से दो लाख रुपए सालाना मिला करते थे। जिसे बाद में बढ़ाकर 5 लाख कर दिया गया। यह बजट भी ब्यूरो को सही ढंग से रन करवा पाने में सफिसिएंट नहीं रहा। ऊपर से एक्सपेंसेस के भुगतान में एयू एडमिनिस्ट्रेशन के लचर रवैये ने भी इसे ठप करवा देने में कोई कसर नहीं छोड़ी। हाल यह है कि करेंट में ब्यूरो का जिम्मा संभालने वाले भी अपनी जेब से पैसा खर्च करने का कोई रिस्क नहीं लेना चाहते।   

गुम हो गया proposal

कुछ समय पहले ब्यूरो की ओर से एक प्रपोजल तैयार किया गया था। जिसमें ब्यूरो को हाइटेक स्वरुप देने के लिए लाइबे्ररी की स्थापना, गेस्ट रुम, रेस्ट रुम, ई लर्निंग फैसिलिटी, कैरियर एडवाइजर व इंप्लाइज के अप्वाइनमेंट, ब्राशर की छपाई, ब्यूरो की वेबसाइट आदि शामिल था। लेकिन इस प्रपोजल का बाद में क्या हुआ। कुछ पता नहीं चल सका।

एम्प्लायमेंट ब्यूरो को पटरी पर लाने के प्रयास जारी है। कई कम्पनियों से बात चल रही है। इसके आगे मैं कुछ नहीं बता सकता।  

डॉ। एनके शुक्ला, डायरेक्टर इंप्लायमेंट ब्यूरो

ब्यूरो की ओर से दिए गए एक्सपेंसेस के बिल का भुगतान किया जाता है। मांगने पर एडवांस भी दिया जाता है। इसके अलावा बेहतरी की कोशिशें की जाएंगी तो निश्चित रुप से सहयोग किया जाएगा।

पीके सिंह, फाइनेंस आफिसर एयू 

 

Posted By: Inextlive