सैम मानेकशॉ इंड‍ियन आर्मी का एक ऐसा नाम ज‍िसे शायद ही कभी भुलाया जा सके। पूर्व सेनाध्यक्ष फील्ड मार्शल की रैंक पाने वाले पहले अधिकारी सैम ने आज ही के द‍िन 27 जून 2008 इस दुन‍िया को अलव‍ि‍दा कहा था। देश के ल‍िए इन्‍होंने अपनी ज‍िंदगी के 40 साल लगा द‍िए। जब-जब देश पर खतरा आया यह हमेशा डटकर खड़े रहे। ऐसे में आइए इस खास द‍िन पर जानें देश के ल‍िए 5 युद्ध लड़ने वाले 5 स्‍टार जनरल सैम मानेकशॉ के बारे में...


पहला युद्ध:सैम मानेकशॉ 1939 से 1945 तक चले द्वितीय विश्वयुद्घ में बर्मा अभियान के दौरान सेतांग नदी के तट पर जापानियों से लोहा ले रहे थे। इस दौरान पेट में कई गोलियां लगने से उन्हें रंगून के सैनिक अस्पताल में भर्ती कराया गया। इस दौरान वह ठीक होकर दोबारा युद्ध के मैदान पर जा डटे थे। दूसरा युद्ध: इसके बाद सैम मानेकशॉ ने विभाजन के बाद 1947-48 की कश्मीर की लड़ाई में भाग लिया। इसमें उन्होंने एक जाबांज सैनिक की तरह देश के लिए कई बार अपनी जान जोखिम में डाली थी। जम्मू और कश्मीर अभियान के दौरान भी उन्होंने युद्ध निपुणता का परिचय दिया।  पांचवां यु्द्ध:


सैम मैनकशॉ ने 1971 में हुए भारत-पाकिस्तान युद्ध में भी मुख्य भूमिका निभाई थी। इसमें पाकिस्तान को हराने के लिए जीत का सेहरा उनके सिर ही बांधा गया। इस युद्ध के बाद से फील्ड मार्शल मानेकशॉ राष्ट्रीय महानायक के रूप में देखे जाते हैं। देश सेवा का जुनून: सैम मानेकशॉ का पूरा नाम सैम होरमूजजी फ्रामजी जमशेदजी मानेकशॉ था। 3 अप्रैल 1914 को अमृतसर में एक पारसी परिवार जन्में सैम मानेकशॉ को बचपन से ही देश सेवा का जुनून था।

कई बड़े पुरस्कार मिले: भारत के पहले फील्ड मार्शल बनाए गए सैम मानेकशॉ को कई बड़े पुरस्कार मिले। इन्हें 1968 में पद्म भूषण से नवाजा गया। 1972 में पद्म विभूषण से सम्मानित हुए थे। इतना ही नहीं 1 जनवरी 1973 को सैम मानेकशॉ को फील्ड मार्शल के मानद पद से सम्मानित किया गया।अंतिम सांस ली: सैम मानेकशॉ 15 जनवरी, 1973 में सेना प्रमुख के पद से सेवानिवृत्त हुए। हालांकि बाद में बढ़ती उम्र का असर हुआ और बीमारियों ने इन्हें घेर लिया। करीब 94 की उम्र 27 जून 2008 को सैम मानेकशॉ ने दुनिया को अलविदा कह दिया।न कलाम, न ही राजेंद्र प्रसाद, ये हैं निर्विरोध चुने जाने वाले भारत के एकमात्र राष्ट्रपति

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Posted By: Shweta Mishra