RANCHI: झारखंड से बाहर या रांची से दूसरे जिले जाने वालों के 5000 से ज्यादा अप्लीकेशंस पेंडिंग हैं। जी हां, झारखंड के लोग जो दूसरे राज्यों में लॉकडाउन में फंसे हुए हैं उन्हें लाने की व्यवस्था तो सरकार ने कर दी है, लेकिन दूसरे राज्यों और जिलों के जो लोग यहां फंसे हुए हैं उन्हें भेजने की कोई प्लानिंग नहीं की गई है। ये लोग 40 दिन पहले भी फंसे थे और आज भी फंसे हैं। ऐसे लोगों ने कई बार अपने गांव-घर जाने का प्रयास भी किया, लेकिन सफलता नहीं मिली। वहीं, सरकार की ओर से बनाए गए प्रज्ञाम एप से भी कोई मदद नहीं मिली। अब ये लोग थक-हार कर इन दिनों डीटीओ ऑफिस के बाहर लॉकडाउन में सोशल डिस्टेंसिंग की ऐसी-तैसी करने को मजबूर हैं। स्टेट से बाहर जाने की अनुमति लेने के लिए डीटीओ कार्यालय के बाहर मजमा लग रहा है। आखिर ये लोग करें तो क्या करें। फोन पर भी तो डीटीेओ साहब अवेलेबल नहीं हैं। उन्होंने अपने फोन को ही नॉटरिचेबल कर रखा है। सिर्फ डीटीेओ ही नहीं, अलग-अलग राज्यों के लिए नियुक्त तमाम अधिकारी भी पहुंच से दूर हो गए हैं। इधर, आम लोग अपने घर जाने को लेकर बेताब हैं।

क्या है प्रज्ञाम एप

दरअसल, ग्रिड प्रज्ञाम एप के जरिए हर दिन पांच सौ से भी अधिक आवेदन आ रहे हैं। खुद डीटीओ ने इसकी पुष्टि की है। हर दिन पांच सौ लोगों के आवेदन आ रहे हैं। इसमें गंभीर स्थिति देखकर ही राज्य से बाहर जाने की अनुमति दी जाती है। यह एप 30 मार्च को लांच हुआ था, जिसके माध्यम से लगभग आठ हजार लोगों को पास जारी किया जा चुका है। लेकिन यह सिर्फ जिला के अंदर आवागमन के लिए ही परमिशन देता है।

प्रक्रियाओं में उलझ रहे आवेदक

जिला या राज्य से बाहर जाने के लिए डीआईजी पास जारी करेंगे। सिर्फ दो परिस्थिति में ही पास जारी किए जा रहे हैं। पहला यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु हो चुकी हो तो उसके परिजन व दूसरा कोई गंभीर बीमारी हो तो इलाज के लिए बाहर जाना हो। ऐसी परिस्थिति में ही पास जारी किया जाता है। लेकिन इस सुविधा को भी इतना जटिल बना दिया गया है कि आम नागरिक प्रक्रियाओं में ही उलझकर रह जा रहा है.पहले डीटीओ लेवल से ही पास जारी होता था। लेकिन फर्जी केस सामने आने के बाद इसकी जिम्मेवारी डीआईजी को दे दी गई है। राज्य से बाहर जाने वाले विभाग द्वारा जारी यूआरएल लिंक पर अप्लीकेशन कर सकते हैं, लेकिन यह यूआरएल भी इन दिनों नहीं खुल रहा।

केस 1

होटल में काम करते थे। लॉकडाउन में होटल बंद हो चुका है। अब नौकरी नहीं रही। एक महीने से बैठै हैं। पैसा भी धीरे-धीर खत्म हो रहा है। इसलिए अब अपने घर जाना चाहते है, लेकिन कोई उपाय नहीं सुझ रहा। यह कहना है मृत्युंजय कुमार का। वह बताते हैं कि ई पास के लिए आवेदन दिए थे। उसपर कोई निर्णय नहीं लिया गया है। सरकार बाहर से तो अपने श्रमिकों को बुला रही है। लेकिन हम लोग जो बाहर से आए थे, उनके जाने का कोई इंतजाम नहीं कर रही।

केस 2

पापा के इलाज के सिलसिले में रांची आया था। मेंदाता में पापा भर्ती थे। उनका इलाज सक्सेसफुली हो चुका है। अब हमलोग वापस लौटना चाहते हैं। लेकिन कोई इंतजाम नहीं हो रहा। यह कहना है प्रवीण कुमार का। यहां कोई व्यवस्था नहीं होने के कारण हॉस्पिटल के ही लॉज में रहना पड़ रहा है। ऑनलाइन अप्लाई किया हुआ है। सारे डॉक्यूमेंट्स लेकर भटक रहा हूं। हमलोग को भेजवाने का भी उपाय सरकार को करना चाहिए।

केस 3

हमलोग पुरुलिया के रहने वाले हैं। मां के घर आए थे। अब यहां फंस गए हैं। बार-बार ससुराल से फोन आ रहा है। घर आने को कहा जा रहा है। लेकिन सुविधा नहीं होने के कारण हमलोग नहीं जा पा रहे हैं। यह कहना है निलिमा चौधरी का। वह कहती हैं कि बच्चों का भी रो-रोकर बुरा हाल है। डीटीओ से संपर्क करने का कई बार प्रयास किया लेकिन सफल नहीं हो पाया। हर दिन डीटीओ ऑफिस का चक्कर लगा रहे हैं। कोई फायदा नहीं हो रहा।

हर दिन पांच सौ से भी अधिक अप्लीकेशंस आ रहे हैं। सिर्फ गंभीर परिस्थिति में ही पास इश्यू हो सकता है। लोगों को इस बात को समझना होगा। ऑफिस आने से कुछ नहीं होगा। सब काम ऑनलाइन हो रहा है।

-संजीव कुमार, डीटीओ, रांची

Posted By: Inextlive