- बड़े शहरों में टीनेज प्रेग्नेंसी के केस ज्यादा आ रहे सामने

- पॉक्सो एक्ट के बारे में भी जागरूक करने की जरूरत

LUCKNOW:

फेडरेशन ऑफ आब्स्ट्रेटिक्स एंड गायनोकोलॉजी सोसाइटिज ऑफ इंडिया देश में अपनी 258 सोसाइटी के माध्यम से 250 से ज्यादा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र गोद लेगी। जहां माह में दो दिन महिलाओं से संबंधित बीमारियों और उपचार में मदद की जाएगी। पीएम योजनाओं के तहत प्रसूता कार्यक्रम, टीकाकरण, डिलीवरी के बाद सलाह जैसे काम वहां किये जाएंगे। इसके साथ हाई रिस्क वाली महिलाओं को तुरंत आगे इलाज के लिए भेजने में मदद भी की जाएगी। यह जानकारी 63वीं ऑल इंडिया कांग्रेस ऑफ आब्स्ट्रेटिक्स एंड गायनोकोलॉजी के दौरान डॉ। अल्पेश गांधी ने दी। इन्हें सोसाइटी का प्रसिडेंट नियुक्त किया गया है। इस दौरान स्वास्थ मंत्री जय प्रकाश सिंह मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद रहे।

पॉक्सो एक्ट को लेकर जागरूकता जरूरी

प्रोग्राम में अहमदाबाद से आये डॉ। एमसी पटेल ने बताया कि पॉक्सो एक्ट को लेकर विशेष रूप से गांव के लोगों को जागरूक करने की जरूरत है। इस एक्ट के अनुसार 18 से कम उम्र में कोई लड़की प्रेग्नेंट होती है तो उसे रेप केस के तौर पर देखा जाता है। लोगों को इसकी जानकारी नहीं है। इसके साथ टीनेज प्रेग्नेंसी भी बड़े शहरों में ज्यादा देखने को मिल रही है।

डर से आगे नहीं आतीं

कानपुर से आई डॉ। किरण पांडे ने बताया कि केयरिंग फॉर सर्वाइवल ऑफ सेक्सुअल असॉल्ट जरूरी है। किसी महिला के साथ सेक्सुअल असॉल्ट होता है तो उसको शारीरिक और मानसिक समस्या होती है, लेकिन परिवार के लोग समाज के डर से आगे नहीं आते। वहीं लड़कों के साथ भी सेक्सुअल असॉल्ट होता है, लेकिन इसकी ज्यादा रिपोर्ट नहीं होतीं। एनसीआरबी के आकड़ों के अनुसार 73 मिलियन लड़के और 150 मिलियन लड़कियां सेक्सुअल असॉल्ट का शिकार हुये हैं। ऐसे में फास्ट ट्रेक कोर्ट बनाने के साथ विक्टिम की साइकोलाजिकल केयर करना जरूरी है।

कम उम्र में एग नहीं बनने की समस्या

मुंबई से आई डॉ। रिश्मा पाई ने बताया कि आजकल 25-26 की उम्र में पीरियड ऊपर-नीचे हो रहा है। देखने को मिलता है कि यूटरस में एग्स बनने बंद होने या ओवरी फेल हो गई है। जिसे प्रीमेच्योर ओवरियन इनएफिसिएंसी या फेल्योर कहा जाता है। इसके लिए एंटी मलेरियन हार्मोन यानि एएमएच ब्लड जांच होती है। जिसमें एग की जानकारी मिलती है। यह जांच किसी भी उम्र में की जा सकती है। इसके साथ अगर एग कम या नहीं बन रहे तो एग फ्रीजिंग तकनीक अपना सकते हैं।

थायरायड से मां-शिशु दोनों को खतरा

लखनऊ की डॉ। निधि जौहरी ने बताया कि थायरायड की समस्या से मां और बच्चे दोनों को खतरा हो सकता है। हाइपो और हायपर दो प्रकार के थायरायड होते हैं। इसमें हायपो थायरायड के केस करीब 33 परसेंट महिलाओं में होता है। इससे गर्भधारण में मुश्किलें आती हैं। पहली तिमाही में गर्भपात ही हो जाता है। साथ ही बच्चे को मानसिक और शारीरिक कई बीमारियां हो सकती हैं।

Posted By: Inextlive