बिहार में चुनावी संग्राम का बिगुल बज चुका है पर खबर है बिहार में कई राजनीति के धुरंधर सिर्फ सारथी बनेंगे योद्धा नहीं।

नीतीश लालू दोनों मैदान के बाहर
बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की ओर से साफ कर दिया गया है कि वह चुनाव नहीं लड़ने वाले हैं। वैसे भी 30 साल के राजनीतिक करियर में नीतीश अब तक सिर्फ एक बार चुनाव जीत सके हैं, वो भी 1985 में जब कांग्रेस की जुझारू नेता इंदिरा गांधी के खिलाफ लहर में दूसरों को बैठे बिठाए मौका मिल गया था। उसके बाद से वो या तो राज्यसभा में एमपी रहे या फिर बिहार विधान परिषद के सदस्य। उनके सर्मथन में जेडीयू नेताओं का कहना है कि नीतीश पूरे बिहार के नेता हैं इसलिए किसी एक चुनाव क्षेत्र तक उनके सीमित होने का कोई मतलब ही नहीं है। उनकी एमएलसी की सदस्यता भी 2018 में खत्म हो होगी इस कारण से भी वो विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए तैयार नहीं हैं।
वहीं बिहार के पूर्व के मुख्यिमंत्री लालू प्रसाद यादव तो कानून के पेंच में फंसे हैं इसलिए वो चुनाव लड़ ही नहीं सकते। चारा घोटाले में फंसे लालू पर 2013 में अदालत के आदेश के पर छह साल तक चुनाव लड़ने पर निषेध लगा हुआ है।
राबड़ी ने भी पीछे खींचे कदम बेटे बेटियों को लड़ायेंगी चुनाव
वहीं पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने भी साफ कर दिया कि वह विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेंगी, लेकिन उनके दोनों बेटे और बड़ी बेटी मीसा भारती के चुनाव लड़ने की संभावना है। लड़ेंगे। राबड़ी ने कहा है कि आगामी चुनाव में तेजप्रताप और तेजस्वी चुनाव मैदान में उतरेंगे। और वह अपने दल के प्रत्याशियों के लिए प्रचार करेंगी। गठबंधन के सहयोगी दल भी अगर चाहेंगे तो वह उनके प्रत्याशियों के लिए भी प्रचार करेंगी। खबर है कि तेजप्रताप को वैशाली के महुआ से और तेजस्वी यादव को राघोपुर से विधानसभा चुनाव लड़ाने की चर्चा है। बेटी मीसा जो लोकसभा चुनाव हार चुकी हैं कहां से लड़ेंगी ये अभी स्पष्ट नहीं है।
भाजपा के सुशील मोदी ने भी खींचे हाथ
बिहार बीजेपी के बड़े नेता सुशील मोदी का हाल भी कुछ नीतीश कुमार जैसा ही है। वे भी विधान परिषद के सदस्य हैं और उनका कार्यकाल भी 2018 में पूरा होगा। हालांकि उनके पटना सेंट्रल से चुनाव लड़ने की बात हो रही थी लेकिन उन्होंने कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखाई। वे खुद ही मानते हैं कि वे एमएलसी रहना ज्यादा पसंद करते हैं क्योंकि एमएलए की तरह वोटरों की अनगिनत समस्यांओं से जूझना उन्हें खास नहीं भाता। हालाकि वे कहते है कि इससे बची ऊर्जा को वे दूसरे सकारात्मक कार्यों में खर्च करते हैं।
बहरहाल कमाल का गणित है बिहार में जहां नेताओं को सत्ता तो चाहिए पर संघर्ष करना वे पसंद नहीं करते।

 

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Posted By: Molly Seth