- पीएमसीएच को डेजिगनेटेड हॉस्पीटल घोषित किया गया

- ट्रेंड डॉक्टर बाकी को बताएंगे कैसे बरतें इलाज के दौरान सावधानी

- डॉक्टर्स को डबल प्रोटेक्शन लेयर के बारे में बताया गया

PATNA: इबोला वायरस से पूरी दुनिया में एक खौफ का वातावरण है। यह अब तक का सबसे घातक वायरस है। इसके लिए बचाव कैसे किया जाए, इस संबंध में पीएमसीएच के माइक्रोबायलॉजी डिपार्टमेंट के डॉक्टरों को ट्रेनिंग के लिए बिहार गवर्नमेंट ने दिल्ली में ट्रेनिंग के लिए भेजा था। हालांकि अभी तक इंडिया में इबोला वायरस का कोई केस रिपोर्ट नहीं किया गया है, लेकिन यह इतना घातक है कि एक केस से भी स्थिति भयावह हो सकती है। इसे ध्यान में रखते हुए इंडिया के विभिन्न स्टेट में इसके इलाज की पूर्व तैयारी को अमल में लाने के मकसद से यह ट्रेनिंग-कम-वर्कशॉप का आयोजन ख्7 अक्टूबर से ख्9 अक्टूबर तक सेंट्रल गवर्नमेंट के डायरेक्टरेट ऑफ हेल्थ के द्वारा स्पानसर्ड था। यह इंडियन इंस्टीट्यूट आफ पब्लि्क एडमिनिस्ट्रेशन में किया था। इसमें पंजाब, यूपी सहित अन्य स्टेट के करीब ब्0 डॉक्टर पार्टिसिपेट किए थे।

क्या है इबोला वायरस

इस बारे में पीएमसीएच में माइक्रोबायजलिस्ट डॉ विजय कुमार ने बताया कि इसका वायसर फ्रुड बैट में रहता है। यह एक ऐसी बीमारी है जो ह्यूमन-टू-ह्यूमन ट्रांसमिट होता है। यह अब तक के सभी वायस से सर्वाधिक घातक है। ह्यूमन बॉडी फ्ज्यूड से यह तेजी से दूसरे में स्प्रेड कर जाता है। जैसे-पसीना, खून, थूक, सीमन आदि। इसका वायरस करीब ख्क् दिन तक में घातक रूप अख्तियार कर लेता है। इस समय तक यक क्लीनिकली विजिबल हो जाता है। सेंट्रल अफ्रीका के एरियाज में इसके केसेज सबसे अधिक मिला है।

ट्रेनिंग में क्या था खास

दिल्ली में इबोला वायरस से प्रभावितों के इलाज और सेफ्टी मेंजर के बारे में ट्रेनिंग से लौटे डॉ विजय ने बताया कि चूंकि यह सबसे अधिक घातक वायरस है इसमें क्लीनिकल जानकारी बेहद महत्वपूर्ण है। इसके पेशेंट को इलाज करने में डॉक्टरों को भी वायरस आसानी से ट्रांसमीट कर सकता है। इसमें डॉक्टर किस प्रकार से इबोला के पेशेंट का इलाज करेंगे, इस बारे में बताया गया। इसके अलावा इसके वैक्सीन पर भी संक्षेप में डिस्कशन किया गया। इसमें एम्स, दिल्ली से डॉ गुलेरिया और एनसीडीसी के डॉ शशि खरे समेत अन्य सीनियर डॉक्टरों की टीम ने ट्रेनिंग में जानकारी दी।

इबोला के लक्षण

यह बहुत तेजी से बॉडी में असर करता है। तेज बुखार, वामिटिंग, पेट में दर्द और ब्लीडिंग। इसके बाद यह शरीब के प्रमुख अंगों को फेलियर कर देता है।

क्या है बचाव

डब्ल्यूएचओ के मानकों के मुताबिक इसमें कम्यूनिटी इंगेजमेंट महत्वपूर्ण है। चूंकि इसमें केसेज में मृत्युदर करीब म्भ् परसेंट से ज्यादा है। ऐसे में इसके बचाव के लिए मेडिकल प्रोटोकॉल और जानकारी से ही केसेज में कमी लायी जा सकती है। इसमें प्रमुख है केस मैनेजमेंट, सर्विलिएंस, कान्टैक्ट ट्रैकिंग और हॉई क्वालिटी की लैब सुविधा। इसमें बचाव करने वाले को रैपिड रेस्पांश टीम कहा जाता है। इसमें डॉक्टर, नर्स, पारामेडिकल व अन्य शामिल हैं।

सेफ्टी मेजर पर भी हुई बात

दिल्ली में ट्रेनिंग कम वर्कशॉप के दौरान सेफ्टी मेजर पर भी हुई बात। इस बारे में डॉ विजय ने बताया कि आम तौर पर स्वाइन फ्लू में सिंगल लेयर प्रोटेक्शन की जरूरत होती है, लेकिन इबोला में डबल लेयर प्रोटेक्शन की जरूरत पड़ती है। इसके लिए स्पेशल ट्रेनिंग दी गयी। इसमें यूज होने वाले प्रोटेक्शन ड्रेस के बारे में भी रिहरसल कर बताया गया। इसे पर्सनल प्रोटेक्शन इक्यूपमेंट कहा जाता है।

बिहार टीम में ये थे शामिल

-डॉ विजय कुमार, माइक्रोबायलॉजिस्ट, पीएमसीएच

-नवीन कुमार रमण, माइक्रोबायलॉजिस्ट, पीएमसीएच

-संजीव कुमार, एनेस्थेटिक, आईजीआइएमएस

-इसके अलावा गया से एक डॉक्टर शामिल थे।

Posted By: Inextlive