नई दिल्ली का रामलीला मैदान आज़ादी की लड़ाई पाकिस्तान पर जीत इमरजेंसी राममंदिर आंदोलन और जनलोकपाल जैसे अनगिनत ऐतिहासिक हलचलों का गवाह रहा है. लेकिन आमतौर पर आंदोलन के मूड में दिखने वाला रामलीला मैदान शनिवार को जीत की खुशी में झूम रहा था.


नई दिल्ली का रामलीला मैदान आज़ादी की लड़ाई, पाकिस्तान पर जीत, इमरजेंसी, राममंदिर आंदोलन और जनलोकपाल जैसे अनगिनत ऐतिहासिक हलचलों का गवाह रहा है. लेकिन आमतौर पर आंदोलन के मूड में दिखने वाला रामलीला मैदान शनिवार को जीत की खुशी में झूम रहा था.शनिवार को इसी रामलीला मैदान में मात्र बारह महीने पुरानी आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने और दिल्ली के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. और वे दिल्ली के सातवें मुख्यमंत्री बन गए.यही वजह थी कि अन्ना के जनलोकपाल आन्दोलन के विपरीत इस बार पुलिस का रुख भी दोस्ताना था और मंच से अरविंद केजरीवाल के भाषण में भी सत्ता की नरमी महसूस की जा सकती थी.जनलोकपाल आंदोलन करीब ढाई साल के अपने सफर में आंदोलन से राजनीतिक दर और फिर दिल्ली की सत्ताधारी पार्टी बन गया.


बदलाव के एक अन्य पहलू को इस बात से समझा जा सकता है कि रामलीला मैदान में छाई रहने वाली टोपी पर लिखा स्नोगन 'मैं भी अन्ना' से बदलकर 'मैं हूं आम आदमी' हो गया.रामलीला मैदान में बड़ी तादात में जुटे समर्थक अरविंद के भाषण में क्रांति और ऐतिहासिक बदलाव की झलक देख रहे थे.

लेकिन दिल्ली का रामलीला मैदान तो जिन्ना, जयप्रकाश से लेकर बाबा रामदेव तक, अनगिनत आन्दोलनों और क्रांतियों के ऐलान और उनकी अंतिम परिणिति का गवाह रहा है.सैनिक शिविर से हुई शुरुआतआज़ादी की लड़ाई के दौरान महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू, सरदार पटेल और दूसरे नेताओं के लिए विरोध जताने का ये सबसे पसंदीदा मैदान बन गया था.इसी मैदान पर मोहम्मद अली जिन्ना से जवाहर लाल नेहरू तक और बाबा राम देव से लेकर अन्ना हज़ार तक सारे लोग इसी मैदान से क्रांति की शुरुआत करते रहे हैं.कहा तो ये भी जाता है कि यही वो मैदान है जहां वर्ष 1945 में हुई एक रैली में भीड़ ने जिन्ना को मौलाना की उपाधि दे दी थी.लेकिन मोहम्मद अली जिन्ना ने मौलाना की इस उपाधि पर भीड़ से नाराज़गी जताई और कहा कि वो राजनीतिक नेता है न कि धार्मिक मौलाना.इस मैदान का इस्तेमाल सरकारी रैलियों और सत्ता के खिलाफ आवाज़ बुलंद करने जैसी दोनों ही परिस्थितियों में किया गया.दिसंबर 1952 में रामलीला मैदान में जम्मू-कश्मीर के मुद्दे को लेकर श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने सत्याग्रह किया था. इससे सरकार हिल गई थी. देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने साल 1956 और 57 में मैदान में विशाल जनसभाएं की.

जयप्रकाश नारायण ने इसी मैदान से कांग्रेस सरकार के ख़िलाफ़ हुंकार भरी थीब्रिटेन की महारानी का संबोधनओजस्वी कवि रामधारी सिंह दिनकर की प्रसिद्ध पंक्तियां, "सिंहासन खाली करो कि जनता आती है" यहाँ गूँजा और उसके बाद विराट रैली से डरी सहमी इंदिरा गांधी सरकार ने 25 -26 जून 1975 की दर्मयानी रात को आपातकाल का ऐलान कर दिया था.फरवरी 1977 में विपक्षी पार्टियों ने एक बार फिर इसी मैदान को अपनी आवाज़ जनता तक पहुंचाने के लिए चुना.जनता पार्टी के बैनर तले बाबू जगजीवन राम के नेतृत्व में कांग्रेस छोड़कर आए मोरारजी देसाई, चौधरी चरण सिंह और चंद्रशेखर के साथ भारतीय जनता पार्टी के तत्कालीन रूप जनसंघ के नेता अटल बिहारी वाजपेयी इसी मैदान के मंच पर एक साथ नज़र आए.1980 और 90 के दशक के दौरान विरोध प्रदर्शनों की जगह बोट क्लब बन गई थी लेकिन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के कार्यकाल के दौरान बोट क्लब पर प्रदर्शन पर रोक की वजह से इसी मैदान को भारतीय जनता पार्टी ने राम मंदिर आंदोलन के शंखनाद के लिए चुना.यहां पर कांग्रेस, भाजपा सहित अन्य दलों, संगठनों व धार्मिक संगठनों के कई ऐतिहासिक कार्यक्रम होते रहे हैं.
ये वो ही रामलीला मैदान है जहां बाबा रामदेव ने काले धन और भ्रष्टाचार के खिलाफ अपना अनशन किया था लेकिन 5 जून 2011 उनके अनशन पर दिल्ली पुलिस ने लाठियां बरसा कर उन्हें वहां से हरिद्वार भेज दिया था.भविष्य के गर्भ में क्या छिपा है, कोई नहीं जानता लेकिन हम इतना तो कह ही सकते हैं कि देश की सरकारें बदलती रही हैं लेकिन रामलीला मैदान वहीं का वहीं है.

Posted By: Subhesh Sharma