-आपदा में अपनों को गवां चुके लोगों के साथ भद्दा मजाक

-पुलिस ने मात्र एक का किया अंतिम संस्कार

-शेष लाशों का क्या हुआ नहीं चल सका पता

-आरटीआई के तहत मांगी गई जानकारी में हुआ खुलासा

DEHRADUN : केदारघाटी में अपनों को खो चुके लोगों के साथ पुलिस ने भद्दा मजाक किया है। इस बात का खुलासा सूचना अधिकार अधिनियम के तहत मांगी गई जानकारी में हुआ है। जिसमें बताया गया है कि केदारघाटी में आपदा के दौरान भ्ब्भ् लोगों की मौत हुई, लेकिन अंतिम संस्कार मात्र एक का किया गया। ऐसे में सवाल यह है कि बाकि बची लाशों का क्या किया गया? क्या उन्हें जंगली जानवरों की भूख शांत करने के लिए रखा गया या फिर उन्हें सड़ने के लिए खुले में छोड़ दिया गया?

सेना की लेनी पड़ी मदद

दरअसल, गत वर्ष क्म् जून को उत्तराखंड में आई भीषण जल त्रासदी को कौन भूल सकता है। जनपद रुद्रप्रयाग, में जल त्रासदी ने जमकर तांडव मचाया था। कई लोग काल के गाल में समां गए। संपर्क मार्ग ध्वस्त होने के चलते राहत बचाव कार्यों को करने में प्रशासन के साथ पुलिस के हाथ पांव फूल गए। सेना को राहत और बचाव कार्य करने के लिए फील्ड में उतरना पड़ा, जो लोग इन जगहों से मौत की जंग लड़कर दून पहुंचे उन्होंने जो हकीकत बयां की वह हैरान करने वाली थी। बताया कि पहाड़ों में जगह-जगह लोग मरे पड़े हैं। यह संख्या हजारों में होगी। बावजूद सरकार की तरफ से जारी किया गया आंकड़ा मात्र महज बहुत कम बताया गया।

एक का हुआ अंतिम संस्कार

ह्यूमन राइट्स फोरम के प्रदेश अध्यक्ष भूपेन्द्र कुमार द्वारा लगाई गई आरटीआई में रुद्रप्रयाग पुलिस ने साफ बताया कि जिले में गत वर्ष क्म् जून से फ्0 नवंबर तक भ्ब्भ् लाशें पुलिस ने बरामद की हैं। जिसमें केदारनाथ में ख्ख्7, गौरीकुंड में क्भ्, भीमबली में क्क्, जंगलचट्टी में क्8, रामबाड़ा में ब्फ्, गुप्तकाशी में आठ लाशें बरामद की गई। इसके अलावा एक-एक लाशें फाटा, अगस्तमुनी व सुमाड़ी में पाई गई। शेष ख्ख्0 लाशें जिले के अन्य एरियाज में मिली, लेकिन इन लाशों का क्या किया गया यह किसी को पता नहीं है। क्योंकि सूचना अधिकार अधिनियम में बताया गया कि पुलिस ने मात्र एक लाश का अंतिम संस्कार किया है। जो किसी सिक्ख श्रद्धालु की थी।

क्या हुआ लाशों का?

एक तरफ पुलिस यह बताती है कि केदारघाटी में क्म् जून से फ्0 नवंबर तक भ्ब्भ् लाशें पाई गई हैं, लेकिन दूसरी तरफ मात्र एक का अंतिम संस्कार करने की बात बताई जा रही है, जिससे पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल उठ खड़े हुए हैं। जिसमें सबसे अहम यह है कि जब पुलिस ने मात्र एक का अंतिम संस्कार किया है तो बाकि शेष लाशों का क्या किया गया? क्या उन्हें भूखे पशु पक्षियों की भूख को शांत करने के लिए छोड़ दिया गया या फिर उन्हें खुले में सड़ने को छोड़ दिया गया। बहरहाल सच्चाई क्या थी यह तो इतिहास में दफन हो चुकी है, लेकिन आरटीआई के तहत मांगी गई जानकारी से एक बात साफ हो गई है कि केदारघाटी में अपनों को गवां चुके लोगों के साथ इससे भद्दा मजाक और कुछ नहीं हो सकता।

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अजीब हाल है

मात्र रुद्रप्रयाग का यह हाल नहीं, बल्कि उत्तरकाशी में भी है। आरटीआई के तहत यहां से मिली जानकारी में बताया गया है कि उत्तरकाशी में आपदा के दौरान एक भी व्यक्ति की मौत नहीं हुई। अंतिम संस्कार तो दूर की बात है। इसी तरह समस्त कुमाऊं मंडल में भी गत वर्ष क्म् जून से फ्0 नवंबर तक पुलिस ने किसी का अंतिम संस्कार नहीं किया है, हालांकि यह बात किसी से छिपी नहीं है कि कुमाऊं का पिथौरागढ़ और उत्तरकाशी जिले में भी आपदा में जमकर तबाही मचाई थी। कई आशियाने ध्वस्त हो गए थे तो कई ने अपनों को इस तबाही में हमेशा के लिए खो दिया।

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जगह का नहीं पता

गत वर्ष क्म् जून से फ्0 नवंबर तक रुद्रप्रयाग जिले में भ्ब्भ् लाशें मिली, लेकिन हैरानी वाली बात यह है कि ख्ख्0 लाशें कहां से मिली हैं यह पुलिस को पता नहीं है। लाशों की पहचान के लिए पुलिस ने भ्फ्ब् लाशों का डीएनए सैंपल लिए जाने की बात कबूल की है, लेकिन क्क् लाशों का डीएनए सैंपल नहीं लिया गया। ऐसे में सवाल उठ खड़ा हुआ है कि आखिर पुलिस ने क्क् लाशों का डीएनए सैंपल क्यों नहीं लिया? बहरहाल इसके लिए तमाम तर्क दिए जा सकते हैं, लेकिन पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल जरूर उठ खड़े हुए हैं।

Posted By: Inextlive