- गर्मी के आगाज के साथ ही सिमटने लगा गंगा का दायरा, उभरने लगा मां का दर्द

- कुछ घाटों की नीचे तक की सीढि़यां अब आने लगी हैं नजर, दरकने लगी हैं घाट की सीढि़यां

- बीच गंगा में जमा सिल्ट अब रेत का टीला बनकर उभरने को तैयार

VARANASI: दुनिया भले ही उसे गंगा नदी या रीवर कहे मगर कम से कम बनारस तो उसे मां ही मानता है। मगर अब मां अपना ममतामयी दामन सिकोड़ रही है। वजह कुछ तो कुदरती है और कुछ अनदेखी। अभी ठीक से गर्मी शुरू भी नहीं हुई और मां दुबली नजर आने लगी है। क्यों है ऐसा और मां के दुबले होने से हम पर क्या पड़ेगा फर्क? ये भी जान लीजिये आज।

कैसे पूरी करूं तुम्हारी आस, जब मेरी ही उखड़ रही सांस

अच्छा तो नहीं लग रहा। कमजोरी सी महसूस होती है। ना जाने क्या वजह है कि मैं दुबली होती जा रही हूं। दिल तो करता है कि मैं अपना दामन फैला कर सबके दु:ख हर लूं। मेरे तट पर कोई प्यासा ना रहे। लेकिन कमजोरी इस कदर हावी हो रही है कि अब मुझे भी अपना गला सूखा महसूस होता है। पानी ही मेरा वजूद है और पानी ही मेरी शक्ति। अब ये शक्ति दिनों दिन कम हो रही है। समझ नहीं आता कि मैं अब मेरे सहारे बसे लोगों की जरूरतों को कैसे पूरा करूं?

दूर जाते हुए दु:ख होता है

बनारस में घाट मुझे बहुत प्यारे हैं। मैं इनसे बहुत प्यार करती हूं। लेकिन अब मेरी कमजोरी मुझे इन घाटों से दूर करती जा रही है। घाटों से दूर जाते हुए मुझे बहुत दु:ख होता है। मगर इस बार गर्मी शुरू होते ही मेरे पैर घाटों से पीछे लौटने को मजबूर हैं। इतनी ताकत नहीं है कि मैं घाटों के साथ रहूं। आज तमाम ऐसे घाट हैं जिनसे मेरा साथ छूट चुका है। मगर मैं कुछ कर नहीं पा रही।

बढ़ता जा रहा है सिल्ट

मेरे बच्चे भले मुझे पावन कहें मगर सच्चाई यही है कि मेरे शरीर में गंदगी का अम्बार है। गर्मी बढ़ने के साथ मेरे शरीर में कचरा बढ़ता जा रहा है। इसमें ज्यादा मात्रा है बालू की। पानी ना होने की वजह से मुझे वेग नहीं रहा। बढ़ती गर्मी और घटते पानी की वजह से अब मुझमें इतना वेग भी नहीं कि मैं अपने शरीर में मौजूद बालू, कचरा, गंदगी को बहाते हुए महासागर तक खींच सकूं। अब बालू को कहीं बीच में छोड़ना मेरी मजबूरी है। ज्यादा दिन दूर नहीं है जब आपको मेरी शरीर में उभरे हुए बालू के टीले भी नजर आएंगे। तब मेरा पानी और मैला नजर आएगा।

कहीं प्यासे ना रह जाएं मेरे बच्चे

मुझे मेरी तकलीफ बर्दाश्त है। ऐसा पहली दफा नहीं हो रहा। हाल के क्0 सालों में हर साल गर्मी के सीजन में मेरी हालत कुछ ऐसी ही हो जाती है। मैं खुद पानी को तरसती हूं। इस बार मेरे दु:ख-दर्द की शुरूआत हो चुकी है। मुझे अपनी नहीं उन बच्चों की चिंता है जो बनारस में मेरे भरोसे बसे हैं। जिन्हें मैं किसी न किसी रूप में पानी पिलाती हूं। मैंने घाट छोड़ा तो भू-जल नीचे जाएगा और फिर मेरे बच्चे प्यास की तकलीफ उठाएंगे। हो सकता है, उन्हें खरीद का पानी पीना पड़े। ये मुझे ज्यादा तकलीफ देगा।

मेरे लिये नहीं अपने लिए कुछ करो

मैं सिर्फ इतना चाहती हूं कि मेरे बच्चे मेरे लिए भले कुछ ना करें मगर अपने लिये जरूर कुछ ना कुछ करें। मैं इसी तरह कमजोर होते-होते किसी दिन खत्म हो ग‌ई्र बनारस की पहचान मिट जाएगी। यहां के लोग बूंद-बूंद पानी को तरसेंगे। यहां सैलानी आना बंद कर देंगे। बोटिंग, पूजा पाठ, घाट किनारे दुकान चलाने वाले, सैलानियों के भरोसे रोजी-रोटी कमाने वाले करीब एक लाख लोग बेकार हो जाएंगे। मैं बस यही चाहती हूं कि सब खुशी खुशी जीये। भले मुझमें कचरा फेंके, भले मुझे गंदगी डालें, भले ही मेरी कमजोरी को सरकार की जिम्मेदारी समझे मगर कम से कम अपने भविष्य को बचाने की एक बार जरूर सोचें।

अगर सिकुड़ती गई गंगा तो

- गंगा तटीय एरिया में अंडर ग्राउंड वाटर लेवल नीचे जाएगा जिससे काफी हैंडपम्प, बोरिंग पाइप, ट्यूबवेल बेकार हो जाएंगे। सिटी में वाटर क्राइसिस बढ़ जाएगा।

- गंगा के पार सेंड बेड (बालू का दायरा) बढ़ जाएगा जिससे अगले बाढ़ सीजन में गंगा फ्लड का प्रेशर घाटों की तरफ बढ़ेगा और घाट अंदर से पोले होंगे। घाटों के स्ट्रक्चर के साथ घाट किनारे बसे मकानों पर खतरा बढ़ जाएगा।

- गंगा में पानी कम होने से फ्लो (करंट) घट जाएगा जिससे गंगा में गंदगी और कचरे की मात्रा बढ़ती जाएगी। इस गंदगी और कचरे की अधिकता पानी में आक्सीजन लेवल घटा देगा जिससे जलचरों की जीवन खतरे में होगा।

-गंगा के पानी में अगर मछली, कछुए जैसे जलचर खत्म हो जाएं तो गंगा की हालत उसे पानी की तरह होगी जैसे दिल्ली में यमुना नदी की हो चुकी है।

क्यों दुबली हो रही मां?

-पिछले साल गंगा का दुबलापन मई के बाद नजर आने लगा था।

-पिछले ही साल इलाहाबाद में महाकुंभ के चलते मार्च तक गंगा पर बने बांधों से पानी छोड़ा जाता रहा जिससे गर्मी में देर तक वाटर लेवल मेंटेन था।

-इस बार बांधों से पानी नहीं छोड़ा जा रहा। गर्मी के बढ़ते तेवर से बांधों में पानी स्टोर करने पर फोकस किया जा रहा है जिससे गंगा दिनों दिन दुबली होती जा रहीं हैं।

गर्मी के शुरूआत में ही गंगा का जो हाल दिख रहा है वो चिंता का विषय है। ये प्रॉब्लम उत्तराखंड विद्युत परियोजना चलाने के लिए भागीरथी, अलकनंदा और मंदाकिनी पर बनाये गये तीन बांधों के चलते है। एक तरह से कहा जाए कि गंगा का पानी रोक दिया गया है। अब पानी कम है रीवर बेल्ट में सिल्ट जमा हो रहा है जिससे प्रवाह भी कम हो रहा है। ये सिचुएशन किसी भी नदी के लिए खतरनाक है।

-प्रो। बीडी त्रिपाठी, पर्यावरणविद्,

पिछले साल अप्रैल तक गंगा में पानी की कमी नहीं थी। लेकिन इस बार पानी का लेवल देख हैरानी हो रही है।

-सुदीप्तमणि त्रिपाठी, अस्सी

अभी तो शुरूआत है। आगे-आगे देखिये कि गंगा कितनी ज्यादा सिकुड़ जाती हैं। पिछले कई सालों से ऐसा है।

-विजय शर्मा, शॉपकीपर

घाट का किनारा ही ये बताने के लिए काफी है कि पानी कितना नीचे गया है। इस बार स्थित खराब है।

-निलेश उपाध्याय, बीएचयू स्टूडेंट

मुझे तो लगता है कि जून तक गंगा का दायरा आधा रह जाएगा। बहुत तेजी से पानी कम हो रहा है।

-अर्सी सलाम, शिवाला

Posted By: Inextlive