GORAKHPUR : 6 जनवरी का दिन यूनिवर्सिटी के 38 स्टूडेंट्स के लिए किसी ख्वाब को पूरा होने से कम न होगा. इस दिन के लिए इन स्टूडेंट्स दिन रात एक कर दिए. इन्होंने न सिर्फ खाने-पीने को दर किनार किया बल्कि रिश्ते-नाते का भी कोई मोल न समझा और अपना सिर्फ एक टारगेट सेट कर उसी ओर बढ़ते चले गए. नतीजा सबके सामने है. अगर कोई चीज ठान ली जाए तो उसे पूरा करने से कोई नहीं रोक सकता फिर चाहे वह जैसी भी मुश्किलें हो. गोल्ड मेडल पाने वालों की राह में भी कम रोड़े नहीं थे. कॉम्प्टीटर्स के साथ ही यूनिवर्सिटी की रूलिंग में भी कई पेंच थे लेकिन उन्हें अपनी मेहनत का फल आखिरकार मिल ही गया.


गोल्ड मेडल की राह नहीं है आसानयूनिवर्सिटी के गोल्ड मेडल की बात की जाए तो इसकी राह आसान नहीं है। यूनिवर्सिटी का गोल्ड मेडल पाने के लिए स्टूडेंट्स को जितनी जी तोड़ मेहनत की जरूरत है उतनी ही लक की भी दरकार है। सेशन और करियर में थोड़ा सा दाग स्टूडेंट्स को गोल्ड मेडल की पहुंच से काफी दूर करने के लिए काफी है। यूनिवर्सिटी के वीसी प्रो। पीसी त्रिवेदी ने बताया कि अगर यूनिवर्सिटी में गोल्ड मेडलिस्ट के सेलेक्शन की बात की जाए तो ग्रेजुएशन करने की कंडीशन में फस्र्ट इयर, सेकेंड इयर और थर्ड इयर में से बगैर किसी क्लास में अटके अगर टॉपर बने हैं, तब तो गोल्ड मेडल के लिए आपका नाम कंसीडर किया जाएगा, वरना इस कैटेगरी के लिए एलिजिबल नहीं हो सकेंगे। इप्रूवमेंट भी कर देगा दौड़ से बाहर
यूनिवर्सिटी में अगर किसी स्टूडेंट्स ने दो साल तक यूनिवर्सिटी टॉप की है, लेकिन थर्ड इयर में किसी पेपर या सब्जेक्ट में अगर उसने इंप्रूवमेंट के लिए एप्लाई कर दिया, तो वह गोल्ड मेडल की दौड़ से बाहर हो जाएगा। वहीं मासकॉपी, स्क्रूटनी, बैकपेपर और सेशन ब्रेक होने की कंडीशन में भी स्टूडेंट्स गोल्ड की दौड़ से बाहर हो जाते हैं।

Posted By: Inextlive