-हर व्यक्ति को स्वास्थ्य सुविधा व उपचार का अधिकार

-स्वास्थ्य सुविधा पाना है तो जानिए अपने मौलिक अधिकार

GORAKHPUR: हर व्यक्ति को बिना धर्म, जाति, लिंग, आयु, वंश राजनीतिक संबंध, आर्थिक स्तर के भेदभाव के सशक्त स्वास्थ्य सावधानी व उपचार का अधिकार है। हालांकि गोरखपुर के हॉस्पिटलों में डॉक्टर्स नियमों को ताख पर रखकर उनके साथ सौतेला व्यवहार करने पर आमादा हैं। इसी का नतीजा है कि अस्पतालों से मिलने वाली स्वस्थ्य सुविधाएं उन्हें नहीं मिल पाती है और वह अपने अधिकारों के लिए डट कर सामना नहीं कर पाते हैं। इसका फायदा उठाते हुए डॉक्टर्स अपनी मनमानी करते हैं। सरकार अस्पताल में दवा से लेकर जांच तक की सुविधा देती है, लेकिन डॉक्टरों की मनमानी से उन्हें बाहर जांच करानी पड़ती है। इससे बजट गड़बड़ा जाता है। अगर मरीज अपने मौलिक अधिकारों को जान ले तो उसके साथ डॉक्टर्स इस तरह का व्यवहार नहीं कर पाएंगे।

बीआरडी देता है दर्द

बीआरडी मेडिकल कॉलेज की चिकित्सकीय सुविधाओं की हकीकत हैरान कर देने वाली है। यहां ड्रग स्टोर में दवा खत्म होना व जांच ठप होना आम बात है। सब कुछ जान कर भी जिम्मेदारों की फटकार और डॉक्टर्स की मार के डर से मरीज अपने खिलाफ हो रहे जुर्म के खिलाफ आवाज तक नहीं उठा पाते हैं। विरोध करने पर जूनियर डॉक्टर्स तो मारपीट भी कर लेते हैं। ट्राम सेंटर हो या इमरजेंसी यहां यदि मरीज भर्ती होता है तो इलाज के नाम पर उन्हें लम्बी चौड़ी दवाएं व सर्जिकल सामान की लिस्ट थमा दी जाती है। मरीज के साथ आए तीमारदार बाहर के मेडिकल स्टोर से दवाएं खरीदते हैं। जबकि, दवा व जांच मुफ्त होनी चाहिए।

बंद है मशीनें, ठप हैं जांच

मेडिकल कॉलेज के उपकरणों की बात करें तो एक्स-रे, डिजिटल एक्स-रे, ईईजी काफी दिनों से खराब है। इस वजह से जांच पूरी तरह से ठप है। एक्स-रे प्लेट तक नहीं हैं। इस वजह से मरीजों को परेशानी का सामना करना पड़ता है। पिछले साल सिटी स्कैन की नई मशीन लगाई गई लेकिन अभी तक लाइंसेंस के इतजार में बंद है। जांच के लिए आने वाले हर रोज 1000 से 2000 मरीजों को बाहर जांच करानी पड़ती है। हालांकि कई बार मरीजों ने अधिकारियों से इसकी शिकायत की, लेकिन जिम्मेदार बजट का हवाल दे रहे हैं।

संक्रमण की जद में ओटी

जिला महिला अस्पताल का पुराना ऑपरेशन थिएटर संक्रमण व गंदगी की जद में है। यहां हर रोज 15 से 20 प्रेग्नेंट लेडिज का सिजेरियन किया जाता है। ओटी की हकीकत यह है कि दरवाजे व खिड़कियों पूरी तरह से टूट चुकी है। दीवारों के प्लास्टर नीचे गिर रहे हैं। इतना ही नहीं ऑपरेशन थिएटर के पीछे के हिस्से में मेडिकल बायोबेस्ट फेंक दिया जाता है। नालियां गंदगी से पटी है। हालांकि पुरानी ओटी को न्यू ओटी में शिफ्ट करने के लिए सभी तैयारी कर ली गई है, लेकिन अधिकारियों की लापरवाही की वजह से अभी तक ऑपरेशन थिएटर चालू नहीं कराया जा सका।

दवा खत्म, मदद की गुहार

जिला अस्पताल में जरूरी दवाओं का बजट खत्म हो गया है। बच्चों के बुखार से लेकर दमा, डायबटीज, बीपी और दर्द निवारक इंजेक्शन का स्टॉक खत्म हो गया है। इससे मरीजों को काफी परेशानी हो रही है। अस्पताल प्रशासन ने उधार पर सीएमओ से मदद मांगी जा रही है। हालांकि जिले में सिर्फ इसी अस्पताल में एआरवी है। एआरवी का स्टाक सिर्फ चंद दिनों तक का है। वहीं डायबटीज मरीजों को दी जाने वाली मेटफार्मिन 500 टैबलेट बीते दो महीने से खत्म हैं। हाई बीपी के मरीजों को दी जाने वाली फ्रूसेमाइड इंजेक्शन व टैबलेट, लोसार्टन टैबलेट भी खत्म है। दर्द की डाइक्लोफेनेक इंजेक्शन आदि दवाएं स्टॉक में नहीं हैं।

केस 1

सात नवंबर को कुशीनगर जिले के रहने वाले रियाज अपने परिवार के साथ इलाज कराने बीआरडी के ट्रामा सेंटर में आए। इस दौरान उसे इमरजेंसी में एडमिट किया। घर वाले डॉक्टर के पास पहुंचे और ड्रिप चढ़ाने की बात की। इस दौरान जूनियर डॉक्टर ने उसे भला बुरा कहा। दोनों के बीच बहस हो गई। इसके बाद डॉक्टर ने साथियों के साथ मिलकर तीमारदारों की पिटाई कर दी। सूचना पर पहुंचे जिम्मेदार अफसर और पुलिस ने मामले को शांत करवाया। शिकायत पर प्रिंसिपल ने जांच के आदेश दिए। लेकिन अभी तक न जांच रिपोर्ट आई और न ही दोषियों पर कोई कार्रवाई हुई।

केस 2

एक जनवरी की सुबह दो विभाग के जूनियर डॉक्टर आपस में भिड़ गए। इस दौरान प्रेग्नेंट महिला तड़पती रही, लेकिन उसे देखने कोई नहीं आया। यह घटना ट्रामा सेंटर के ऑपरेशन थिएटर में हुई। उस समय ओटी के टेबल पर महिला लेटी हुई थी। मारपीट देखकर वह बदहवास चीखने लगी। प्रिंसिपल ने मामले की जांच ट्राम सेंटर के नोडल अधिकारी को सौंप दी है। कैंपियरगंज की बबीता का बुधवार को ऑपरेशन हुआ। ऑपरेशन करने वालों में गायनी विभाग के जूनियर डॉक्टर और एनेस्थिसिया के जूनियर डॉक्टर में संघर्ष हो गया।

केस 3

23 जनवरी को कैशलेस भुगतान के चक्कर में एक मरीज की जान चली गई। मरीज को दिल का दौरा पड़ा था। तीमारदार इलाज के लिए अस्पताल खाते में आनलाइन पेमेंट करने को तैयार थे, मगर अस्पताल प्रबंधन नगद लेने पर ही अड़ा रहा। आरोप था कि इंजेक्शन न लग पाने से ही उसकी मौत हो गई थी। मामला गांधी गली के एक प्राइवेट हॉस्पिटल का है। गोपालगंज के रहने वाले जितेंद्र चौबे को दिल का दौरा पड़ा था।

Posted By: Inextlive