'झिझक छोडि़ए, हम लड़कों का पछाड़ भी सकती हैं'
- क्रिकेट प्रीमियर लीग में लड़कों से अच्छा प्रदर्शन कर रहीं लड़कियां, लड़के-लड़कियों की है मिक्स टीम
- कोई मिताली राज तो कोई दूसरों के लिए बनना चाहती आदर्श बरेली : हर क्षेत्र में महिलाओं ने कड़ी मेहनत से अपना लोहा मनवाया है. आज वे पुरुषों के कंधे से कंधा मिलकार आसमां छूने को बेताब हैं. यह बातें स्पोर्ट्स स्टेडियम में चल रही अंडर 14 क्रिकेट प्रीमियर लीग में लड़कों के साथ टीम में शामिल गर्ल्स खिलाडि़यों ने दैनिक जागरण आईनेक्स्ट से कहीं. महिलाओं को कम न आंकेंभरतौल गांव की रहने वाली संध्या कुमारी करीब पांच वर्षो से क्रिकेट खेल रही हैं. उन्होंने बताया कि वह मध्य प्रदेश के लिए रणजी भी खेल चुकी हैं. उनके पिता राम नारायण आर्मी में हैं. उन्होंने जब पिता से क्रिकेट खेलने की इच्छा जाहिर की तो उन्होंने पहले तो मना किया लेकिन बेटी की जिद के आगे झुक गए. वह स्टेडियम की ओर से खेलने वाली सबसे प्रतिभावान महिला खिलाड़ी हैं. टूर्नामेंट में भी वे पुरुष खिलाडि़यों पर भारी पड़ रही हैं.
बचपन से ही लड़कों को चटाई है धूलशहर के कर्मचारी नगर निवासी चंचल पाल पिछले दो साल से स्पोर्ट्स स्टेडियम में प्रैक्टिस कर रही हैं. चंचल बताती हैं कि कोच मिलने के बाद क्रिकेट को पंख लगे और अच्छी प्रैक्टिस मिलने लगी. अब लगता है कि इंडिया टीम में खेलने की ख्वाहिश पूरी हो सकती है.
बंदिशों की तोड़ी बेडि़यां 2 वर्षीय महिला खिलाड़ी इल्मा फातिमा समाज में व्याप्त दूषित मानसिकता पर चोट करने के लिए काफी हैं. मुस्लिम परिवार से ताल्लुक रखने के बावजूद भी इतनी छोटी सी उम्र में उन्होंने परिवार से क्रिकेट खेलने की इच्छा जताई और इसको मंजूरी भी मिल गई. जब उनसे सवाल किया कि लड़कों से मुकाबले करने में झिझक तो नहीं हुई तो तपाक से जबाव आया हम लड़कों से बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं. ऐसा टूर्नामेंट में देख भी सकते हैं. अगर बेहतर सुविधाएं मिलें तो बाहरी देशों में मंडल का नाम रोशन कर सकते हैं. ऐसे आया आइडियाआठ माह पहले स्पोर्ट्स स्टेडियम में क्रिकेट कोच के तौर पर आए कोच सुनील कुमार न सिर्फ पिच की हालत सुधारी, बल्कि खिलाडि़यों को प्रोत्साहित भी किया. उनका कहना है कि 2015 में जब वह आगरा में थे तो उनके साथ इंडियन विमेन क्रिकेट टीम की चीफ सिलेक्टर हेमलता काला भी कोचिंग देती थीं. उन्होंने ही महिला और पुरुषों की कंबाइंड टीम बनाई थी. जिसको काफी सराहना मिली थी. इसी से प्रेरित होकर उन्हें बरेली में भी ऐसा आयोजन करने का आइडिया आया.