कहते हैं कि नदी के दो किनारे कभी आपस में मिलते नहीं हैं। इसी तरह दो दिशाएं भी कभी आपस में मिलती नहीं हैं लेकिन अनोखा है हमारा भारत देश जहां ऐसी चीजें दिखायी देती हैं जिन पर विश्‍वास करना आसान नहीं होगा। कर्नाटक का एक छोटा सा समुद्र तटीय गांव है गोकर्ण। गाय के कान के आकार के इस गांव की उत्‍पत्‍ति सृष्‍टि के आरंभ से मानी गई है। अपनी कई अद्भुत खासियतों के कारण गोकर्ण गांव देश में उत्‍तर को दक्षिण से जोड़ता है। भगवान शंकर से भी इस गांव का गहरा नाता है। आइए जानें कुछ खास।

गाय के कान सा है इस गांव का नक्शा
भारत में कर्नाटक राज्य के सुदूर छोर पर बसा है एक छोटा सा गांव 'गोकर्ण'। नाम से ही जाहिर है कि गाय का कान। 'गोकर्ण' को लेकर यूं तो कई धार्मिक मान्यताएं है लेकिन उनमें से एक प्रचलित पौराणिक मान्यता यह है कि सृष्टि के निर्माण के दौरान भगवान शंकर ने गाय के कान से यहीं पर जन्म लिया था। इसी वजह से इस जगह को नाम मिला गोकर्ण। गोकर्ण में देखने को मिलती हैं कई अनोखी चीजें, जिन पर विश्वास करना मुश्किल है।

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गोकर्ण में मौजूद कमंडल क्षेत्र में चट्टानें उगलती है अमृत सा जल
गोकर्ण गांव में मौजूद गोगर्भ और कमंडल क्षेत्र प्राचीन नाथ सम्प्रदाय के महंत और साधुओं के लिए बडा़ तीर्थ है। समंदर के किनारे ऊँची चट्टानों पर मौजूद इस तीर्थ में तमाम ऋषि मुनियों ने तपस्या की है, और उन्हीं के प्रताप से यहां के कमंडल क्षेत्र में चट्टानें पानी उगलती हैं। भले ही पूरे गोकर्ण गांव में पीने के पानी के लिए जमीन में कई सौ फीट बोरिंग करनी पड़ती हो, लेकिन कमंडल क्षेत्र की चट्टानों के बीच एक से दो फीट गहरे गड्ढे मीठे पानी के कुओं से कम नहीं हैं। प्राचीन काल से चले आ रहे नाथ संप्रदाय के साधु, संत और गोरखपुर में मौजूद गोरखधाम के महंत तक सभी के लिए गोकर्ण में मौजूद कमंडल तीर्थ का जल अमृत के समान है। ये लोग इस जल को भरकर अपने साथ ले जाते हैं। जहां तमाम हर्बल दवाओं में इस जल का इस्तेमाल किया जाता है।

 

 

 

 

 

 

 

 

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Posted By: Inextlive