शादी से पहले सुहागरात सुनने में ही अजीब लगता है। लेकिन वेस्टर्न कल्चर में यह सामान्य बात होती है। भारतीय संस्‍कृति में आज भी इसे सही नहीं कहा जाता है। भारत में भी कुछ जनजातियों में शादी से पूर्व सुहागरात मनाने की प्रथा प्रचलित है। उनमें से ही एक जनजाति छत्तीसगढ़ के बस्तर के पास के इलाकों में पाई जाती है। इस राज्य की एक जनजाति ऐसी है जहां शादी से पहले सुहागरात मनाई जाती है। यह जनजाति इस प्रथा को पवित्र और शिक्षाप्रद प्रथा मानती है।


घोटुल है इस जनजाति की महत्वपूर्ण परंपराआपको बता दें कि यह परंपरा है घोटुल। गोंड जनजाति की छत्तीसगढ़ से झारखंड तक के जंगलों में उपजाति या समुदाय मुरिया कहलाता है। मुरिया के लोगों की एक परंपरा है जिसे घोटुल नाम दिया गया है। यह परंपरा दरअसल इस जनजाति के किशोरों को शिक्षा देने के उद्देश्य से शुरू किया गया अनूठा अभियान है। इसमें दिन में बच्चे शिक्षा से लेकर घरगृहस्थी तक के पाठ पढ़ते हैं। शाम के समय मनोरंजन और रात के समय आनंद लिया जाता है। घोंटुल में आने वाले लड़के को चेलिक और लड़की को मोटियार कहा जाता है।बच्चे 10 साल का हो जाने के बाद घोटुल में जाना है अनिवार्य
मुरिया उपजाति का नियम है कि इस जाति का कोई भी बच्चा जैसे ही दस साल का होता है वह घोटुल में आने के काबिल हो जाता है। यदि उसे अपने समाज में रहना है तो 10 साल का होते ही घोटुल में जाना अनिवार्य होता है। हालांकि ऐसा कोई केस देखने में नहीं आता जब किसी बच्चे या माता–पिता ने अपने बच्चे को यहां भेजने से मना किया हो। यहां न आने वालों के लिए सख्त नियम जरूर हैं। जो घोटुल में नहीं आएगा, उसकी शादी इस उपजाति में होना संभव नहीं।ऐसे लड़कियां चुनती हैं अपना वरइस प्रथा में प्रेमी–प्रेमिका जो बाद में जीवनभर के लिए जीवनसाथी भी बनते हैं उनके चयन का तरीका भी अनूठा है। दरअसल जैसे ही कोई लड़का घोंटुल में आता है और उसे लगता है कि वह शारीरिक रूप से मेच्योर हो गया है। फिर उसे बांस की एक कंघी बनानी होती है। यह कंघी बनाने में वह अपनी पूरी ताकत और कला झोंक देता है। क्योंकि यही कंघी तय करती है कि वह किस लड़की को पसंद आएगा। घोंटुल में आई लड़की को जब कोई लड़का पसंद आता है तो वह उसकी कंघी चुरा लेती है। यह संकेत होता है कि वह उस लड़के को चाहती है। जैसे ही वह लड़की यह कंघी अपने बालों में लगाकर निकलती है। जिससे सबको पता चल जाता है कि वह किसी को चाहने लगी है ।इस परंपरा में सिर्फ युवओं को मिलता है प्रवेश


इस परंपरा की एक और खासियत यह है कि इसमें सिर्फ़ युवाओं को ही प्रवेश मिलता है। बड़े-बुजुर्ग सिर्फ़ उस समय यहां आ सकते हैं जब घोंटुल की शिक्षा के बाद परीक्षा होती है। यहां परीक्षा का तरीका भी अनूठा है। कोई कलम कागज़ की जरूरत नहीं कोई सवाल-जवाब याद करने की ज़रूरत नहीं। बड़े-बुजुर्ग उस झोंपड़ी में जाकर निरीक्षण करते हैं जिसमें लड़का-लड़की एक साथ रहना चाहते हैं। यदि झोंपड़ी साफ-सुथरी और सजी हुई नहीं हुई तो उन्हें फेल घोषित कर दिया जाता है। उन्हें साथ रहने की अनुमति नहीं दी जाती। इस परम्परा को सराहनीय मानते हैं गोंड जाति के लोग

Posted By: Prabha Punj Mishra