JAMSHEDPUR: गोपाल मैदान बिष्टुपुर में पिछले आठ दिन से चल रही चल रही श्रीराम कथा का समापन रविवार को हुआ। कथा के अंतिम दिन संत मोरारी बापू ने कथा का सार सुनाया। बापू ने कहा कि रागपीठ और व्यासपीठ राष्ट्र व समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचे, तभी सार्थकता है। इसमें न कोई राजनीति हो न कोई स्वार्थजनित स्वहित हो। समाज के अंतिम व्यक्ति तक अस्पृश्यता के भाव व जातिगत भाव को तजते हुए काम होना चाहिए। बापू ने कहा कि ईश्वर प्राप्ति में पुरुषार्थ का सेतु छोटा पड़ता है। सांसारिक भाव सेतु को पार करने के लिए कृपा सेतु पर चलना ही होगा। यह यात्रा तब संभव है जब भीतर के अहम का दमन हो। जब कोई ईश्वर दर्शन, भजन में अत्यधिक मगन हो जाता है तो नीचे जाने का खतरा समाप्त हो जाता है।

कथा फल मां को समर्पित

कथा के फल को मातृ दिवस पर समस्त माताओं को समर्पित करते हुए बापू ने कहा कि एक यही है जो दिव्यता प्रदान करती है। परमात्मा ने तो आदमी पैदा किए लेकिन मां ने नौ महीने गर्भ में रख कर इंसान बनाया।

मोरारी बापू ने कहा कि 70 सालों में पहली बार कोई प्रधानमंत्री देश को मिला है जो सार्वजनिक रूप से जय सियाराम के तीन उद्घोष करवाता है। बापू ने प्रधानमंत्री की नेपाल यात्रा के दौरान नेपाल के जनकपुर मंदिर में उपस्थित जनसमुदाय से जय सियाराम का उद्घोष करवाने के प्रसंग को बताते हुए उपरोक्त बातें कही। उन्होंने कहा कि अच्छा है कि सनातनी और शाश्वत भारत में जय सियाराम गूंजे। राम का नाम सांप्रदायिक हो ही नहीं सकता। यह तो स्वांत: सुखाय है। बापू ने कहा कि जनकपुर से सीतामढ़ी, गोरखपुर होते हुए अयोध्या तक शुरू हुई बस सेवा सराहनीय है।

अनर्थ का मूल है क्रोध

बापू ने क्रोध से होने वाले अनर्थ से सचेत करते हुए युवा पीढ़ी से कहा कि क्रोध न करें। यह अनिष्ट और अनर्थ का मूल है। कोमल और युवा क्रोध हिंसक हो सकता है। उन्होंने बताया कि सुबह जागते ही क्रोध न करें, बल्कि इस प्रभात बेला में कोई पसंदीदा गीत, भजन, मानस की चौपाइयां सुनने का प्रयास हो तो अच्छा है। पूजन और भोजन के समय भी क्रोध न हो। किसी कार्य विशेष के लिए जाते समय और वापस घर लौटते समय भी क्रोध तजना चाहिए। साथ ही शयन के समय भी क्रोध नहीं करना चाहिए।

ये हैं संत के लक्षण

मानस में वर्णित संत के लक्षण बताते हुए बताया कि जिसको न पद का अहंकार है और न ही पद ना मिलने का शोक, वो संत है। जो शील गुण से युक्त है। जो परदुख में दुखी और परसुख में आनंदित हो जाए वो साधु है। जो हार-जीत में लाभ-हानि में समभाव रहे वही संत है। जो मन, कर्म, वचन को बिना प्रपंच कल्याणार्थ व्यक्त करे वो संत है। बहुमान से स्वयं आसान रहे। कामना रहित रहे और शांति, विरति, मुदिता, शीतलता, सरलता, मैत्रीयता रखे साथ ही जिसने दोबारा जन्म ले चुके संतों के प्रति आदर भाव व्यक्त करे उसे श्रेष्ठ संत मानकर सत्संग किया जा सकता है। बापू ने कहा कि जो लोग मेरी निकटता का दंभ भरते हैं वो सच्चे नहीं हैं।

परिवार के संग सत्संग हो

बापू ने कहा कि परिवार के साथ भी सत्संग संभव है। मां के साथ का सत्संग श्रेष्ठ है, लेकिन पिता, पुत्र, सास, पत्‍‌नी, भाई, पति, पुत्री, राजा, स्वामी, सेवक किसी के साथ भी सत्संग संभव है। शुभ, सत्य, प्रेम, करुणा का जहां सत्यता के साथ संगम हो वहां भी सत्संग संभव है।

Posted By: Inextlive