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GORAKHPUR:

जिंदगी में जरा सी मुश्किल आती है तो हम परेशान हो जाते हैं। लेकिन कुछ ऐसे भी लोग हैं जो मुश्किलों को चुनौती के रूप में लेते हैं। आज 'इंटरनेशनल डे ऑफ डिसेबल्ड परसंस' पर पेश है शहर के तीन ऐसे दिव्यांगों की कहानी, जो अपने बुलंद इरादों से लोगों के लिए मिसाल कायम कर रहे हैं।

amarendra.pandey@inext.co.in

GORAKHPUR:

राप्तीनगर बस डिपो के इंक्वॉयरी ऑफिस में जब आप जाएंगे तो हैरान रह जाएंगे। वजह, यहां तैनात कर्मचारी रविंद्रनाथ श्रीवास्तव। रविंद्रनाथ नेत्र दिव्यांग हैं, लेकिन इनका हुनर देखकर आप भी इन्हें सलाम करने लगेंगे। रविंद्र बताते हैं कि भले ही आंखों से वे देख नहीं सकते हैं। लेकिन वे रोजाना सैकड़ों यात्रियों को उनके मंजिल तक पहुंचाने में मदद जरूर करते हैं।

20 किमी दूर से आते हैं रविंद्रनाथ

कुशीनगर जिले के अहिरौली थाना अंतर्गत ग्राम सखौली के रहने वाले रविंद्र नाथ श्रीवास्तव अपने गांव से डेली गोरखपुर नौकरी करने आते हैं। करीब 20 किमी। का सफर वे अकेले तय करते हैं। सुबह आठ शाम 4 बजे तक वह बस स्टेशन के इंक्वॉयरी ऑफिस आने वाले मुसाफिरों की जिज्ञासा शांत करते रहते हैं। इसके लिए उन्हें उत्कृष्ट कार्य का अवार्ड भी मिल चुका है।

राधेश्याम का अलग है अंदाज

वहीं रेलवे रोडवेज बस स्टेशन पर टेलीफोन रिसीव करने वाले राधेश्याम त्रिपाठी पिछले 23 साल से इंक्वॉयरी आफिस में कार्य कर रहे हैं। लोगों को राह दिखाने के साथ-साथ बसों और रूट की जानकारी भी देते हैं। खास बात यह है कि किसी भी फॉरेनर के आने पर वे उन्हें प्रॉपर जानकारी देते हैं। माना जाता है कि उनके समझाने के तरीके को फॉरेनर तुरंत समझ जाते हैं। इन सभी के कार्यो की आरएम सुग्रीव कुमार राय और गोरखपुर डिपो के एआरएम आरके मंडल सराहना करते हैं।

कोट्स

मुझे फैजाबाद जाना है, बस पूछने के लिए आई थी, लेकिन दिव्यांग कर्मचारियों से बात करने के बाद लगा कि वाकई में यह दोनों लोग मुसाफिरों की काफी मदद कर रहे हैं। इनकी जितनी सराहना की जाए कम है।

-प्रीति, मुसाफिर

वर्जन

गोरखपुर डिपो के इंक्वॉयरी आफिस में तैनात दोनों दिव्यांगों ने बेहतर कार्य किया है। यह मुसाफिरों को उनके डेस्टिनेशन के बारे में गाइड तो करते ही हैं। साथ ही उन्हें अवेयर भी करते हैं।

-सुग्रीव कुमार राय, आरएम यूपी रोडवेज गोरखपुर रीजन

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अंधेरी जिंदगियों में भर रहे खुशियां

saurabh.upadhyay@inext.co.in

राजेंद्र नगर तुरहाबारी के रहने वाले मोहन लाल सिंह नेत्र दिव्यांग हैं। अपनी जिंदगी के अंधेरे को मिटाने के लिए वह दूसरों की जिंदगी में उजाले भर रहे हैं। उनका पूरा परिवार 30 नेत्र दिव्यांग बच्चों की देखरेख कर रहा है।

गजब का उत्साह

बेसिक शिक्षा विभाग में कार्यरत मोहन लाल सिंह ने इन दृष्टिहीन बच्चों का भविष्य सुधारने और आत्मनिर्भर बनाने को अपनी जिंदगी का मकसद बना लिया है। वे अपनी पूरी सैलरी इन बच्चों की परवरिश पर खर्च करते हैं। राजेंद्र नगर पश्चिमी स्थित अपनी पुश्तैनी जमीन भी उन्होंने इन बच्चों के लिए दान कर दी है। मोहन लाल बताते हैं कि वे रोजाना सुबह चार बजे से 10 बजे और शाम चार बजे से रात नौ बजे तक इन बच्चों की देखरेख में समय बिताते हैं। उनके ऑफिस जाने के बाद बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी पत्नी कमला देवी निभाती हैं।

लोग उड़ाते थे मजाक

मोहन लाल सिंह की जिंदगी कभी भी आसान नहीं रही। वे बताते हैं कि बचपन में न दिखने के कारण लोग उनका मजाक उड़ाते थे। इससे उन्होंने ठान लिया कि जीवन में दृष्टिहीन बच्चों का भविष्य बनाने के लिए जरूर कुछ करेंगे। जब नौकरी लगी तभी से वे अपने इस सपने को सच करने के प्रयास में लग गए। करीब तीन साल पहले उनका यह सपना तब पूरा हुआ जब वे शत्रुघ्न को अपने बनाए हॉस्टल लेकर आए। धीरे-धीरे ये संख्या बढ़ती गई। वर्तमान में मोहन लाल के हॉस्टल में 30 बच्चे रह रहे हैं। उनकी पत्नी कमला देवी बताती हैं कि मोहन जो ठान लेते हैं वह पूरा करके ही मानते हैं। इसी जुनून के कारण वे इन बच्चों का जीवन सुधार पा रहे हैं।

Posted By: Inextlive