- किराएदार वेरिफिकेशन को लेकर चौकी प्रभारी और थानेदारों को दी गई थी जिम्मेदारी

- जमा हुए महज 100 फॉर्म, पूछने भी नहीं जाते पुलिस कर्मचारी

GORAKHPUR: किराएदारों के वेरिफिकेशन को लेकर सिटी के मकान मालिक तो लापरवाह हैं हीं, गोरखपुर पुलिस भी इसे लेकर बिल्कुल सीरियस नहीं हो सकी है। घटनाओं को देखते हुए पुलिस प्रशासन ने करीब छह महीने पहले चौकी प्रभारी और थानेदारों को जिम्मेदारी दी थी जिसके तहत उन्हें अपने एरिया में घर-घर जाकर उस एरिया में रह रहे किराएदारों की डिटेल एक प्रोफार्मा में मकान मालिक से भरवाई जानी थी। इसके लिए बाकायदा थाना प्रभारियों की बीट तय किए गए। लेकिन आदेश का असर कुछ ही दिनों तक रहा। नतीजा ये कि सिटी के थानों में महज 100 प्रोफार्मा ही पुलिस भरवा सकी है, जबकि शहरभर में हजारों की तादाद में किराएदार रह रहे हैं।

हो जाती घटना तब जागती है पुलिस

अवेयरनेस की कमी और पुलिस की उदासीनता के चलते अमूमन मकान मालिक बिना पुलिस वेरिफिकेशन के ही किराएदार रख लेते हैं। वहीं, पुलिस भी इस मामले में इंवेस्टिगेशन नहीं करती है। इसी का नतीजा है कि गोरखपुर के तमाम मोहल्लों में अंजान लोग रेंट के मकानों में डेरा जमाए हुए हैं। जबकि शहर में कई मामले ऐसे भी सामने आए हैं जिनमें बदमाश किराए के मकान में रहकर घटनाओं को अंजाम दे चुके हैं। मामला सामने आने पर तो पुलिस एक्टिव होती है लेकिन फिर सुस्त पड़ जाती है। पिछले दिनों ही पुलिस ने कोतवाली इलाके में किराए के मकान में काफी समय से चल रहे सेक्स रैकेट का भी भंडाफोड़ किया था।

मिली जिम्मेदारी लेकिन रह गए हाथ खाली

किराए के मकानों में रहकर बदमाशों द्वारा कई वारदातें सामने आने के बाद पुलिस महकमे की नींद खुली थी। चौकी प्रभारी और थानेदारों को जिम्मेदारी दी गई थी कि वे अपने एरिया में घर-घर जाकर उस एरिया में रह रहे किराएदारों की डिटेल एक प्रोफार्मा में मकान मालिक से भरवाएं। इसके लिए थानों और चौकियों पर बाकायदा प्रोफार्मा भिजवाए गए थे। इसके तहत पुलिस को जिम्मेदारी मिली थी कि कॉलोनियों में जाकर किराएदार से पूछताछ करें। साथ ही उनकी डिटेल मकान मालिकों से प्रोफार्मा में भरवाई जानी थी। वहीं, आसपास के थानों से भी इस संबंध में जानकारी मांगी गई थी। लेकिन वेरिफिकेशन कराना तो दूर, हल ये है कि अधिकृत थानों में किराएदारों के बारे में कोई जानकारी ही उपलब्ध नहीं है। वहीं कई थानों के जिम्मेदारों का कहना है कि उनके पास इस तरह का कोई प्रोफार्मा ही नहीं है।

बॉक्स

मिल जाए मनचाहा किराया, वेरिफिकेशन से मतलब नहीं

सिटी की रिहायशी कॉलोनियों में जहां किराया दस हजार से ऊपर है तो अन्य कॉलोनियों में कमरे के हिसाब से तीन हजार से पांच हजार रुपए वसूल किए जाते हैं। लेकिन किराएदारों के वेरिफिकेशन को लेकर मकान मालिक बिल्कुल भी गंभीरता नहीं दिखाते। न तो उन किराएदारों से प्रोफार्मा भरवाया जाता है और न ही उनकी डिटेल्स लेना ही कोई जरूरी समझता है। सिर्फ मुंहमांगा किराया लेकर किसी भी अंजान व्यक्ति को कमरा दे दिया जाता है।

जमा हुए महज 100 फॉर्म

शहर के विभिन्न थानों में तकरीबन 100 से अधिक किराएदारों का प्रोफार्मा भरकर मकान मालिक जमा करा चुके हैं। जबकि शहर में हजारों की तादाद में किराएदार रह रहे हैं।

किराएदार वेरिफिकेशन में इसलिए लोग नहीं दिखाते इंट्रेस्ट

- जानकारी का अभाव

- जागरूकता की कमी

- पुलिस की उदासीनता

- आर्थिक नुकसान

जब क्रिमिनल निकल गए किराएदार

केस 1

झंगहा एरिया में लूट की घटना से पुलिस ने जब पर्दा उठाया तो पता चला कि पकड़े गए युवक झारखंडी के आवास विकास कॉलोनी में किराए का मकान लेकर रह रहे थे और यहीं से योजना बनाकर घटना को अंजाम देते थे।

केस 2

कोतवाली पुलिस ने कुछ दिन पहले एक सेक्स रैकेट को दबोच लिया था। इस मामले में जब पड़ताल की गई तो पता चला कि किराए के मकान में यह धंधा चल रहा था।

वर्जन

किराएदारों का वेरिफिकेशन कराने के लिए निर्देश दिए गए हैं। चौकी और थाने में प्रोफार्मा उपलब्ध है। मकान मालिक किराएदारों से प्रोफार्मा भरवाकर संबंधित थाने में जमा करा सकते हैं। प्रोफार्मा भरवाने में लापरवाही बरतने वाले पुलिस कर्मचारियों पर कार्रवाई होगी।

डॉ। सुनील कुमार गुप्ता, एसएसपी

Posted By: Inextlive