हाल ही में केंद्रीय पाम राजपूत कमेटी ने महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को अपनी रिपोर्ट सौंपी है। इस रिर्पोट में सरकार की विचारधारा के उलट सिफारिश की गयी है कि पत्नी की उम्र व अपराधी और पीड़ित के संबंधों के हिसाब से शदी के बावजूद महिला से जबरन शारीरिक संबंध बनाने को अपराध की श्रेणी में रखा जाना चाहिए।


केंद्रीय पाम राजपूत कमेटी ने सरकार के विचार को जायज ना मानते हुए विवाह के बावजूद दैहिक संबंध बलात्कार हो सकते हैं और उसे अपराध की श्रेणी में शामिल किया जाए ऐसा अनुरोध अपनी रिर्पोट में किया है। कमेटी की सिफारिश पर अंतर मंत्रालय दल अब सोमवार को चर्चा करेगा। इस मामले में महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने भी मैरिटल रेप को अपराध की श्रेणी की रखे जाने का समर्थन किया था। मेनका ने इसे महिलाओं के खिलाफ अपराध बताते हुए कहा था कि ये भी एक तरह की हिंसा है और इसे अस्वीकार्य माना जाना चाहिए। मेनका गांधी ने कहा था कि उनका मानना है कि महिलाओं के खिलाफ अपराध को केवल अजनबियों द्वारा की गयी यौन हिंसा तक ही सीमित नहीं किया जाना चाहिए। क्योंकि वे मानती हैं कि हर बार मैरिटल रेप केवल पुरुष की सेक्स की जरूरत से ही संबंधित नहीं होता है बल्कि यह उसकी ताकत और आधिपत्य दिखाने की भावना से भी जुड़ा होता है। उन्होंने अनुरोध किया था कि ऐसे मामलों को गंभीरता से लिया जाना चाहिए।
हालाकि इस मामले सरकार का स्टैंड के बिल्कुल अलग है। केंद्रीय मंत्री हरिभाई चौधरी ने अप्रैल में राज्यसभा में दिए अपने एक बयान में कहा था कि शादी में बलात्कार का विचार भारतीय समाज के हिसाब से ठीक नहीं है। शिक्षा और साक्षरता के स्तर, गरीबी, सामाजिक परंपरा, सामाजिक नियम, धार्मिक विश्वास, विवाह के संबंध में सामाजिक मान्यताएं आदि कई ऐसे मुद्दे हैं जिसके चलते यह भारतीय समाज के लिए सही नहीं है।जबकि दूसरी ओर सामाजिक कार्यकर्ता, महिला अधिकारों से जुड़े संगठन सरकार के ऐसे विचार को गलत ठहरा कर उसकी आलोचना करते रहे हैं। महिला कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह सरकार की रुढ़िवादी सोच है। उनका तर्क है कि लैंगिक समानता पर यूएन कमेटी भी कह चुकी है कि शादी में बलात्कार को अपराध माना जाना चाहिए। जस्टिस जेएस वर्मा कमेटी ने भी शादी में बलात्कार को अपराध की श्रेणी में रखे जाने की सिफारिश की है।

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Posted By: Molly Seth