घाटा कम, मंहगाई रुकी, विकास बढ़ा: चिदंबरम
उन्होंने कहा कि वित्तीय घाटा 4.6 प्रतिशत के भीतर रहेगा और पिछले बजट के मुक़ाबले महंगाई दर घटी है.वित्त मंत्री ने कहा, "ख़राब वैश्विक संकट से हमने ख़ुद को बचाया है और भारत के हालात बेहतर हुए हैं. चालू वित्तीय घाटे में कमी आई है."यूपीए सरकार की उपलब्धियां गिनाते हुए उन्होंने कहा, "कृषि विकास की दर 4.6 फ़ीसदी रही. निर्यात बढ़ा है, जबकि आयात में कुछ कमी आई है.चिदंबरम ने क्या कहा-भारत ने 2012, 2013में ग्लोबल आर्थिक ख़तरों के बीच से आगे के सुरक्षित रास्ता बनाया-जब अमरीका ने वित्तीय स्टिमुलस घटाया तो रुपए पर सबसे कम असर पड़ा-2013-14में वित्तीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद का 4.6प्रतिशत रहा-2013-2014में चालू घाटा 45अरब डॉलर रहा-खाद्य पदार्थों की महँगाई दर 13से घट कर 6.2प्रतिशत हो गई है-कृषि क्षेत्र की विकास दर 4.6प्रतिशत रही है-मैन्यूफ़ैक्चरिंग क्षेत्र में आई मंदी चिंता का कारण है
-पूरे साल की विकास दर 4.9 रहने का अनुमान है-अर्थव्यवस्था पहले के मुकाबले अधिक स्थिर हुई हैउन्होंने कहा, "निर्यात बढ़कर 326 अरब डॉलर हो गया है. निवेश में कोई बड़ी गिरावट नहीं आई है."
वित्त मंत्री के बजट भाषण पर बाज़ार ने सामान्य प्रतिक्रिया दी. वित्तीय घाटा 4.6 प्रतिशत के स्तर पर रहने और आने वाली तिमाहियों में विकास दर में सुधार के अनुमानों से बाज़ार को ताक़त मिली.सोमवार को लोकसभा में वित्त मंत्री ने जब अपने बजट भाषण की शुरुआत की तो बीएसई सेंसेक्स सूचकांक महज़ सात अंकों की तेज़ी के साथ कारोबार कर रहा था, हालांकि वित्तीय घाटे में कमी की ख़बर के साथ ही इसमें क़रीब 40 अंकों की तेज़ी दर्ज की गई.इस दौरान बढ़त दर्ज करने वाले शेयरों में टाटा पावर, डा. रेड्डीज़् और एचडीएफ़सी शामिल रहे.वित्तमंत्री ने जुलाई, 2014 तक के ख़र्चों की अनुमति के लिए लोकसभा में हंगामे के बीच लेखानुदान पेश किया.अंतरिम बजट में प्रत्यक्ष करों में कोई बदलाव नहीं होता है और न ही कोई बड़ी नीतिगत घोषणा की जाती है.रियायतों की घोषणाफिर भी माना जा रहा है कि इस बजट में कुछ क्षेत्रों के लिए रियायतों की घोषणा की जा सकती है.हालांकि इस दौरान उन्हें राजकोषीय घाटे को सीमित दायरे में रखने के लिए कड़ी मशक्क़त करनी पड़ सकती है.वित्तमंत्री ने इससे पहले संकेत दिया था कि वह अंतरिम बजट में अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए उत्पाद और सेवाकर की कुछ दरों में बदलाव कर सकते हैं
लेकिन वह राजनीतिक आम सहमति के अभाव में आर्थिक सुधारों से जुड़े प्रमुख विधेयकों को आगे नहीं बढ़ाएंगे.