विवशता में व्यापारियों ने बदला रास्ता, सरकार को लग रही चपत

एक्सपर्ट्स और व्यापारियों से बातचीत में सामने आए कई चौंकाने वाले क्लू

ALLAHABAD: जीएसटी की लिखा पढ़ी और मुनीमी व आए दिन थोपे जा रहे नए-नए नियम एवं पोर्टल के काम न करने जैसी तकनीकी समस्याओं की वजह से ना चाहते हुए भी व्यापारी अब जीएसटी से पीछा छुड़ाने के लिए दूसरे रास्तों को अपनाने में जुट गए हैं। वह अपने नाम से बिल लेने में भी कतरा रहे हैं। जिससे एक तरफ जहां व्यापारी रिस्क पर बिजनेस कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ टैक्स की चोरी भी शुरू हो गई है। जीएसटी की वजह से मजबूरन नंबर वन से बिजनेस करने वाले अधिकांश व्यापारी टैक्स की चोरी का रास्ता अपना रहे हैं या फिर रास्ता तलाश रहे हैं। दैनिक जागरण आईनेक्स्ट रिपोर्टर ने जब तहकीकात की तो पता चला कि ज्यादातर व्यापारी शार्ट कट तरीका अपना रहे हैं।

बगैर बिल व पर्चे के आ रहा माल

नाम न छापने की शर्त पर कुछ व्यापारियों ने बताया कि जीएसटी के लफड़े से बचने के लिए अब वह मजबूरी में रेलवे का सहारा ले रहे हैं। बिना बिल और पर्चे के माल मंवाना मजबूरी बन गई है। सिस्टम इस तरह के बने हैं कि बगैर बिल- पर्चे के माल व्यापारी के गोदाम तक पहुंच जा रहा है। चौक के एक अन्य व्यापारी की मानें तो रेलवे से ही नहीं, बल्कि ट्रकों से भी बगैर बिल व पर्चे के माल आ रहा है। छोटे दुकानदार और कस्टमर भी बिल नहीं ले रहे हैं। इसलिए माल का हिसाब रखने की कोई जरूरत नहीं पड़ रही है। व्यापार चल रहा है। गांव के व्यापारियों को भी बिल पर्चे से कोई मतलब नहीं है। लिखा पढ़ी के झंझट से बचने के लिए कुछ महंगे रेट पर भी सामान लेने को तैयार हैं।

नंबर दो में जाने को हुए मजबूर

पोर्टल के काम न करने के कारण जो व्यापारी टैक्स रिज्यूम में आ रहे थे, अब वे भी नंबर दो में जाने को मजबूर हैं। व्यापारियों का कहना है कि वह सारा दिन यही करते रहें क्या? कि पोर्टल नहीं चल रहा तो सारा दिन उसे लेकर बैठे रहे कि रिटर्न अपलोड होगा। रिटर्न अपलोड होगा भी तो 24 से 36 घंटे के बाद सिस्टम उसे अप्रूव करेगा। तब उसके बाद व्यापारी अगला काम करे।

बिल मत दो बस माल भेज दो

दिल्ली से माल मंगाया, आगे व्यापारी बिल लेना ही चाहता व्यापारी। कह रहा है कि ऐसे ही माल भेज दो। जिसके नाम से बिल काटना चाहते हो काट दो, हमें बिल नहीं चाहिए। सबसे ज्यादा दिक्कत यह है कि होल सेलर और रिटेलर रिटर्न अपलोड कैसे करें? स्टेज वन-टू कंपनियां और मेन्युफ्रैक्चरर, डिस्ट्रीब्यूटर पहले भी आनलाइन काम करते रहे हैं। इसलिए उन्हें ज्यादा दिक्कत नहीं है, जो होलसेलर और रिटेलर हैं, वही परेशान हैं।

क्या कहते हैं एक्सपर्ट

जीएसटी लागू करते समय पीएम ने जीएसटी को गुड एंड सिम्पल टैक्स बताया था। लेकिन यह व्यापारियों के लिए न तो गुड साबित हो रहा है और न ही सिस्टम सिंपल है। ये बात सही है कि कुछ व्यापारी अब जीएसटी से भाग रहे हैं और दूसरे रास्तों को अपना रहे हैं।

महेंद्र गोयल

प्रदेश अध्यक्ष, कैट

आज स्थिति ये है कि ईमानदार व्यापारी जीएसटी की वजह से प्रताडि़त है। चाह कर भी वह ईमानदारी पूर्वक व्यापार नहीं कर पा रहा है। 75 दिनों में बगैर मुनीमी के हमने व्यापार नहीं किया।

अनुपम अग्रवाल

व्यापारी

जीएसटी से व्यापारी के भागने की वजह यह है कि पूरा सिस्टम ही कंफ्यूजन से भरा है। जीएसटी काउंसिल और गवर्नमेंट सिस्टम नहीं बना सकी है। जिससे व्यापारी परेशान है। अगर मैं अपने बिजनेस की बात करूं तो कौन सा आटा ब्रांडेड और अन ब्रांडेड में आएगा, ये अधिकारी के विवेकाधीन पर होगा।

मनोज अग्रवाल

आटा कारोबारी

Posted By: Inextlive