जीएसटी के पहले

टेक्सटाइल

एक जुलाई 2017 को जीएसटी लागू होने से पहले कॉटन फाइबर और फैब्रिक पर 0 प्रतिशत तो सिंथेटिक पर 12.5 प्रतिशत एक्साइज लगता था।

-1,000 रुपए से कम के कपड़े पर एक्साइज नहीं लगता था।

-1000 रुपए से ज्यादा कीमत के कपड़े पर 12.5 प्रतिशत एक्साइज और 5 प्रतिशत वैट लगता था।

-ब्रांडेड कपड़े पर सेनवैट के साथ 12.5 प्रतिशत टैक्स था। कॉटन पर यह 6 प्रतिशत था।

जीएसटी के बाद

-सिल्क और जूट पर कोई टैक्स नहीं है।

-कॉटन और नैचुरल फाइबर पर 5 प्रतिशत टैक्स लगाया गया है।

-1000 रुपए से कम के गारमेंट पर 5 प्रतिशत और रेडीमेड गारमेंट पर 12 प्रतिशत टैक्स लग रहा है।

-मैनमेड यार्न और फैब्रिक पर 18 प्रतिशत तक टैक्स लगाया गया है।

-जीएसटी के बाद 10 प्रतिशत तक महंगा हो गए कपड़े

-रेडिमेड गारमेंट्स वालों की सेहत पर नहीं पड़ा कोई फर्क

ALLAHABAD: भारत की आजादी और पीएम मोदी द्वारा जीएसटी के रूप में दी गई 'दूसरी आजादी' के बीच कपड़ा व्यापारियों की दुनिया बदल गई है। पहले यह तबका केवल व्यापार करता था, रिटर्न भरता था और खुश रहता था। अब आलम यह है कि कपड़ा व्यापारी लिखा-पढ़ी के चंगुल में फंस चुके हैं। स्टॉक मेंटेन रखने से लेकर बिल काटने, सेल-परचेज का रिकॉर्ड रखने के प्रॉसेस में उलझे हुए हैं। नतीजा, व्यापार और व्यापारी दोनों तबाह हैं। अगर रेडीमेड गारमेंट्स व्यापारी जीएसटी और वैट के टैक्स स्लैब में खास अंतर न होने से ज्यादा परेशान नहीं हैं।

जितनी जीएसटी, उतना ही बढ़ा रेट

जीएसटी लागू होने के बाद कपड़ा दस प्रतिशत तक महंगा हो गया है। पांच प्रतिशत रेट जीएसटी लागू होने के बाद बढ़ा है। वहीं पांच प्रतिशत रेट जीएसटी के बाद कंपनियों ने बढ़ा दिया है। इसके लिए अलग-अलग तर्क दिया जा रहा है। किसी ने यार्न महंगा होने तो डाई का खर्च बढ़ने या फिर लेबर चार्ज अधिक होने के नाम पर पांच प्रतिशत टैक्स और बढ़ा दिया गया है।

कॉलिंग

जीएसटी में पेनाल्टी और टैक्स का प्रावधान बहुत सख्त है। जीएसटी बेहतर सिस्टम है। लेकिन पहले व्यापारियों को सिस्टम से अवगत तो कराया जाए, खामियों को दूर तो किया जाए।

-विजय अरोरा

कपड़ा व्यापारी एवं अध्यक्ष

प्रयाग व्यापार मंडल

जीएसटी के बाद 95 प्रतिशत कपड़ा व्यापारी सीए, अधिवक्ता और अकाउंटेंट पर डिपेंड होकर रह गए हैं। वहीं गांव-देहात के कस्टमर बिल पर नाम लिखने के लिए पूछने पर नाम बताने से घबरा रहे हैं।

-गुरु चरण अरोरा

अध्यक्ष

थोक कपड़ा व्यापार संघ

रेडीमेड गारमेंट, ऑनलाइन मार्केटिंग और मॉल कल्चर की वजह से कपड़ा व्यापार पहले से प्रभावित था। वहीं जीएसटी ने कपड़ा व्यापारियों के लिए कुआं खोद दिया।

-अरुण अग्रवाल

जीरो रोड

अभी तक जितना माल आता था, उसका इनकम टैक्स डॉक्यूमेंट तैयार करते थे। अब तो ई-वे बिल, टैक्स इनवायस काटने, रिकार्ड मेंटेन करने के साथ ही अन्य लिखा-पढ़ी के चक्कर में फंस गए हैं।

-लोकेश रस्तोगी

खोआ मंडी

Posted By: Inextlive