चैत्र नवरात्रि‍ से हिन्दू नववर्ष की शुरुआत होती है। इस द‍िन को वर्ष प्रतिपदा उगादि गुड़ी पड़वा नवसंवत्सर जैसे व‍िभि‍न्‍न नामों से जाना जाता है। देश में अलग-अलग ह‍िस्‍सों में अलग-अलग तरीके से इस द‍िन उत्‍सव मनाए जाते हैं। इसी क्रम में महाराष्‍ट्र में गुड़ी पड़वा का त्‍योहार धूमधाम से मनाया जाता है और गुड़ी बांधी जाती हैं। ऐसे में आइए जानें इस उत्‍सव से जुड़ी खास बातें...


कानपुर। मान्यताओं के मुताबिक इस दिन ब्रह्मा जी ने सृष्टि का निर्माण किया था और सतयुग का आरम्भ हुआ था। इस दिन सबसे पहले ब्रह्मा जी की पूजा की जाती है। घर के आंगन में रंगोली बनाकर गुड़ी सजाई जाती है और दरवाजे पर आम के पत्तों से बंदनवार सजाते हैं। पूजन के दौरान ब्रह्मा से हाथ जोड़कर निरोगी जीवन, घर में सुख-समृद्धि व धन की प्रार्थना की जाती है। गुड़ी विजय पताका का प्रतीक मानी जाती'गुड़ी' विजय पताका का प्रतीक मानी जाती है। इसमें एक बांस या लकड़ी पर जरी की कोरी साड़ी लपेटी जाती है। इसके ऊपर तांबे का एक लोटा रखा जाता है। इसके बाद इस लोटे के आसपास नीम और आम की पत्तियां, फूल और गाठी की मालाओं को लपेटा जाता है। सुबह से तैयार इस गुड़ी को सूर्योदय के बाद खिड़की या छत पर लगाकर इसकी पूजा की जाती है।
महिला-पुरुष सभी नए परिधान धारण करते


इतना ही नहीं इस त्योहार पर नाना-प्रकार के मिष्ठान बनाए जाते हैं। खास बात तो यह है कि गुड़ी पड़वा के दिन महाराष्ट्रीयन परिवारों में श्रीखंड का भोग लगाना अनिवार्य माना जाता है। इसके अलावा इस दिन कुछ परिवारों में पूरण या गुड़ की रोटी बनाने की प्रथा है। इसके बिना यह त्योहार अधूरा माना जाता है। इस दिन महिला-पुरुष सभी नए परिधान धारण करते हैं।

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Posted By: Shweta Mishra