Guru Purnima 2020: गुरु के प्रति सम्मान और कृतज्ञता प्रकट करने का दिन
Guru Purnima 2020: गुरुओं को समर्पित इस पर्व को हमारे देश में बहुत धूम-धाम से मनाया जाता है। इस दिन शिष्य अपने गुरुओं की पूजा करते हैं और उन्हें सम्मान देते हैं। इस बार गुरु पूर्णिमा का पर्व 5 जुलाई रविवार को मनाया जाएगा।
गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि इस दिन महाभारत के रचयिता महर्षि वेद व्यास जी का जन्मदिवस होता है। हिंदू धर्म में 18 पुराणों के रचयिता महर्षि वेदव्यास ही हैं। इतना ही नहीं व्यास जी को वेदों का विभाजन करने का भी श्रेय प्राप्त हुआ है। गुरु पूर्णिमा मुहूर्तगुरु पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: 4 जुलाई 2020 को 11 बजकर 33 मिनट से
गुरु पूर्णिमा तिथि समाप्त: 5 जुलाई 2020 को 10 बजकर 13 मिनट पर
शुभ मुहूर्त: सिंह लग्न में सुबह 08: 41 मिनट से लेकर 10:13 तक
गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाने और इस दिन की शुरूआत को लेकर कई पौराणिक कथाएं मौजूद हैं, लेकिन मुख्य रूप से इस दिन को महर्षि वेद व्यास के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है। बताया जाता है कि आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को वेद, पुराण, उपनिशद और महाभारत की रचना करने वाले महर्षि कृष्ण द्वैपायन व्यास का जन्म हुआ था। वे संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे और उन्होंने चारों वेदों की भी रचना की थी। इस कारण उनका एक नाम वेद व्यास भी है। उन्हें आदिगुरु कहा जाता है। कहा जाता है कि इसी दिन व्यास जी ने अपने शिष्यों एवं मुनियों को सर्वप्रथम श्री भागवतपुराण का ज्ञान दिया था। इसलिए उनके सम्मान में ही आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा या व्यास पूर्णिमा मनाया जाता है।
पुराणों के अनुसार भगवान शिव को ब्रह्मांड का पहला गुरु माना गया है। भगवान शिव के पहले शिष्य के रूप में शनि और परशुराम बताए गए हैं। शिव जी ने इन्हें धरती पर सभ्यता और धर्म के प्रचार-प्रसार का ज्ञान दिया था और इसके बाद शनिदेव और परशुराम ने सात अन्य लोगों को ये ज्ञान दिया और ये सात लोग ही सात महर्षि यानि सप्त ऋषि कहलाए। यही कारण है कि शिव पहले गुरु माने गए हैं। अन्य कथानुसार गुरु और शिष्य की परंपरा की शुरूआत भगवान शिव ने की थी। मान्यता है कि भगवान शिव हिमालय के दुर्गम क्षेत्र में एक आदियोगी के रूप में प्रकट हुए थे। तक सप्त ऋषियों ने उनके तेज से प्रभावित होकर उनसे ज्ञान प्रदान करने का अनुरोध किया। ऋषियों के अनुरोध पर भगवान शिव ने आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को उनके गुरु बनकर उनको योग का ज्ञान देना प्रारंभ किया। इसलिए उनको ब्रह्मांड का पहला गुरु माना जाता है।
कैसे करें गुरु की पूजा गुरु पूर्णिमा का पावन पर्व गुरु के प्रति अपनी श्रद्धा और आभार प्रकट करने दिन है। इसलिए सर्वप्रथम स्नान करके सफेद या पीले वस्त्र पहनें और फिर त्रिदेव की पूजा करें और इसके बाद गुरु बृहस्पति और महर्षि वेद व्यास की पूजा कर अपने आराध्य गुरु की पूजा करें। उत्तर दिशा में गुरु की तस्वीर या पादुका रखें और धूप, दीप, पुष्प, नैवेद्य, चंदन से उनका पूजन करें। मिष्ठान का भोग लगाएं और उनसे आशीर्वाद लें। इसके बाद गुरु से मिले दिव्य मंत्र का जप और मनन करें। कभी भूलकर भी दूसरे से इसकी चर्चा नहीं करनी चाहिए। गुरु की पूजा का अर्थ सिर्फ फूल-माला, फल, मिठाई, दक्षिणा आदि चढ़ाना नहीं है बल्कि गुरु के दिव्य गुणों को आत्मसात करना है। जानें, गुरु पूर्णिमा का महत्वकिसी भी मनुष्य के जीवन में गुरु का बहुत महत्व होता है। गुरु शिष्य के जीवन में व्याप्त अज्ञानता रूपी अंधकार को मिटाकर ज्ञान रूपी प्रकाश फैलाते हैं। धार्मिक ग्रंथों में लिखा है कि जिस तरह व्यक्ति इच्छा प्राप्ति के लिए ईश्वर की भक्ति करता है। ठीक उसी तरह व्यक्ति को जीवन में सफल होने के लिए गुरु की सेवा और भक्ति करनी चाहिए। सनातन धर्म में गुरु को पूजनीय माना गया है और उनके सम्मान के लिए ही गुरु पूर्णिमा मनाई जाती है। गुरु ही मनुष्य को सही और गलत में भेद का सही ज्ञान देते हंै। इसलिए गुरु को ब्रह्मा कहा गया है, क्योंकि वह मनुष्य का उसी तरह सर्जन करते हैं, जैसे ब्रह्मा सृष्टि के हर जीव का करते हैं।
गुरु की वंदना में कहे गए लोकप्रिय दोहे
गुरुरेव परंब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नम:।। अर्थात, गुरु ही ब्रह्मा है, गुरु ही विष्णु है और गुरु ही भगवान शंकर है। गुरु ही साक्षात परब्रह्म है। ऐसे गुरु को मैं प्रणाम करता हूं।
गुरु गोबिंद दोऊ खड़े, का के लागूं पाय।
बलिहारी गुरु आपणे, गोबिंद दियो मिलाय।।
जों बिरंचि संकर सम होई।। अर्थात, भले ही कोई ब्रह्मा, शंकर के समान क्यों न हो, वह गुरु के बिना भव सागर पार नहीं कर सकता। गुरु कुम्हार शिष्य कुम्भ है, गढि़ गढि़ काढ़ै खोट।
अन्तर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट। अर्थात, गुरु एक कुम्हार के समान है और शिष्य एक घड़े के समान होता है। जिस प्रकार कुम्हार कच्चे घड़े के अन्दर हाथ डालकर, उसे अन्दर से सहारा देते हुए हल्की-हल्की चोट मारते हुए उसे आकर्षक रूप देता है, उसी प्रकार एक गुरु अपने शिष्य को एक सम्पूर्ण व्यक्तित्व में तब्दील करता है।