- हाईस्कूल-इंटर पास लड़के कर रहे हैं हैलट इमरजेंसी में पेशेंट्स का इलाज

-स्टाफ की कमी के कारण जेआर ने अपने खर्चे पर रख रखे हैं बाहरी लड़के

-इंजेक्शन लगाने से लेकर पेशेंट को टांके लगाने और दवा लिखने का भी करते हैं काम

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KANPUR: पूरे शहर में जब हर डॉक्टर, हॉस्पिटल और नर्सिगहोम जवाब दे देते हैं तब पेशेंट को हैलट इमरजेंसी लाया जाता है। इस उम्मीद में कि यहां उसे फौरन स्पेशलिस्ट केयर मिल जाएगी और पेशेंट की जान बच जाएगी। अगर आप भी यही सोचकर पेशेंट को इमरजेंसी ला रहे हैं तो ये हकीकत जानना बहुत जरूरी है। हैलट इमरजेंसी में सीनियर डॉक्टर्स तो दिखते नहीं, मरीजों का इलाज जूनियर डॉक्टर्स के भरोसे ही चलता है। वहीं नर्सिग स्टॉफ की कमी और काम के बोझ के कारण जेआर अपने प्राइवेट असिस्टेंट रख लेते हैं। हाईस्कूल, इंटर पास ये असिस्टेंट जेआर की तरह की मरीजों का पूरा इलाज करते हैं। यानि जब क्रिटिकल सिचुएशन में जब पेशेंट को स्पेशलिस्ट की जरूरत होती है तब ये असिस्टेंट उसकी जिंदगी से खेल रहे होते हैं। पेशेंट या उनके तीमारदारों को इसका पता भी नहीं चलता। आई नेक्स्ट रिपोर्टर ने इसकी पड़ताल की तो पता चला कि इमरजेंसी में एक शिफ्ट में तीन से चार लड़के काम करते हैं। मेडिकल कालेज प्रशासन को इसकी सारी जानकारी भी है।

हर विभाग में 'प्राइवेट डॉक्टर्स'

हैलट इमरजेंसी में मेडिसिन, ऑर्थो और सर्जरी वार्ड हैं। इमरजेंसी पेशेंट इन्हीं में सबसे पहले जाते हैं और यहीं से भर्ती होते हैं। तीनों विभागों में दिन और रात के हिसाब से हर शिफ्ट में तीन डॉक्टरों की यूनिट होती हैं। बाहरी लड़के भी इन्हीं शिफ्ट में काम करते हैं। मेडिसिन विभाग में दिन में तो ये लड़के नहीं मिलते लेकिन रात में इमरजेंसी इन्हीं के भरोसे रहती है। वहीं सर्जरी और ऑर्थो में यह दिन और रात की क्ख् घंटे की शिफ्ट में काम करते हैं।

हर काम के 'विशेषज्ञ'

जेआर के असिस्टेंट की तरह काम करने में वाले इन लड़कों की क्वॉलीफिकेशन क्या है यह किसी को नहीं पता। लेकिन क्रिटिकल पेशेंट के टांके लगाने से लेकर हर वो काम जिसके लिए विशेषज्ञों की जरूरत होती है, ये लड़के करते हैं। बर्न इंजरी में तो ड्रेसिंग से लेकर ड्रिप चढ़ाने का काम यही प्राइवेट 'डॉक्टर्स' करते हैं क्योंकि ऐसे पेशेंट को ना तो डॉक्टर हाथ लगाते हैं और न नर्स।

जांच भी खुद ही करते

इमरजेंसी में आने वाले पेशेंट की एचआईवी जांच कार्ड टेस्ट के जरिए की जाती है। हैलट की ओर से यह कार्ड नहीं खरीदे जाते इसलिए जेआर खुद इन्हें मंगाते हैं। और इसके लिए पेशेंट से ख्00 रुपए तक लिए जाते हैं। जांच और रुपए लेने की जिम्मेदारी लड़कों की रहती है।

प्राइवेट 'डॉक्टर्स' के भरोसे इमरजेंसी

हैलट इमरजेंसी में एक शिफ्ट पर पर दो से तीन प्राइवेट 'डॉक्टर्स' काम करते हैं। सर्जरी में नीरज, अनुराग, राहुल और आर्थो में ज्यादातर सद्दाम, दिलीप की डयूटी रहती है। इनका खर्च जेआर अपनी जेब से उठाते हैं। इसके बदले में यह इलाज करने से लेकर जेआर के अन्य सभी काम भी करते हैं। रात को जब इमरजेंसी पूरी तरह से जेआर के भरोसे होती है तब यही लड़के मरीज की पूरी देखभाल भी करते हैं।

स्टॉफ की कमी का रोना

मेडिकल कालेज में नर्सिग स्टॉफ की भारी कमी है। इसका असर इमरजेंसी पर भी पड़ता है। नाम नहीं छापने की शर्त पर एक ईएमओ बताते हैं कि इमरजेंसी के तीनों वार्डो में फ्0 के करीब बेड हैं। यहां तो स्टॉफ की ज्यादा जरूरत होती है लेकिन हर शिफ्ट में दो से ज्यादा स्टॉफ नर्स कभी भी नहीं रहती। इसके अलावा फ् से ज्यादा वार्डब्वाय की डयूटी भी नहीं लगती। इधर संविदा के कर्मचारियों के आने से इस मामले में तो थोड़ी राहत मिली हैं लेकिन नर्सो की कमी बड़ी समस्या है।

सब जानते है, सब चुप हैं

हैलट इमरजेंसी में अनट्रेंड और अनक्वॉलीफाइड बाहरी लड़कोंकी मौजूदगी की जानकारी सभी सीनियर डॉक्टर्स को रहती है। इसके अलावा प्रशासनिक अधिकारी भी इससे अंजान नहीं हैं। लेकिन इन पर कभी कोई कार्रवाई नहीं होती क्योंकि सब जानते हैं कि जेआर के बिना इमरजेंसी चलाना मुश्किल है।

कोट-

मामला तो काफी गंभीर हैं। मैं खुद जाकर इसकी जांच करूंगा कि यह लोग कौन हैं और इमरजेंसी में इलाज कैसे कर रहे हैं। इसमें सत्यता पाई गई तो कड़ी कार्रवाई भी की जाएगी।

डॉ। सुरेश चंद्रा

एसआईसी, एलएलआर हॉस्पिटल

Posted By: Inextlive