Happy Birthday Amitabh Bachchan इंडियन फि‍ल्म इंडस्ट्री में वो एक किवदंती बन गए हैं। उम्र बढ़ने और वक्त बीतने के साथ ही उनकी लोकप्रियता कम होने की बजाय बढ़ती चली गई है। उन्होंने बिग स्क्रीन से स्मॉल स्क्रीन तक का सफर बखूबी पूरा किया है। पुरानी और नई जेनरेशन दोनों के बीच उनकी फैन फॉलोइंग लगभग बराबर है। सोशल मीडिया पर भी वह बेहद लोकप्रिय हैं। उनके जन्मदिन के मौके पर नजर डालते हैं उन चुनिंदा फि‍ल्मों पर जिनमें उनका अलग ही अंदाज नजर आया और जिसने दर्शकों को मुस्कुराने पर मजबूर कर दिया।

कानपुर। अपने घर के ड्राईंग रूम में टेलीविजन पर दर्शकों को 'देवियों और सज्जनों' और कंप्यूटर को ‘कंप्यूटर जी’ कहकर बुलाते अमिताभ बच्चन को देखने वाले बहुत से लोग बड़े पर्दे पर उनकी अनगिनत छवियां देख चुके हैं। अपने फिल्मी करियर में शुरुआती कामयाबी उन्हें सिस्टम से टकराने वाले गुस्सैल नौजवान के तौर पर मिली, नाम मिला 'एंग्री यंग मैन'। वक्त के साथ सिल्वर स्क्रीन पर उनके नए-नए अवतार नजर आते रहे, वह कभी ‘शहंशाह’बनकर स्क्रीन पर अवतरित हुए तो कभी ‘बागबान’ के ‘राज मल्होत्रा’बने। बहरहाल कम ही लोग याद रखते हैं कि उन्होंने परदे पर अपने कई रूपों में दर्शकों को जी भरकर हंसाया भी है। एक नजर ऐसी ही 5 चुनी हुई फिल्मों पर…

चुपके-चुपके
साल 1975 में रिलीज हुई फिल्म ‘चुपके-चुपके’ में अमिताभ बच्च्न ने अंग्रेजी साहित्य के प्रोफेसर सुकुमार सिन्हा का किरदार निभाया था। यह फिल्म बांग्ला फिल्म छद्मवेषी का रीमेक थी जो उपेंद्रनाथ गांगुली की बांग्ला कहानी पर आधारित थी। चुपके-चुपके का निर्देशन ऋषिकेश मुखर्जी ने किया था। अमिताभ, धर्मेंद्र के मित्र बने थे जो खुद बॉटनी के प्रोफेसर परिमल त्रिपाठी के किरदार में थे। ओम प्रकाश (राघवेंद्र शर्मा), शर्मिला टैगोर (सुलेखा चतुर्वेदी) व जया बच्चन (वसुधा) की भी महत्वपूर्ण भूमिकाएं थीं। इस हास्य फिल्म की कहानी कुछ इस तरह है, प्रोफेसर परिमल की सुलेखा के साथ नई-नई शादी हुई है वे अपने मित्र प्रोफेसर सुकुमार के साथ मिलकर अपनी पत्नी के जीजाजी राघवेंद्र शर्मा को बेवकूफ बनाने की सोचते हैं। इसमें सुलेखा की भी सहमति है। इसके बाद शुरू होता है हंसने-हंसाने का सिलसिला जो फिल्म के अंत तक जारी रहता है।

बड़े मियां छोटे मियां
डेविड धवन की साल 1998 में रिलीज इस कॉमेडी मूवी में अमिताभ बच्चन और गोविंदा ने डबल रोल निभाया था। दो पुलिसवाले अर्जुन सिंह (अमिताभ बच्चन) और प्यारे मोहन (गोविंदा) मुंबई के एक ही थाने में तैनात हैं। दोनों एक दूसरे को पसंद नहीं करते पर केसेज सुलझाने के लिए उन्हें एक दूसरे की जरूरत पड़ती है। कहीं से मुंबई में दो चोर बड़े मियां (अमिताभ बच्चन) और छोटे मियां (गोविंदा) आ धमकते हैं जो उनके हमशक्ल हैं। दोनों जब भी किसी अपराध को अंजाम देते हैं तो गाज अर्जुन और प्यारे पर गिरती है। फिल्म में अनुपम खेर, परेश रावल, राम्या कृष्णन और रवीना टंडन ने भी महत्वुपूर्ण भूमिकाएं निभाईं थीं।

सत्ते पे सत्ता
साल 1982 में रिलीज हुई एक्शन कॉमेडी फिल्म ‘सत्ते पे सत्ता’ का बाद में कन्नड़ व मराठी में रीमेक भी बना। कहानी सात अनाथ भाईयों की है जो एक बड़े फार्महाउस में रहते हैं, जिनके नाम सप्ताह के सात दिनों के ऊपर रखे गए हैं। सबसे बड़े भाई रवि (अमिताभ बच्चंन) सब पर हुक्म चलाते रहते हैं। सारे भाई इस बात से तंग हैं। उनके रहन सहन से लेकर बात करने तक सबका तौर तरीका गड़बड़ है। इस बीच रवि की जिंदगी में इंदु (हेमा मालिनी) की एंट्री होती है, जिसका रहन सहन, बातचीत सब अलग है। बहरहाल रवि-इंदु के बीच पहले प्यार फिर शादी हो जाती है। उसके बाद सिलसिला शुरू होता है सभी को सुधारने का। इसी में हंसी की फुहारें छूटती रहती हैं।

हेराफेरी
‘हेराफेरी’ उन छह फिल्मों में से एक है जिनमें अमिताभ बच्चन व स्व. विनोद खन्ना ने साथ काम किया था। इसकी रिलीज के साल 1976 में दोनों ही हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के उभरते हुए सितारों में शुमार थे। फिल्म की कहानी दो छुटभैये बदमाशों विजय (अमिताभ बच्चन) व अजय (विनोद खन्ना) के इर्द गिर्द घूमती है जो आपस में दोस्त हैं। बाद में इस दोस्ती में दरार पड़ जाती है। सायरा बानो (किरन सिंह) व सुलक्षणा पंडित (आशा) ने भी फिल्म में अहम किरदार निभाए हैं। प्रकाश मेहरा की इस फिल्म में कॉमेडी, रोमांस व ड्रामा सबकुछ मौजूद है।

नमक हलाल
इस फिल्म में अमिताभ बच्चन का ये डायलॉग कौन भूल सकता है, ‘आई कैन टॉक इंग्लिश, आई कैन वॉक इंग्लिाश, आई कैन लाफ इंग्लिश बीकॉज इंग्लिश इज ए वेरी फनी लैंग्वेज।’ फिल्म में अमिताभ दर्शकों को हंसाने का कोई मौका नहीं छोड़ते। प्रकाश मेहरा की यह फिल्म साल 1982 में बॉक्स ऑफिस पर रिलीज हुई थी। शशि कपूर, रंजीत, स्मिता पाटिल, परवीन बॉबी, वहीदा रहमान व ओम प्रकाश ने भी प्रमुख भूमिकाएं निभाईं थीं। इसकी कहानी अर्जुन सिंह यानि (अमिताभ बच्चन) के चारों ओर घूमती है जो नौकरी की तलाश में शहर आया है जहां उसे एक ऐसे होटल में काम मिल जाता है, जिसकी मालकिन अर्जुन सिंह की बचपन में खोई हुई मां है।

Posted By: Chandramohan Mishra