- शहर में मौजूद हैं कई ऐसे पेरेंट्स जिनकी है सिर्फ एक बेटी, इसके बाद भी नहीं जाहिर की दूसरे बेटे की इच्छा

- बेटी को ही पढ़ाया लिखाया और बनाया काबिल

VARANASI: 'बेटी पढ़ेगी तो बढ़ेगा इंडिया' भले ही ये स्लोगन सरकारी ऑफिसेज की दीवारों पर लिखा आपको मिल जाए लेकिन इस मैसेज को अपने शहर बनारस के कई लोग चरितार्थ कर रहे हैं। ये ऐसे लोग हैं जिन्होंने अपनी एकलौती बेटी को बेटे से बढ़कर माना और बेटे की चाहत किए बगैर अपनी एकलौती संतान को पढ़ाया-लिखाया और काबिल बनाया। जिसके कारण यही बेटियां आज मां बाप का नाम तो रोशन कर ही रही हैं साथ ही साथ बेटे की कमी को भी पूरा कर रही हैं।

एक बच्ची, सबसे अच्छी

एकलौते बेटे होने की बात तो हमारी सोसाइटी में अक्सर सुनने को मिल जाती है मगर बहुत कम पेरेंट्स के पास ऐसा जिगरा है जिनके पास एक ही बच्ची है। ऐसे पेरेंटस को नमन, जिन्होंने अपनी बेटी को बेटे की तरह पाला और उन्हें वाजिब मुकाम दिलाया। इनके लिए उनकी बच्ची ही सबसे अच्छी है और उन्हें अपनी बेटियों पर गर्व है। आज जानिये ऐसे ही कुछ पेरेंट्स के बारे में अंदर के पेज पर।

घर पर नहीं समझा किसी ने कभी फर्क

गुरुबाग के श्रीनगर कॉलोनी के रहने वाले अजय देशमुख और उनकी पत्‍‌नी मनीषा देशमुख खुद को बहुत खुशनसीब मानते हैं कि उनको एक बेटी अपूर्वा है। अजय बताते हैं कि जब उनको बेटी हुई तो पूरे मुहल्ले में मिठाई बांटी गई। हर कोई बहुत खुश था। बेटी बड़ी होती गई तो कई जान-पहचान के लोगों ने एक बेटा और होने की बातें कहीं लेकिन मैंने और मेरी पत्‍‌नी ने इस ओर ध्यान ही नहीं दिया। घर पर शुरू से पढ़ाई लिखाई का अच्छा माहौल रहा। अजय की माता जी और पिता जी दोनों एजुकेशनल फील्ड से बिलॉन्ग करते हैं जबकि मनीषा के पिता जी भी बीएचयू से रिटायर्ड प्रोफेसर और पद्मश्री हैं। इस वजह से घर पर किसी ने कभी भी बेटे और बेटी में अंतर नहीं किया। जिसके कारण बेटी के बाद बेटे की चाहत हुई ही नहीं और बेटी को ही पढ़ाने-लिखाने में ध्यान लगाया। जिसके कारण आज बेटी नागपुर में रहकर आर्किटेक्चर की पढ़ाई पढ़ रही है।

क्योंकि जो बेटी कर सकती है शायद बेटा नहीं

शहर के एक प्रतिष्ठित रेडियो चैनल में एज अ रेडियो जॉकी काम करने वाली कोमल वर्मा के पेरेंट्स अपनी एकलौती बेटी को बेटे से ज्यादा मानते हैं। कोमल के पिता आनंद कुमार वर्मा बताते हैं कि बिजनेसमैन होने के कारण मैं घर पर बहुत ज्यादा वक्त नहीं दे पाता था लेकिन मेरी पत्‍‌नी और कोमल की मां गीता वर्मा ने बेटी को पूरा वक्त दिया। बेटी हुई तो लोगों ने बोला भी बेटा जरूरी है लेकिन हमने कहा, क्यों बेटी ऐसा कौन सा काम नहीं कर सकती जो बेटा करता है। हमारे इस सवाल के जवाब से सबके मुंह बंद हो गए। इसके बाद हमने बेटी को पढ़ाया-लिखाया और उसे वह सब करने की आजादी दी जो वह करना चाहती थी। कोमल के पिता बताते हैं कि कोमल ने जो पढ़ाई करनी चाही वह उसे करने दिया मैंने अपनी इच्छा उस पर नहीं थोपी। यही वजह है कि आज कोमल सफल आरजे है।

बेटी एक अच्छी दोस्त होती है

शहर की फेमस सेमी क्लासिकल सिंगर सुचरिता गुप्ता आज खुद को बहुत लकी मानती हैं कि उनके पास एक ऐसा बेस्ट फ्रेंड है जो उनकी केयर करता है। उनकी हर छोटी बड़ी चीजों का ध्यान रखता है। वह दोस्त कोई और नहीं, उनकी बेटी रिचा गुप्ता है। रिचा इन दिनों बीएचयू से एमए कर रही हैं। सुचरिता बताती हैं कि बेटी का होना कोई अपराध तो नहीं है और अगर आपको सिर्फ एक बेटी है तो आप सबसे लकी है क्योंकि सिंगल बेटी आपका बहुत ध्यान रखती है। उनका कहना है कि मैं कही भी रहूं मेरी बेटी सुबह शाम मुझे फोन करके पूछती है कि मां आपने खाना खाया कि नहीं, तबीयत कैसी है। ये एक बेटा नहीं करता। इसलिए एकलौती बेटी होना बहुत भाग्य की बात है।

बेटी है इसलिए चिंता नहीं

शहर का एक और परिवार ऐसा है जिसने सिर्फ एक ही बेटी का जन्म दिया और उसे आगे बढ़ाने का काम किया। वह परिवार है एसबीआई से रिटायर्ड डीबी गुहा का। डीबी गुहा और उनकी पत्‍‌नी मंजू गुहा वर्किंग कपल हैं। हालांकि अब मिस्टर गुहा रिटायर्ड हो चुके हैं लेकिन पत्‍‌नी अभी भी सेल्स टैक्स डिपार्टमेंट में कार्यरत हैं। इन दोनों की एकलौती बेटी है दीपशिखा गुहा। बनारस में आरजे रह चुकी दीपशिखा इन दिनों जयपुर में एक रेडियो स्टेशन में कार्यरत हैं। मां बाप से दूर होने का दर्द उनके अंदर तो है लेकिन इस बात की खुशी है कि उनके पेरेंट्स ने उनको इस मुकाम तक ले जाने में कोई कोर कसर नहीं छोडी और ये फील नहीं होने दिया कि वह उनकी एकलौती बेटी है। दीपशिखा बताती हैं कि मां-बाप ने उनके लिए जितना किया शायद कोई पेरेंट्स अपने बेटे के लिए भी उतना नहीं करते।

पढ़ाना था बेटी को इसलिए नहीं की बेटे की चाहत

पहडि़या के दिनेश चन्द्र गुप्ता का कैटरिंग कारोबार है। घर पर पत्‍‌नी सरिता और एकलौती बेटी प्रज्ञा के साथ रहते हैं। दिनेश बताते हैं कि बेटी प्रज्ञा जब हुई तो उनकी फाइनेंशियल कंडीशन बहुत अच्छी नहीं थी। इसलिए उस वक्त उन्होंने बेटे की चाहत नहीं की और बेटी को ही पढ़ाने-लिखाने और उसे सफल बनाने का सपना देखा। इसी सपने को देखते हुए दिनेश ने बेटी के एजुकेशन की जिम्मेदारी संभाली और उसे पढ़ाया। दिनेश बताते हैं कि अगर बेटी पढ़े लिखे और आगे बढ़े तो बेटे की कमी पूरी हो जाती है क्योंकि बेटी भी आपको नाम शोहरत और इज्जत देने का माद्दा रखती है।

Posted By: Inextlive