Holi 2022: होलिकोत्सव से पहले करें यह काम, पुरानी बीमारियों व परेशानियों से मिलेगा आराम
इंटरनेट डेस्क (कानपुर)। Holi 2022-Significance of Holika Dahan: प्रह्लाद जो हिरण्यकश्यप का पुत्र था पिता के आदेश के बाद भी विष्णु पूजा करता था। पिता के लाख मना करने पर भी वह निरन्तर विष्णु पूजा करता रहा इससे क्रोधित होकर हिरणयकश्यप ने प्रह्लाद को महल के उपर से फेकवा दिया लेकिन प्रह्लाद बच गये। प्रह्लाद को उसने अनेक यातनायें दी जिससे प्रह्लाद विचलित नहीं हुए और निरन्तर विष्णु जी की आराधना करते रहें। अन्त में हताश होकर हिरण्यकश्यप ने निश्चय किया कि प्रह्लाद को अग्नि में जला दिया जायें।हिरण्यकश्यप की बहन अर्थात प्रह्लाद की बुआ को देवताओं से यह वरदान प्राप्त था कि वह अग्नि में नहीं जलेगी। हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन से कहा कि यह दुष्ट बालक प्रह्लाद नहीं मानेगा। यह विष्णुजी की पूजा करता रहेगा। इसलिए तुम प्रह्लाद को लेकर अग्नि की बेदी पर बैठ जाओं जब अग्नि प्रज्जवलित हो जायेगी तो प्रह्लाद उसमें जलकर खत्म हो जायेगा। जब अग्नि जलने लगी तो होलिका स्वयं उसमें जलकर राख हो गई प्रह्लाद विष्णु जी के मंत्र का जाप करते हुए सकुशल बाहर आ गये। होलिका जलकर राख में तब्दील हो गई।
यह खबर जब हिरण्यकश्यप ने सुना तो वह क्रोधित हो गया वह तलवार से अपने पुत्र की गर्दन पर प्रहार किया। तलवार खंभे पर टकरा गई और खम्भा टूटकर गिर गया। विष्णु भगवान खंभे से नरसिंह के अवतार के रुप में प्रकट हुए गोधूली के समय उन्होंने हिरण्यकश्यप को पकड़ लिया। अपनी गोंद में बिठाकर अपने तीखे नाखूनों से उसके पेट को फाड़कर दो भागो में विभाजित कर दिया। हिरण्यकश्यप को वरदान था कि वह न दिन में मरेगा, न रात्री में मरेगा, न आकाश में मरेगा, न ही जमीन पर मरेगा, और न मनुष्य से मरेगा, न देवता से मरेगा। इसीलिए हिरण्यकश्यप को गोधूली में भगवान विष्णु ने नरसिंह का अवतार लेकर उसके जीवन का अन्त कर दिया। क्रूर आताताई की मृत्यु के बाद जनता में खुशी की लहर दौड़ पड़ी। उसके अन्त की खुशी से प्रसन्न होकर दूसरे दिन रंगोत्सव खेला जाता है। यह परंपरा तभी से चली आ रही है जिस दिन होलिका का दहन होता है हिन्दू पंचांग के अनुसार वर्ष का अन्तिम दिन रहता है दूसरे दिन जब होली खेली जाती है तो वर्ष का पहला दिन होता है। रंगोत्सव के दिन चैत्र मास के पहले दिन का आरम्भ होता है। इसीदिन से हिन्दुओं का नया वर्ष प्रारम्भ हो जाता है। कुछ जगहों या स्थानों पर मान्यता है कि नये वर्ष का प्रारम्भ नवरात्री के समय से माना जाता है। होलिकोत्सव के 15 दिन बाद नवरात्री आता है हमारे हिंदू वर्ष का यह प्रारम्भ बिंदु है। नये वर्ष के आगमन की खुशी पर हम एक दूसरे पर रंग या गुलाल लगाते है विभिन्न तरह के पकवान एवं मिष्ठान बनाते है एवं दूसरों को खिलाते है।
कम नहीं है होली का ज्योतिषीय व सांस्कृतिक महत्व
राहु केतु अभी भी उच्च के चल रहे है। शनि भी मजबूत स्थिति में है। शुभ ग्रह गुरु भी अस्त है इसलिए कोरोना बीमारी का प्रभाव अभी बना हुआ है। अप्रैल में जब गुरु उदित हो जायेगा तो राहु केतु का कुप्रभाव थोड़ा कम होने लगेगा। राहु केतु वायरसजनित बीमारी का कारक ग्रह है। राहु केतु का प्रभाव अभी अक्टूबर नवम्बर तक बना रहेगा। यह बीमारी तभी पूरी तरह नगण्य हो पायेगी। गुरु और शुक्र के मजबूत होने के कारण स्थितियाँ नियंत्रण में आने लगेगीं।इस होली अवसर पर सरसों का उपटन अवश्य लगाये। अपने चारों तरफ कालातिल कपूर घुमा ले और शरीर में लगे उपटन को भी रख लें, यह कामना करें कि हे विष्णु भगवान जिस तरह आपने आताताई हिरण्यकश्यप का विनाश किया। कुशित भावना के कारण जिस तरह होलिका जलकर भष्म हो गई उसी तरह हमारे परिवार पर कोरोना जैसी महामारी की काली छाया न पड़े।