टंडन रामनामी समाज का धार्मिक आंदोलन। बताया गया है कि ये लोग भारत के सबसे गरीब राज्‍य छत्‍तीसगढ़ में रहते हैं। करीब 100 साल पहले की बात है जब इस रामनामी समाज को छोटी जाति माना जाने के कारण इन्‍हें मंदिरों के अंदर घुसने की इजाजत नहीं होती थी। यहां तक कि कुएं से पानी तक भरने नहीं दिया जाता था। उस समय से इन्‍होंने इसके विरोध में अपने पूरे शरीर पर ही भगवान राम का नाम लिखवाने की प्रथा शुरू कर दी।

ऐसी है जानकारी
जानकारी है कि रामनामी समाज ने सालों से चली आ रही जाति प्रथा का विरोध जताने का बेहतरीन तरीका इजाद किया। इस समाज के लोग अपने पूरे शरीर पर राम का नाम गुदवा लेते हैं। ऐसा करके ये लोग ये संदेश देना चाहते थे कि ईश्वर कहीं एक जगह नहीं, बल्कि सर्वव्यापी है। वह किसी एक खास जाति, धर्म या तबके से संबद्ध नहीं है।
अभी भी कुछ लोग अपनाते हैं प्रथा
अब वो और बात है कि समय के साथ इन टैटू की चमक भले ही फीकी पड़ गई हो, लेकिन ये प्रथा लंबे अर्से बाद आज भी जिंदा है। करीब 70-80 के दशक की बात करते हुए गांव के पुरुष और महिलाएं बताते हैं कि कुछ लोग तो अपने पूरे शरीर पर टैटू गुदवाते हैं। इसके लिए उनको दो से तीन हफ्ते का समय भी लग जाता है।

नई पीढ़ी का ये है तर्क
बता दें कि इस रामनामी समाज के लोगों की आबादी करीब एक लाख के आसपास है। ये लोग छत्तीसगढ़ के चार जिलों में रहते हैं। समुदाय के लोग बताते हैं कि अब नई पीढ़ी इतने बड़े पैमाने पर टैटू नहीं बनवाती। ऐसा करने के पीछे नई पीढ़ी ये तर्क देती है कि 1955 में जातिप्रथा के खात्म होने के बाद इनकी स्िथति में अब कुछ सुधार आ गया है। अब इस समुदाय की नई पीढ़ी पढ़ने या नौकरी करने के लिए बाहर जाती है। ऐसे में पूरे शरीर पर टैटू वे नहीं बनवा सकते।
हर घर में होता है ऐसा
फिलहाल अब इस समुदाय के हर घर में रामायण है। इसके साथ ही दूसरे भगवानों की मूर्तियां भी हैं। इतना ही नहीं समाज के लोग अपने घरों के अंदर और बाहर की दीवारों पर भी राम नाम लिखवाते हैं और खुद के भी भगवान के करीब होने का संदेश देते हैं।

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Posted By: Ruchi D Sharma