इलाहाबाद हाई कोर्ट ने दिया आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे याची की रिहायी पर पुनर्विचार का निर्देश

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सजायाफ्ता कैदियों की समयपूर्व रिहायी की राज्य सरकार को पारदर्शी नीति बनाने का निर्देश दिया है। साथ ही सह अभियुक्तों के जेल में बन्द होने के आधार पर याची की समयपूर्व रिहाई की मांग अस्वीकार करने के आदेश को रद कर दिया है और राज्य सरकार को नियमानुसार नये सिरे से एक माह में विचार कर निर्णय लेने का निर्णय दिया है।

यह आदेश जस्टिस रमेश सिन्हा तथा डीके सिंह की खंडपीठ ने हत्या के आरोप में आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे चन्द्रासी व अन्य की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है। याचिका पर अधिवक्ता कमल कृष्ण राय व चार्ली प्रकाश ने बहस की। याचिका में समयपूर्व रिहायी की संस्तुति निरस्त करने व समय पूर्व रिहायी की नीति बनाने की मांग की गयी थी। मालूम हो कि 18 अक्टूबर 1977 को याची को हत्या के आरोप में दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई। अन्य 9 सहअभियुक्त भी जेल में सजा भुगत रहे हैं। शराब की दूकान पर दिन के 12 बजे एक व्यक्ति हत्या करने का आरोप है। आजीवन कारावास की सजा की हाईकोर्ट ने पुष्टि कर दी।

20 साल से अधिक सजा भुगत चुके हैं

याचीगण 20 साल 11 माह 2 दिन व 27 साल 8 माह 25 दिन की सजा 4 सितम्बर 2016 को भुगत चुके हैं। अच्छे व्यवहार के चलते वरिष्ठ अधीक्षक नैनी जेल इलाहाबाद ने समय पूर्व रिहायी की संस्तुति की। कोर्ट ने भी स्वीकृति दे दी। सरकार ने अन्य आरोपियों के जेल में बंद होने के आधार पर समय पूर्व रिहायी से इन्कार दिया जिसे याचिका में चुनौती दी गयी थी। याची का कहना है कि धारा 432(2) दंड प्रक्रिया संहिता के तहत जिलाधिकारी की अध्यक्षता की कमेटी ने समय पूर्व रिहायी की संस्तुति की थी किन्तु सरकार नहीं माना।

Posted By: Inextlive