- मंडी से फुटकर दुकान तक आने में 45 रुपए तक बढ़ जाता है अरहर की दाल का रेट

- डिमांड और सप्लाई में फर्क न होने के बाद भी दाल की कीमतें आसमान की ओर

- मेरठ की मंडी में महीने में विभिन्न प्रदेशों से होती है करीब 84 हजार क्विंटल दालों की सप्लाई

- मेरठ की छोटी-बड़ी 10 दाल मिलों में होता है लगभग एक हजार क्विंटल दाल का उत्पादन

 

 

sharma.saurabh@inext.co.in

Meerut : महीने भर तक चले उतार-चढ़ाव के बाद दाल के दाम थम गए हैं, लेकिन फुटकर विक्रेता इसे मानने को तैयार नहीं है और ख्भ् परसेंट तक के मुनाफे पर दाल का कारोबार मेरठ में हो रहा है। दाल के दाम में तेजी डेढ़-दो महीने पहले आनी शुरू हुई थी। अरहर की दाल के दाम अचानक बढ़ने शुरू हुए और ब्0 से भ्0 रुपए प्रति किलो के इजाफे के साथ सवा सौ रुपये पार कर गया। कमोबेश यही हाल बाकी दालों का भी रहा। आखिर कैसे चंद दिनों में ही दालों के दाम आसमान छूने लगे और अब क्या है स्थिति। आइए आपको भी इस बारे में बताते हैं

 

आवक थमने से बढ़ी महंगाई

मार्च और अप्रैल माह में हुई बेमौसम बारिश का सीधा असर दालों पर पड़ा। हालांकि माना जा रहा था कि मार्केट पर इस बेमौसम बारिश का असर अक्टूबर-नवंबर तक पड़ेगा, लेकिन अचानक दाल की आवक कम होने से दलहन के दाम अचानक बढ़ने लगे थे। नवीन मंडी के व्यापारियों की मानें तो अब आवक भी नॉर्मल हुई है और डिमांड भी थोड़ी कम हुई है जिसकी वजह से पिछले दस दिनों में दालों के दाम में कोई बदलाव नहीं आया है। डिमांड कम होने की वजह गर्मी की छुट्टियां हैं। इस सीजन में अधिकतर लोग बाहर निकल जाते हैं, जिसकी सीधा असर दालों की खपत पर पड़ता है।

 

अरहर की दाल सबसे महंगी

पिछले तीन महीनों में सबसे अधिक भाव अरहर की दाल के बढ़े हैं। तीन महीने पहले अरहर की दाल का भाव जहां 70 से 7भ् रुपए के बीच था वहीं अरहर का भाव अब क्क्0 से क्ख्भ् रुपए के बीच पहुंच गया है। हालांकि थोक दुकानदारों के यहां सबसे अच्छी अरहर की दाल का रेट क्0ख् रुपये से क्0भ् रुपए तक ही है। वहीं एवरेज वैरायटी के रेट की कीमत 70 रुपए प्रति किलो है। उड़द की दाल के बारे बात करें तो मंडी में 80 रुपए किलो दाल बिक रही है। वहीं फुटकर की दुकानों में यही दाल क्क्ख् रुपए किलो पहुंच रही है। मसूर, मूंग, राजमा, चना की दालों का भी कुछ ऐसा ही हाल चल रहा है।

 

ओलावृष्टि का असर

जानकारों की मानें तो महंगाई का सबसे बड़ा कारण बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि है। इससे फसल काफी बर्बाद हुई है। अरहर की सबसे अधिक पैदावार महाराष्ट्र और एमपी में होती है। इस बार बारिश से फर्क यहां भी पड़ा है। ओलावृष्टि से फसलें ब्0 से भ्0 परसेंट तक बर्बाद हुई हैं।

 

यहां से आती हैं मेरठ में दालें

अगर बात मेरठ की करें तो मंडी में कर्नाटक, राजस्थान, बिहार, एमपी, ईस्ट यूपी, चेन्नई दालों की सप्लाई होती है। अगर बात विदेशों की करें तो मेरठ की नवीन मंडी में अरहर की दाल रंगून से मंगाई जाती है जबकि मटर का सबसे बड़ा निर्यातक देश कनाडा है। चना ऑस्ट्रेलिया से आता है और मूंग की दाल और राजमा चाइना से खरीदा जाता है जबकि उड़द की दाल की सप्लाई रंगून और थाईलैंड से होती है। वहीं म्यंमार, अमेरिका और अफ्रीकी देशों से भी दालों की सप्लाई मेरठ की मंडी में हो रही है।

 

रसोई तक मामला हो जाता है खराब

अगर बात आम जनता की रसोई की करें तो दालों के डिब्बे पूरी तरह से खाली पड़े हैं। कोई भी क्00 रुपए किलो से कम नहीं है। ताज्जुब की बात तो ये है कि उड़द और अरहर की दालों को महंगी होने के कारण काफी कम खरीदी जा रही है। थापर नगर निवासी स्वाति शर्मा की मानें तो हमारे घर में उड़द की दाल सबसे ज्यादा खाई जाती है। लेकिन दुकानों में क्क्ख् से क्क्भ् रुपए किलो की दाल अब रोज खाना मुमकिन नहीं है। उड़द ही नहीं अरहर, मसूर और मूंग सभी दालों का यही हाल है।

 

नहीं है प्राइज कंट्रोल

मंडी कारोबारियों की मानें तो मिनिमम प्राइज तो तय है, लेकिन मैक्सिमम प्राइज तय नहीं होता। इसका फायदा फुटकर विक्रेता उठाते हैं और मनमाने दामों पर दालों को बेचते हैं। कई दुकानदार इसे ख्0 से ख्भ् परसेंट तक रेट हाई कर बेचते हैं। हालांकि दाल की गिनी चुनी मार्केट में इसे 8 से क्0 परसेंट के मुनाफे पर ही बेच दिया जाता है।

 

दालें नवीन मंडी रेट सदर मंडी रेट फुटकर रेट

उड़द छिलका 80 9भ्-क्क्0 क्क्भ्-क्ख्0

उड़द साबूत म्भ् क्क्0 क्क्भ्-क्ख्0

अरहर 70 क्0भ्-क्क्0 क्ख्0-क्ख्भ्

मूंग धुली 8भ् क्क्0 क्ख्0

मसूर म्भ् 80 8भ्-क्00

राजमा म्0 70 80-90

चना ब्भ् भ्म् म्भ्-70

मटर फ्0 फ्भ् म्भ्-70

 

वर्जन

पिछले दिनों के मुकाबले रेट थोड़े कम हुए हैं। अगर पीछे से सप्लाई नहीं आती है तो और मंगा लिया जाता है। अगर बात रेट की करें तो ये तो पीछे से ही तय होते हैं। इनमें हमारा कोई हाथ नहीं होता है।

- महेंद्र गर्ग, पूर्व अध्यक्ष, नवीन मंडी दलहन एसोसिएशन

 

हमारा सामान नवीन मंडी से आता है। हमें वहां टैक्स भी देना पड़ता है। उसके बाद ट्रांसपोर्टेशन का भी फर्क पर पड़ता है। थोड़ा मुनाफा भी जोड़ा जाता है। उसके बाद ही रेट तय होता है। हम अपने आप रेट तय नहीं करते हैं।

- राजीव कुमार, ऑनर, बुद्धुमल रामनाथ सदर दाल मंडी

 

हम अपनी ओर से दालों के रेट नहीं बढ़ाते हैं। सदर दाल मंडी से हमें जिस रेट पर मिलता है। उसमें टैक्स और ट्रांसपोर्टेशन का भी खर्चा होता है। उसके बाद थोड़ा मुनाफा फुटकर भी कमाएगा भी। पब्लिक का पूरा ख्याल रखते हैं। वैसे पिछले कुछ दिनों से दालों के रेट काफी स्टेबल हुए हैं।

- दीपक चुघ, ऑनर आरके किराना स्टोर, चाणक्यपुरी

 

बॉक्स

इन कारणों से आई है महंगाई

दाल में आई तेजी के कई कारण हैं। सबसे अहम कारण जमाखोरी है। जमाखोरों ने बाजार का रुख भांपते हुए शहर के आउटर एरिया में भारी मात्रा में दाल जमा कर रखी है। एक बार बाजार भाव आसमान छूने के बाद इसे धीरे-धीरे बाजार में उतारा जा रहा है। सरकारी मशीनरी भी सब कुछ जानते हुए जमाखोरों पर लगाम कसने में नाकाम साबित हो रही है। दाल की महंगाई के दूसरे कारण इस प्रकार हैं

 

- महाराष्ट्र और एमपी से हर महीने ऊंचे दामों पर दाल का आयात किया जा रहा है।

- व्यापारियों को इसका फ्.भ् फीसदी टैक्स देना पड़ रहा है। जिसमें ख्.भ् फीसदी मंडी शुल्क और एक फीसदी वैट शामिल है।

- इस साल बेमौसम बरसात ने दलहन की फसल को बर्बाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

- पिछले पांच सालों से मेरठ दालों की खेती पूरी तरह से खत्म हो गई है।

- महाराष्ट्र से मेरठ तक आने में प्रति क्विंटल ट्रक भाड़ा ब्00 क्विंटल रुपए है।

- दलहन की फसल तैयार होने में आठ से नौ महीने लगते हैं। एक बार फसल खराब होने के बाद किसान बर्बाद हो जाते हैं। यही कारण है किसान तीन से चार महीने वाली फटाफट फसलों की ओर भाग रहे हैं।

 

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पहले कर लेना चाहिए था आयात

दालों में आई बेतरतीब महंगाई पर व्यापारियों का साफ मत है। उनका कहना है कि केंद्र सरकार को तीन महीने पहले ही दालों का विदेश से आयात करना चाहिए था। ऐसा हुआ होता तो पब्लिक पर महंगाई की मार नहीं पड़ती। वैसे भी जुलाई से दालों की खपत का ग्राफ गिरने लगता है। ऐसे में सरकार द्वारा किए जाने वाले आयात से बहुत ज्यादा फायदा नहीं होगा। मार्केट खुद ब खुद नीचे आ सकती है।

Posted By: Inextlive