स्कूल यूनिफॉर्म में भी 'ठगबंधन'
मनचाहे रेट पर बेची जा रहीं स्कूल की यूनिफॉर्म
यूनिफॉर्म स्कूल द्वारा तय दुकान से खरीदने पर मजबूर पैरेंट्स Meerut . शासन के निर्देशों के बावजूद प्राइवेट स्कूलों व वेंडर्स का ठगबंधन खत्म नहीं हो पाया है. सिलेबस के अलावा यूनिफॉर्म भी स्कूलों और वेंडर्स की कमाई का मेन सोर्स बन गया है. इस खेल में जहां स्कूल किसी एक वेंडर को प्रमोट कर रहे हैं वहीं वेंडर भी हर साल करोड़ों रूपये का कमीशन स्कूलों को दे रहे हैं. कमीशन के इस खेल में पेरेंट्स की पॉकेट पर बोझ बढ़ता जा रहा है. फिक्सड हैं शॉपशहर के तमाम पेरेंट्स स्कूलों की मनमर्जी से तंग आ चुके हैं. हालांकि पेरेंट्स का यह भी कहना कि बच्चों के भविष्य को देखते हुए मजबूरी में स्कूलों की मनमानी झेलनी पड़ती हैं. पेरेंट्स का कहना कि तमाम नियमों के बावजूद प्राइवेट स्कूलों में ही स्कूल यूनिफॉर्म और सिलेबस मिल रहा है. जबकि कुछ स्कूलों की यूनिफॉर्म फिक्सड दुकान से ही मिल रही है. ऐसे में मनमाने रेटों पर पेरेंट्स को यूनिफॉर्म खरीदनी पड़ रही है.
हफ्ते में तीन तरह की यूनिफॉर्मयूनिफॉर्म में कमाई का खेल फिक्सड शॉप तक ही सीमित नहीं है. बल्कि अधिकतर स्कूलों ने 6 दिन में तीन तरह की यूनिफॉर्म अनिवार्य कर रखी हैं. पेरेंट्स को तीनों यूनिफॉर्म के दो-दो सेट लेने ही पड़ते हैं. इसके अलावा समर-विंटर ड्रेस के नाम पर हर छह महीने में यूनिफॉर्म भी बदल जाती है.
जूते-मौजे का विकल्प भी नहीं शर्ट, पैंट, ट्राउजर, ब्लेजर के अलावा स्कूलों ने पेरेंट्स के पास जूते-मौजे का विकल्प भी नहीं छोड़ा है. स्ट्रिप वाले मोजों के नाम पर पेरेंट्स को ये भी निर्धारित शॉप से ही लेना पड़ रहा है. यहां भी पेरेंट्स को खास तरह के जूते-मौजों का सेट खरीदना पड़ रहा है. यह है अंतर वेंडर - बाजार रेट हॉफ पैंट 500 रुपये - 300 रुपये फुल पैंट- 600 रूपये - 450 रुपये चेक हॉफ पैंट 450 - 300 रुपये चेक फुल पैंट का रेट- 650 रुपए- 450 हाफ शर्ट- 450 रुपये - 250 रुपये फुल शर्ट- 600 रुपये - 350 रुपये स्कर्ट- 700 रुपये- 400 रुपये जैकेट- 600 रुपये- 450 रुपये टाई- बेल्ट- 150 से 250 रुपये सॉक्स-60 से 100 रुपये -20 से 70 रुपये इनका है कहनास्कूली बच्चों की पहचान यूनिफॉर्म देखकर कहीं भी की जा सकती है इसलिए अलग-तरह की यूनिफॉर्म तैयार करवाई जाती हैं. सभी चीजें पेरेंट्स को एक ही जगह मिल जाएं इसलिए ऐसी सूहलियत दी जाती है.
सतीश शर्मा, प्रिंसिपल, शांति पब्लिक स्कूल सभी स्टूडेंट्स का एक जैसा दिखना जरूरी होता है. प्रॉपर सेम डिजाइन की यूनिफॉर्म सभी के पास हो और एक जैसी हो इसलिए स्कूल वेंडर तय करते हैं. लेकिन अगर पेरेंट्स कहीं ओर से सेम यूनिफॉर्म खरीदना चाहते हैं तो कोई मनाही नहीं होती है. प्रीति मल्होत्रा, प्रिंसिपल, द आर्यस स्कूल एक ही शॉप से सब कुछ खरीदना मजबूरी हो गई हैं. इससे भी बड़ी बात यह है कि इनके प्राइस बाजार से कहीं ज्यादा होते हैं. कविता, पेरेंट्स एक ही दुकान से सामान मिल रहा है ये ठीक है लेकिन इनके रेट बहुत ज्यादा होते हैं. हर छह महीने में यूनिफॉर्म बदल जाती है. कविता, पेरेंट्स